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सऊदी अरब की नीति, इस्लाम का दावा और मुसलमानों पर हमला

आफ़ताब फ़ारूक़ी

 

 न्यूज़ीलैंड में दो मस्जिदों पर आतंकी हमलों में 50 से अधिक नमाज़ियों की जान गई तो वैटिकन के पोप के मुंह से दो शब्द निकले हमारे मुसलमान भाई! इन दो शब्दों से साफ़ ज़ाहिर हो गया कि उन्हें आतंकी घटना से कितना दुख पहुंचा है और पीड़ितों से उन्हें कितनी हमदर्दी है।
पोप फ़्रैंसिस ने मारे गए लोगों के लिए दुआ की अपील की। मगर दूसरी ओर सऊदी अरब ने इस हृदय विदारक घटना पर जो सरकारी प्रतिक्रिया दी उसे उस देश की उचित प्रतिक्रिया हरगिज़ नहीं कहा जा सकता जहां से इस्लाम धर्म सारी दुनिया में फैला और जहां हर साल दसियों लाख मुसलमान हज के लिए जाते हैं।
न्यूज़ीलैंड की घटना पर सऊदी नरेश सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने ट्वीट किया जिसमें उन्होंने हमले को आतंकी हमला ठहराया उन्होंने न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री और उनके देश से सहानुभूति जताई और कहा कि विश्व समुदाय की ज़िम्मेदारी है कि आतंकवाद और नफ़रत पर अंकुश लगाए।
मगर वहीं काबे के इमाम और हरमैन शरीफ़ैन के मामलों के अधिकारी अब्दुर्रहमान सुदैस ने बड़ा बेतुका बयान दिया। उन्होंने वही बयान दोहरा दिया जो तीन साल पहले उन्होंने सऊदी अरब में होने वाली आपराधिक घटना पर दिया था। मस्जिदुल हराम के पूर्व इमाम आदिल अलकलबानी ने तो इससे भी आगे निकल गए उन्होंने कहा कि यह सोच कर दुख कम हो जाता है कि हत्यारा मुसलमान नहीं है क्योंकि कितनी बड़ी संख्या में नमाज़ी मुसलमान मुसलमानों  हाथों मारे जा चुके हैं।
अलकलबानी के इस ट्वीट पर सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया। तीन घंटे के भीतर दस हज़ार जवाब आ गए जिनमें यूज़र्स ने कहा कि कलबानी ने समस्त मुसलमानों पर प्रहार किया है। सबने सवाल किया कि जब न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री अर्डर्न ख़ुद मान रही हैं कि यह नस्लवाद और द्वेष का मामला है तो अलकलबानी इसे किसी अन्य दिशा में मोड़ने की कोशिश क्यों कर रहे हैं।


सऊदी अरब को इस्लामी मामलों में कोई बार बड़े झटके लग चुके हैं। वर्ष 1979 में जहीमान अलउतैबी आंदोलन ने इस देश को हिला दिया था और सऊदी सरकार वहाबी धड़े से अपनी पुरानी सांठगांठ को नए सिरे से मज़बूत करने पर विवश हो गई थी। सऊदी सरकार के भीतर वहाबी विचारधारा पहले से अधिक प्रबल हो गई। दूसरा झटका तब लगा जब 11 सितम्बर की आतंकी घटना हुई। हमला करने वाले 19 हमलावरों में 15 सऊदी अरब के नागरिक थे। दो इमाराती एक मिस्री और लेबनानी था। इन हमलावरों के सऊदी राजकुमारों से संबंध बताए जाते हैं।
इस स्थिति को देखते हुए सऊदी अरब की वर्तमान सरकार ने बदलाव और आधुनिकीकरण का मिशन शुरू किया। महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति मिल गई, मगर दूसरी ओर कार्यकर्ताओं की गिरफ़तारी और यातनाएं तथा यौन उत्पीड़न भी तेज़ हो गया।
इससे यही लगता है कि सऊदी अरब सुधार और बदलाव के नाम पर केवल दिखावा कर रहा है। सऊदी नेतृत्व हज के बारे में सोचने के बजाए पर्यटन के बारे में सोच रहा है, नए आविष्कारों के बजाए मनोरंजन पर पूरा ध्यान केन्द्रित कर रहा है, अर्थ व्यवस्था को मज़बूत बनाने के बजाए अरामको को बेचने के बारे में सोच रहा है। इस तरह दुनिया में उसका महत्व और सम्मान समाप्त होता जा रहा है।
साभार अलक़ुद्सुल अरबी

aftab farooqui

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