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तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – वाराणसी जैतपुरा थाना प्रभारी साहब, यहाँ की दुर्गन्ध पूछती है कि बुचडखाना चालू है क्या ?

तारिक आज़मी

वाराणसी। वैसे तो शहर में भैस के गोश्त का कारोबार जारी है। कहने को ये मांस मुगलसराय स्लाटर हाउस से आने की बात कही जाती है। मगर सूत्र बताते है कि शहर में बुचडखाने आबाद हो रहे है। बताते चले कि शहर में पहले चार बुचडखाने हुआ करते थे। जिसमे भेलुपुर थाना अंतर्गत गौरीगंज, दशाश्वमेघ थाना अंतर्गत देल्हुगली वाले रास्ते पर, जैतपुरा थाना अंतर्गत कमलगडहा और कैंट थाना अंतर्गत कचहरी के पास था। समय के साथ सबसे पहले गौरीगंज वाला बुचडखाना बंद हुआ। ये बुचडखाना उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत बंद हुआ था। जिसमे वादी मुकदमा स्थानीय एक आश्रम था। वही इसके बाद सरकारी आदेशो के अनुसार नियमो पर खरे नही उतरने के कारण सभी बुचडखाने बंद कर दिये गये थे। इन बंद बुचडखानों में कमलगडहा का बुचडखाना भी अदालत के आदेश के तहत बंद हुआ था।

समय के साथ कागजों पर बंद इस स्लाटर हाउस पर भले प्रशासन की नज़र नही पड़े या फिर देख कर अनदेखा किया जा रहा हो मगर इसमें कटान का काम होता रहता था। कई बार स्थानीय पुलिस ने छापेमारी किया मगर उसके हाथ कुछ खास नही लगा। एक बार अभी कुछ समय पूर्व एक सामाजिक कार्यकर्ता ने पुलिस के साथ यहाँ छापेमारी किया था। ये लगभग एक साल पहले हुआ था। इस छापेमारी में अचानक आई पुलिस को देख वह मौजूद कसाईयो में हडकंप मच गया था। सूत्रों से प्राप्त समाचार और प्रत्यक्षदर्शियो की माने तो उस समय स्थित करीब ऐसी हो गई थी कि इस छापेमारी में बचने के लिये पहले तल्ले से कुछ कसाई नीचे कूद पड़े थे। जिससे उनको काफी चोटे भी आई थी। इसके बावजूद आकडे दर्शाते है कि पुलिस के हाथ कुछ साक्ष्य नही लगा।

भले ही इस छापेमारी पर सवालिया निशाँन लगे हो कि अगर बाहर से ताला बंद कर अन्दर कुछ नही हो रहा था तो वो कसाई आखिर क्यों ऊपर से कूद के भागे। मगर दस्तावेज़ बताते है कि उस समय पुलिस के हाथ कुछ नही लगा था और शिकायत का निस्तारण इसी आधार पर हो गया था। बात भले ठंडी करने की हो मगर बात हज़म होने लायक नही है। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है। मगर जब दस्तावेज़ ही कुछ नही बरामद होना बता रहे है तो फिर कैसे कोई आरोप प्रत्यारोप पर बात किया जा सकता है। चर्चा तो यहाँ तक है कि एक भागने के क्रम में एक कसाई ऊपर से कूदा तो उसके पैर में गंभीर चोट आई और वह आज भी सही से नही चल पाता है। खैर मामला ठंडा पड़ चूका है अब।

मगर सूत्रों से प्राप्त समाचारों के तहत यहाँ आज भी कटान होने की बात सामने आती है। इसी के तहत आज हमारा गुज़र ख़ास तौर पर इस सड़क से हुआ। गोलगड्डा – चौकाघाट जीटी रोड से लगा यह बुचडखाना सड़क से ही अपनी पहचान अपनी फिजाओं में बता रहा था। भले लाख सफाई हो रही हो मगर लहु की बदबू फिजाओं को अपने में समेटे हुवे थी। सड़क पर खड़े होना मुहाल था। हमको मौके से प्राप्त तस्वीरो को आप खुद देखे। कहने को रखे हुवे कूड़े के डिब्बे आस पास के मुहल्लों से आये कूडो के निष्पादन हेतु है। मगर इसकी दुर्गन्ध तो कुछ और बताती है। सड़क से सटे कोने को भले लाख पानी से धो धो कर साफ़ कर दिया गया है, मगर तस्वीर में आप साफ देख सकते है कि भैस का गोबर मौके पर इस प्रकार है कि साफ़ करने के बावजूद इसने अपने निशाँन छोड़ दिये है। इलाके के आसपास दुर्गन्ध से सांस लेना भी दुश्वार है। हमने आस पास के लोगो से पूछा तो वो कहावत है न मौसेरे भाई वाली, वही साबित हुई।

बताया गया कि जानवर यहाँ बिकता है तो थोडा गन्दगी रह जाती है मगर कटान यहाँ नही होती है। अगर इस बात पर भी विश्वास करे तो फिर ये जानवर यहाँ से बिक कर कहा कटान को जाते है। आखिर किस इलाके में कटान होती है। सूत्रों ने दबी ज़बान से बताया कि सूरज की पहली किरण निकलने के पहले ही यहाँ काम शुरू और ख़त्म हो जाता है। जो भी मल मूत्र और अन्य शरीर से खून वगैरह निकलता है उसको सीवर में बहा दिया जाता है। यही नही आस पास के कुछ घरो में भी कटाई का काम होता है। इस काम में ऊँचे स्तर के लोग जुड़े है। सूत्र बताते है कि शहर के एक अल्पसंख्यक बड़े सपा नेता का संरक्षण इन लोगो को हासिल है। इस कारण अगर थाने से कोई कार्यवाही होनी होती है अथवा ऊपर से कोई आदेश आता है तो पहले से यहाँ के लोगो को पता रहता है।

क्षेत्रीय नागरिको में व्याप्त चर्चाओ को आधार माने तो स्थानीय थाना की भूमिका भी संदिग्ध है। भले वह किसी राजनितिक दबाव में काम कर रहा हो मगर मौके पर कभी कोई व्यवधान उत्पन्न नही होता है। बुचडखाने के आस पास के मकानों में होने वाली कटान की जानकारी एलआईयु को होने की बात भी लोग दबी ज़बान में कहने से नहीं चुक रहे है। फिर आखिर क्या वजह है कि इसके ऊपर कार्यवाही नही होती ये तो या भगवान् जाने अथवा स्थानीय प्रशासन जाने। मगर क्षेत्र की जनता इस गन्दगी से खासी परेशान है। आये दिन सीवर जाम हो जाना। गन्दगी के कारण फैलने वाली बिमारी से ग्रसित हो जाना इनके नसीब का एक हिस्सा बन गया है। मगर प्रशासन इनके ऊपर किसी कार्यवाही से शायद हिचक रहा हो।

अगले अंक में हम बतायेगे शहर में कच्चे चमड़े का कारोबार करने वाले लोगो के संबध में। जुड़े रहे हमारे साथ

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