आरिफ अंसारी
नई दिल्ली. एक तरफ जहा पत्रकारिता का मयार लगातार नीचे के तरफ जाता जा रहा है, और खोजी पत्रकारिता समाज से ख़त्म होती जा रही है. साथ साथ कही न कही पत्रकारिता अपनी विश्वसनीयता खो रही है. इस सबके बावजूद आज भी देश में ऐसे पत्रकार है जो पत्रकारिता को जिंदा रखे हुवे है. इसका जीता जागता उदहारण है द हिन्दू नाम के अखबार में छपी राफेल डील पर सनसनीखेज़ रिपोर्ट. इस अख़बार ने रिपोर्ट छाप कर साबित कर दिया कि आज भी देश में ऐसे पत्रकारों की कमी नही है जो अपने पेशे से ईमानदार है और जिनकी ईमानदारी पर कोई दाग नही लगाया जा सकता है.
इन सबके बीच ‘द हिन्दू पब्लिशिंग ग्रुप’ के चेयरमैन एन राम के नाम से रफ़ाल सौदे पर कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. एन राम का कहना है कि उन्होंने जनहित में ये रिपोर्टें प्रकाशित किया हैं. एन राम ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, ”इसमें कुछ भी परेशानी की बात नहीं है. जो प्रासंगिक था उसे हमने प्रकाशित किया है और मैं इसके साथ पूरी तरह से खड़ा हूं. उन्होंने कहा है कि ”हमने रक्षा मंत्रालय से दस्तावेज़ चुराए नहीं हैं. हमें ये दस्तावेज़ गोपनीय सूत्रों से मिले हैं और इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी ताक़त नहीं है जो मुझे यह कहने पर मजबूर कर सके कि दस्तावेज किसने दिए हैं. हमने जिन दस्तावेज़ों के आधार पर रिपोर्ट प्रकाशित की है वो जनहित में हमारी खोजी पत्रकारिता का हिस्सा है.
उन्होंने कहाकि रफ़ाल सौदे की अहम सूचनाओं को दबाकर रखा गया जबकि संसद से लेकर सड़क तक इसे जारी करने की मांग होती रही.’ एन राम का कहना है कि उन्होंने जो भी प्रकाशित किया है, उसका अधिकार ‘संविधान के अनुच्छेद 19 (1) से मिला है.’ ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार का हिस्सा है. एन राम ने कहा कि राष्ट्र सुरक्षा और उसके हितों से समझौते का कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता है.
एन राम ने ये भी कहा कि लोकतांत्रिक भारत को 1923 के औपनिवेशिक गोपनीयता के क़ानून से अलग होने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, ”गोपनीयता का क़ानून औपनिवेशिक क़ानून है और यह ग़ैर-लोकतांत्रिक है. स्वतंत्र भारत में शायद ही किसी प्रकाशन के ख़िलाफ़ इस क़ानून का इस्तेमाल किया गया हो. अगर किसी तरह की जासूसी हो रही हो तो वो अलग बात है. हमने जो छापा है वो जनहित में है. उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल के तर्क को माना जाए तो इससे खोजी पत्रकारिता पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.
राम ने कहा कि ये केवल हिन्दू का मामला नहीं है. अन्य स्वतंत्र प्रकाशकों के लिए भी ख़तरनाक है. 1980 के दशक में हमने बोफ़ोर्स की जांच में अहम भूमिका अदा की थी. इस सरकार में मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर डर बढ़ा है. भारतीय मीडिया को इसे लेकर बहुत कुछ करने की ज़रूरत है. पूरे विवाद पर वरिष्ठ पत्रकार और द हिन्दू में एन राम के साथ काम कर चुके प्रवीण स्वामी ने ट्वीट कर कहा है, ”19 साल पहले फ़्रंटलाइन में इस रिपोर्ट (करगिल संघर्ष पर की गई रिपोर्ट) के कारण मुझे गोपनीयता के क़ानून के तहत धमकियां मिली थीं. तब मेरे साथ एन राम खड़े थे. आज उसे याद करते हुए एन राम के प्रति मेरे मन आदर और बढ़ गया है.”
बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट में रफ़ाल मामले पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई में बुधवार को एटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल ने कहा था कि इस लड़ाकू विमान के सौदे से जुड़े कुछ ख़ास दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी हो गए हैं. एजी ने पुनर्विचार याचिका ख़ारिज करने के पक्ष में दलील देते हुए कहा था कि सेक्शन तीन के उपनियम सी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति वैसे दस्तावेजों का इस्तेमाल करता है, जिनका संबंध प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संप्रभुता, एकता और विदेशी संबंधों से है तो यह ग़ैरक़ानूनी है. एजी ने सुप्रीम कोर्ट से गोपनीयता के क़ानून के उल्लंघन का हवाला देते हुए पुनर्विचार याचिका ख़ारिज करने की मांग की है.
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