आदिल अहमद
गाज़ियाबाद।समाजवादी पार्टी ने गाज़ियाबाद लोकसभा हेतु अपना प्रत्याशी बदल दिया है। निवर्तमान भाजपा सासद वी के सिंह के मुकाबिल सुरेन्द्र कुमार मुन्नी की जगह अब गाज़ियाबाद से विधायक रहे सुरेश बंसल को टिकट दिया गया है। सुरेश बंसल गाज़ियाबाद से विधायक थे। शायद सपा ने विधानसभा चुनावों में इनके समर्थको के अंदाज़ को मद्देनज़र रखते हुवे वी के सिंह से मुकाबला करने को उतारा है। वैसे बंसल को टिकट देकर सपा ने वैश्य समाज के वोट बैंक पर भी नज़र गडा लिया है। बताते चले कि इसके पहले सपा ने अपना प्रत्याशी सुरेद्र कुमार मुन्नी को घोषित किया था। सुरेन्द्र कुमार मुन्नी गाज़ियाबाद की राजनीत में अपना एक मकाम रखते है। मगर वी के सिंह के खिलाफ एक बड़े स्टार्टअप को नज़र में रखते हुवे शायद ये बदलाव किया गया है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्ट, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन है, और इस गठबंधन के तहत गाजियाबाद सीट समाजवादी पार्टी के खाते में हैं। भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार शाम को मौजूदा सांसद जनरल वीके सिंह को दोबारा यहां से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। 2014 में जनरल वीके सिंह इस सीट से भारी अंतर से चुनाव जीते थे। वही वी के सिंह से मुकाबला करने के लिये कांग्रेस ने इस सीट से 2017 में मेयर का चुनाव हार चुकी डॉली शर्मा को उम्मीदवार बनाया है।
माना जा रहा है की गाजियाबाद से सुरेश बंसल को अपना उम्मीदवार बना कर समाजवादी पार्टी ने एक बड़ा दांव खेला है। सुरेश बंसल वैश्य समाज से आते हैं जो परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी का वोटर रहा है। वैश्य समाज में सुरेश बंसल की अच्छी पैठ भी मानी जाती है। वही डाली शर्मा भले मेयर का चुनाव हार चुकी है मगर इस बार वी के सिंह से मुकाबला करने को दंभ भर चुकी है। डाली शर्मा को कांग्रेस ने ब्राह्मण वोटो के दृष्टिगत प्रत्याशी बनाया है।
वही वी के सिंह से आम जन की नाराज़गी उनकी कुर्सी पर आंच डाल सकती है। हमारे स्थानीय सूत्र और सहयोगी बताते है कि पुरे कार्यकाल में वी के सिंह ने जनसंपर्क नही किया था। वही उनके द्वार गोद लिए गए गाव में भी विकास के नाम पर कुछ ख़ास नही हुआ। ये फैक्टर भाजपा प्रत्याशी को झटका दे सकता है। मगर दूसरी तरफ भाजपा का फिक्स वोट बैंक अगर ध्यान रखा जाए तो भाजपा का पलड़ा भारी होता दिखाई दे रहा है। वही अगर सपा प्रत्याशी बंसल ने वैश्य समाज में अपनी अच्छी पैठ को मतों में बदल लिया तो ये नुकसान भाजपा को भारी पड़ सकता है। वही दूसरी तरफ कांग्रेस अपने फिक्स वोट को साधने और ब्राह्मण समुदाय में पैठ बनाकर सपा और भाजपा के मुकाबले में बीच से अपनी सीट निकालने की जुगत लगा रही दिखाई दे रही है। सब मिलाकर इस बार मुकाबला रोचक होने की संभावना है क्योकि अजीत सिंह के अपने वोट बैंक को भी कमकर नही आका जा सकता है।
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