तारिक आज़मी
लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व लोकसभा चुनावों के महाघमसान का शंखनाद हो चूका है। एक तरफ जहा एनडीए के कई दलों का गठबंधन कर भाजपा ताल ठोक रही है वही लगातार 2017 के बाद प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर रहे राहुल गांधी कांग्रेस के युपीए गठबंधन के साथ चुनौती दे रहे है। इस बार अगर राहुल गांधी के नये तेवर को देखे तो वर्त्तमान में वह किसी गठबंधन हेतु परेशान नही दिखे बल्कि गठबंधन जहा किया वह अपनी शर्तो पर किया। शायद यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन में राहुल ने सीट नही लिया और गठबंधन नही किया। एक अलग निति के साथ शायद इस बार राहुल गांधी का साथ देने प्रियंका गांधी मैदान में है। साथ ही प्रियंका के आने से कांग्रेस में एक बार फिर मनोबल का इजाफा हुआ है।
इस बीच भाजपा को सबसे अधिक अगर परेशान कर रहा है तो वह है सपा बसपा का गठबंधन। शायद इसी गठबंधन से अपने मतों का नुक्सान देखते हुवे भाजपा ने अनुप्रिया पटेल और ओमप्रकाश राजभर को साथ लिये रहने की कवायद शुरू कर दिया है। तो वहीं, सपा-बसपा गठबंधन के लिये भी यह चुनाव एक टेस्ट की तरह होगा। चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सात चरणों में लोकसभा चुनाव होगा। आंकड़ो पर नजर डालें तो वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 71 और उसके सहयोगी अपना दल ने दो सीटें जीती थीं।
खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार 73 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। ऐसे में भाजपा की साख सबसे ज्यादा दांव पर है। यह लोकसभा चुनाव सपा और बसपा गठबंधन के भविष्य को भी तय करेगा। कभी घोर प्रतिद्वंद्वी रहे सपा और बसपा ने अपने तमाम गिले-शिकवे भुलाकर इस चुनाव में भाजपा को हराने के लिये हाथ मिलाया है। प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एम। वेंकटेश्वर लू ने रविवार को बताया कि प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होंगे। इसके तहत 11, 18, 23 और 29 अप्रैल तथा 6, 12 और 19 मई को मतदान होगा। मतों की गिनती 23 मई को होगी।
चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही प्रदेश में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गयी है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में 7।79 करोड़ पुरुष, 6।61 करोड़ महिला तथा 8374 अन्य समेत 14।4 करोड़ मतदाता हैं। मतदान के लिये कुल 91709 मतदान केन्द्र बनाये जाएंगे। लू ने बताया कि लोकसभा चुनाव के साथ ही निघासन विधानसभा का उपचुनाव भी कराया जाएगा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के 71 सांसद जीते थे। इसके अलावा सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। वहीं, बसपा का सुपडा साफ़ हुआ था। यही नही 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने जबर्दस्त प्रदर्शन करते हुए सत्ता हासिल की थी।
हालांकि उसके बाद भाजपा को लगातार हार का मुह देखना पड़ा था। जिसमे भाजपा के लिये सबसे बड़ा झटका पिछले साल प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा चुनावों के साथ नूरपुर विधानसभा के उपचुनाव थे। इसमें कैराना में उसकी हार ने एक इबरत तहरीर किया था। वही गोरखपुर जो योगी आदित्यनाथ की खुद की सीट थी से भी भाजपा को निराशा हाथ लगी थी। नूरपुर सीट पर कुछ दिनों पहले ही सीटिंग भाजपा विधायक की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद भाजपा ने दिवंगत विधायक के पत्नी को टिकट दिया था। मगर सिम्पैथी वोट भी यहाँ भाजपा के काम नही आ सका था। फूलपुर में भी सपा बसपा गठबंधन ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया था।
इस तरह उपचुनावों में विपक्ष ने भाजपा को शिकस्त देकर अपने लिये सम्भावनाएं जगायी थीं। ऐसे में गठबंधन को लोकसभा चुनाव से काफी उम्मीदे हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने जा रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाये जाने के बाद वह आशा और उत्साह से लबरेज है। अभी तक खुद को सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक सीमित रखने वाली प्रियंका का करिश्मा कांग्रेस को कहां तक ले जाता है, यह इस चुनाव से तय हो जाएगा।
वही दुसरे तरफ ओमप्रकाश राजभर द्वारा लगातार अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करना भाजपा के लिये एक अलग परेशानी का सबब हो सकता है। नाराज़ चल रही अनुप्रिया हेतु भी भाजपा उनको मानने में व्यस्त है। अब देखना होगा कि एक तरफ सपा बसपा गठबंधन तो दूसरी तरफ कांग्रेस खुद के बल पर भाजपा के लिये कितनी दिक्कत पैदा करती है।
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