तारिक आज़मी
आज बसपा प्रमुख ने साफ़ कर दिया कि गाजीपुर लोकसभा सीट से अफजाल अंसारी बसपा के प्रत्याशी होंगे। इस घोषणा के बाद जहा अफजाल-मुख़्तार समर्थको में खासी ख़ुशी दिखाई दे रही है वही भाजपा खेमे में एक बेचैनी सी दिखाई दे रही है। इस कड़ी में मऊ सदर विधायक मुख़्तार अंसारी के पुत्र और युवा बसपा नेता अब्बास अंसारी ने कहा कि गरीबो और मज़लूमो की मदद के लिये मैं और मेरा परिवार हमेशा खड़ा रहा है। वर्त्तमान समय में उत्तर प्रदेश से मुस्लिमो की नुमाईन्दगी करने के नाम पर सदन में जीरो की संख्या है। हालात ऐसे है कि हमारे मुल्क में शिक्षा मंत्री खुद इंटर पास होते है। तालीम का दारोमदार उसको दिया जाता है जो गुजिस्ता सालो सालो में हुवे चुनावों में अपनी डिग्री अलग अलग बता कर काम चला लिया। इसी तरह से मुस्लिम नुमाइंदगी के तौर पर सूबे से एक भी मुस्लिम सांसद नही है।
उन्होंने कहा कि आवाम की आवाज़ को और उनके तकलीफों को समझते हुवे बहन कुमारी मायावती ने जो विश्वास दिखाया है उसके ऊपर हम अपनी भरसक कोशिशो के साथ खरे उतरेगे और गाजीपुर की आवाम इन्साफ की आवाज़ के साथ चलेगी। अफजाल अंसारी साहब ने गाजीपुर के विकास के लिए हमेशा अपना योगदान दिया है और आगे भी देते रहेगे,
बताते चले कि गाजीपुर लोकसभा सीट से बसपा ने अंसारी परिवार पर विश्वास जताते हुवे अफजाल अंसारी को टिकट दिया है। अफजाल अंसारी इसके पहले गाजीपुर सीट पर एक बार सांसद रह चुके है। अफजाल अंसारी ने यह सीट 2004 लोकसभा चुनावों में सपा के टिकट पर जीता था। इसके बाद बनी दूरियों से अफजाल ने पहले बसपा और फिर उसके बाद खुद की पार्टी कौमी एकता दल का निर्माण कर लिया था। 2017 के चुनावों से पूर्व कौमी एकता दल का विलय सपा में होने की बात चली। इसकी घोषणा भी हो चुकी थी, परन्तु आखरी मिनट में बात नही बनी और कौमी एकता दल का अंततः विलय बसपा में हुआ। अफजाल अंसारी को कौमी एकता दल और अंसारी परिवार का थिंक टैंक समझा जाता है। 2004 लोकसभा चुनावों में मुलायम सिंह यादव ने गाजीपुर की एक जनसभा में अफजाल अंसारी को गाजीपुर का गांधी कहकर भी संबोधित किया था। पांच बार विधान सभा और एक बार लोकसभा में गाजीपुर का नेतृत्व करने वाले अफजाल अंसारी का राजनितिक योगदान गाजीपुर के लिए कम नही है।
अगर संभावनाओ पर नज़र डाले तो अफजाल अंसारी की सम्भावनाये अति प्रबल दिखाई दे रही है। सीट पर दावेदारी के लिए मोदी सरकार के मंत्री मनोज सिन्हा जहा एक बार फिर इसी सीट पर ताल ठोक रहे है, वही कांग्रेस ने भी अजीत प्रताप कुशवाहा पर दाव खेला है। इस सबके बीच एक अन्य प्रत्याशी जिसका पारिवारिक राजनितिक इतिहास हर प्रत्याशी को इज्ज़त से झुका देगा है कम्युनिष्ट पार्टी का प्रत्याशी। मनोज अफजाल अंसारी खुद को सरजू पाण्डेय का शिष्य बताते है। अफजाल अंसारी ने तो भरी सभा में खुद को सरजू पाण्डेय का शिष्य बता चुके है। स्व। सरजू पाण्डेय एक ऐसे नेता था जिनका सम्मान पंं। नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक करते थे। पूर्वांचल की आवाज को देश के सर्वोच्च सदन में बेबाकी से रखने वाले सरयू पाण्डेय भले कम्यूनिस्ट पार्टी से आजीवन जुड़े रहे। इस बार सीपीआई ने उनके पुत्र डा। भानु प्रकाश पाण्डेय को मैदान में उतारा है। गठबंधन के प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने राजनीति का ककहरा जिससे सीखा उसी के पुत्र के खिलाफ इस दफा चुनाव मैदान में उतरना होगा। भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा भी स्व। पाण्डेय की प्रशंसा करते नहीं थकते हैं लेकिन उनका भी इन्ही के पुत्र से मुकाबला है। ये स्थिति कही न कही से अफजाल अंसारी के लिए पेशोपेश की स्थिति रह सकती है।
वैसे इस लोकसभा की भौगोलिक और मतों के प्रतिशत से स्थिति जोड़े तो यहाँ मुस्लिम मतदाता 11% के करीब है। वही दलित मतदाताओ का प्रतिशत 21 रहा है। कुल मिलाकर इस 31 प्रतिशत मतों की संख्या को अगर ध्यान दे तो स्थिति कुछ अलग हो सकती है। इसके अलावा यादव मतों में भी अफजाल अंसारी की अच्छी पकड़ है। दूसरा गेम चेंजर वोट माना जाता है राजपूत वोट। कुछ समय पहले तक ये राजपूत वोट कम्युनिस्ट को जाते थे मगर समय के बदलाव के बाद ये मत कई बार विभाजित हुवे है। अब अगर 2014 के चुनावों पर नज़र डाले तो और स्थिति साफ़ हो सकती है। पिछली बात मोदी लहर के बीच मनोज सिन्हा मात्र 32 हज़ार वोटो से जीत सुनिश्चित किया था। इस स्थिति में अब जब सपा और बसपा एक साथ खड़े है तो इस वोट बैंक में वृद्धि की संभावना प्रबल हो रही है। अब अगर सपा और बसपा का ट्रेडिशनल वोट अफजाल अंसारी को मिलता है तो फिर शायद मनोज सिन्हा की मुश्किलें बढ़ सकती है। वही दूसरी तरफ मौजूदा इस क्षेत के विधायको पर नज़र डाले तो ५ विधानसभा क्षेत्र मिलाकर बने इस लिक्सभा में गाजीपुर सदर, ज़मानिया और जखनिया विधान सभा भाजपा के खाते में गई है। इन सीट पर हार जीत का अंतर बहुत ज्यादा नही रहा है। वही जंगीपुर और सैदपुर की सीट सपा के खाते में गई है। इन सीट पर भी हार जीत का अंतर बहुत अधिक नही रहा है। अब अगर विधायको के प्राप्त मतों को लोकसभा में सपा अपने पास रखने में कामयाब होती है और बसपा का वोट भी मिलता है तो सीट पर लगाई रोचक हो जायेगी
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