अनिल कुमार
पटना। शायद आपको फरवरी 2014 याद न हो। हम आपको याद दिलाते है। फरवरी 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री और सुशासन बाबु के नाम से अपनी पार्टी द्वारा संबोधित किये जाने वाले नितीश कुमार ने एक बड़ा बयान जारी करके कहा था कि मर जाऊँगा मगर भाजपा का साथ अब नही लूँगा। वक्त के साथ बाते पर धुल पड़ती गई और वैसे भी नेताओ के बयान का क्या भरोसा। वक्त गुज़रा और महागठबंधन में शामिल होकर नीतीश कुमार ने सत्ता हासिल कर लिया। मगर राजद से चली टशन के कारण नीतीश की करीबिया सुशील मोदी से बढती गई और सुशील मोदी के प्रयास से नीतीश ने खुद को महागठबंधन से अलग करके भाजपा का दामन थाम लिया।
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लोकसभा चुनाव 2019 में नीतीश ने भले भाजपा को झुका कर अपनी पसंद की और अपनी संख्या की सीट ले लिया हो मगर भाजपा के साथ टशन आज भी बरक़रार है। इसका जीता जागता उदहारण आज हाजीपुर लोकसभा में एनडीए की बैठक में देखने को मिला जब जदयू और भाजपा कार्यकर्ता आपस में ही भीड़ पड़े और जमकर हंगामा हुआ। हंगामे का कारन था कि भाजपा राम मंदिर मुद्दे को मुख्य चुनावी मुद्दा बना कर चुनाव लड़ना चाहती थी, मगर जदयू इस क्षेत्र में मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के मद्देनज़र इस मुद्दे को किनारे रखना चाहती थी। बात इतनी बढ़ी कि जूता लात तक की नौबत आ गई। हंगामा करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओ ने मंच से जदयू नेताओ को नीचे उतारने और उनके साथ बदसुलूकी करने का भी प्रयास किया।
बताते चले कि केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के भाई पशुपति पारस के साथ एनडीए की समन्वय बैठक का आयोजन किया गया था। इसी दौरान मंदिर की बात पर भाजपा कार्यकर्ता भड़क उठे। भाजपा कार्यकर्ता जबरदस्त हंगामा करने लगे और मंच के नजदीक पहुंच टेबल पीटने लगे। मंच से उतर स्थानीय बीजेपी विधायक ने समझाने की भी कोशिश की। इतना ही नहीं, उन्होंने मंच से ही मंदिर मुद्दे पर बयान को लेकर माफी भी मांगी। मगर हंगामा यहीं नहीं रुका और हाथापाई भी होने लगी।
बैठक में हंगामे के दौरान हिन्दू जागरण मंच के जिला अध्यक्ष भारत भूषण ने कहा कि हमलोग धारा 370 की बात नहीं करें। कैसे चुनाव जितना है उसकी बात करे। हमलोग जब गांव में जाते हैं तो लोग पूछते हैं कि आपका मेनिफेस्टो था उस पर क्या काम हुआ? हम लोग क्या जबाब दें? वहीं, लोजपा प्रत्याशी पशुपति पारस ने कहा कि अभी आपके आने से पहले लोगो में नाराजगी दिखी। मीडिया और प्रेस में नाराजगी होती है। पब्लिक में कोई नाराजगी नहीं होती है।
बहरहाल ये हंगामा यह तो साबित कर गया कि दोनों दलों के बीच आपसी वैचारिक मतभेद है। इस मतभेद का असर चुनावों पर कितना पड़ता है ये देखने वाली बात होगी। वैसे भी मैनिफेस्टो के बात पर भाजपा को मीडिया के तीखे सवालो का सामना करना पड़ सकता है। अब देखना ये होगा कि एनडीए पर बिहार में इस मतभेद का क्या असर पड़ता है।
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