आदिल अहमद
: भारत में एक के बाद एक कंपनियां डूबती जा रही हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नज़र नहीं आ रहा है। इस बीच जेट और किंगफिशर के बाद पवन हंस आर्थिक संकट से जूझ रही है और उसके कर्मचारी अपने वेतन को लेकर दर-दर भटक रहे हैं।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में हेलीकॉप्टर सेवा देने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी पवन हंस के प्रबंधन ने कहा कि वित्त वर्ष 2018-2019 में कंपनी की आर्थिक स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई है और कंपनी 89 करोड़ रुपये का घाटा झेल रही है, जिसके कारण जेट एयरवेज़ और किंगफिशर एयरलाइंस के बाद पवन हंस लिमिटेड भी आर्थिक संकट से घिर गई है और अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे सकी है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, पवन हंस प्रबंधन ने 25 अप्रैल को अपने कर्मचारियों को एक सर्कुलर जारी करते हुए कहा कि वह पवन हंस की संकटग्रस्त आर्थिक स्थिति के कारण कर्मचारियों को अप्रैल महीने का वेतन जारी कर पाने की हालत में नहीं है।
पवन हंस ने अपने सर्कुलर में कहा गया, ‘कंपनी के पूरे प्रदर्शन की समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि कंपनी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। कंपनी आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रही है और भविष्य भी अस्थिर नज़र आ रहा है क्योंकि कंपनी के पुराने व्यापार और साथी अब आने वाले समय को लेकर संशय में हैं। वित्त वर्ष 2018-2019 में कंपनी की आर्थिक स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई है और कंपनी 89 करोड़ रुपये का घाटा झेल रही है।’ कंपनी ने बताया कि कंपनी की कमाई दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है वहीं ख़र्चे बढ़ गए हैं, ख़ासकर कर्मचारियों पर होने वाले ख़र्च। यह परिस्थिति तब और विकट नज़र आती है जब पवन हंस के कई ग्राहकों ने पुराना बक़ाया नहीं चुकाया है जो क़रीब 230 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
दूसरी ओर इस मामले पर पवन हंस कर्मचारी संघ ने कहा है कि कर्मचारियों के वेतन को रोकना अमानवीय है, कर्मचारियों के वेतन को अभी बढ़ाया जाना था और ऐसे में इसे रोक दिया गया है। वहीं कंपनी के कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्हें एरियर दिया गया है। संघ ने कहा कि प्रबंधन के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हम प्रदर्शन के तौर पर काला रिबन बांध कर काम करेंगे, साथ ही संघ ने प्रबंधन को सीबीआई और कैग के पास इसकी शिकायत करने की धमकी भी दी है। बता दें कि पिछले साल मोदी सरकार ने पवन हंस की 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने के फ़ैसले को वापस ले लिया था। फिलहाल पवन हंस के पास 46 हेलीकॉप्टरों का बेड़ा है।
भारत में एक के बाद एक कंपनियों के डूबने और आर्थिक संकट से जूझते देख कई आर्थिक जानकारों का कहना है कि आज देश की इन कंपनियों की जो स्थिति है उसके लिए कोई और ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि केवल और केवल सरकार की ग़लत नीतियां ही इसकी ज़िम्मेदार हैं। जानकारों की मानें तो यह अभी शुरुआत है आने वाले दिनों में और कई पुरानी एवं बड़ी कंपनियों का यह हाल होने वाला है क्योंकि मोदी सरकार की ज़्यादातर आर्थिक नीतियां भारत के कुछ ख़ास उद्योगपतियों के इर्द-गिर्द घूमती नज़र आ रही हैं।
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