विधि-विधान से पूजीं गई मां शैलपुत्री शान्ति और उत्साह प्रदायिनी है शैलपुत्री

प्रदीप दुबे विक्की

कांवल,भदोही।’जय माता की’ के नारो से जितनें भी देवी मन्दिर थे सब गुंजायमान हो उठे। गगनभेदी नारे माता रानी के भक्ति के प्रमाण दे रहे थे तो भगवान सूर्य भी भक्तजनों के आराधना में भक्तों का साथ अपनें रक्तिम वर्ण के रश्मियों से दे रहे थे। मौका था वासन्तिक नवरात्र के प्रथम दिन का। ज्ञातव्य हो कि वासन्तिक नवरात्र शनिवार को शुरु हो गया। देवी मन्दिरों में जहां माता रानी की शक्ति साधकों द्वारा पूजा की गयी वहीं कुछ देवी भक्तों द्वारा अपने घर पर ही कलश स्थापन कर माता भगवती की पूजा की गयी। चूंकि शनिवार को नवरात्र का पहला दिन था इसलिये मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री की पूजा की गयी। उनके बारें में बताया जाता है कि ये माता शान्ति और उत्साह को प्रदान कर डर का नाश करती है। ये देवी यश, विद्या, धन और मोक्ष को प्रदान करने वाली है। ज्ञात हो कि नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। बताया जाता है कि एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *