फ़ारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी।
यूं तो रमजान का पूरा महीना मोमिनों के लिए खुदा की तरफ से अजमत, रहमत और बरकतों से लबरेज है। लेकिन अल्लाह ने इस मुबारक महीने को तीन अशरों में तक्सीम किया है। पहला अशरा खुदा की रहमत वाला है।
एक से 10 रमजान यानी पहले अशरे में खुदा की रहमत नाजिल होती है। रमजान का चांद नजर आते ही शैतान कैद कर लिया जाता है। जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। अल्लाहतआला अपनी रहमत से गुनाहगारों को अजाब से निजात देते हैं। नेक काम के सवाब में 70 गुना इजाफा कर दिया जाता है। रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया कि अगर लोगों को मालूम हो जाए कि रमजान क्या चीज है तो मेरी उम्मत साल के 12 महीने रमजान होने की तमन्ना करेगी। रमजान का महीना रहमत व बरकत वाला है। हर मर्द, बच्चे, औरत और बूढे़ रोजे का साथ नमाज-तरावीह में मशगूल रहते हैं। पहला अशरा खत्म और दूसरा अशरा शुरू होने वाला है। लिहाजा उलमा ने पहले और दूसरे अशरे की फजीलत बयान कर रहे हैं।
हर ‘अशरा’ में इबादत का है बेशुमार सवाब
माह-ए-रजमान को नेकियों का मौसम-ए-बहार कहा गया है। यह इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। रोजा इस्लाम का पांच स्तम्भों में से एक है। जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है। वह रमजान में इबादत गुलजार बन जाता है। सब्र के साथ समाज के गरीब और जरूरतमंदों के साथ हमदर्दी का महीना भी है। रोजादारों को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है। जो 10-10 दिनों का होता है। हर 10 दिन को एक ‘अशरा’ कहते हैं। इस महीने में पूरे कुरान की तिलावत की जाती है। हर अशरे में इबादत करने से बेशुमार सबाव मिलता है।
रमजान भर इबादत गुजार
कुरान की तिलावत, नफल नमाज आदि पढ़ते हैं। हर दिन बराबर है। इस माह का पहला अशरा ‘रहमत’ का होता है। अल्लाह अपने बंदों पर रहमत फरमाता है। हाफिज सईद मोहम्मद ने बताया कि इस अशरे में लोगों को चाहिए कि हर इबादत के बाद रब से दुनिया और आखरत (मरने के बाद) के लिए रहमत मांगें। दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ (गुनाहों की माफी) का है। उन्होंने कहा कि अल्लाह इबादत करने वालों के गुनाहों को माफ कर देता है। जो रब की सच्चे दिल से इबादत करता है। गुनाहों से तौबा कर दुआ मांगता है तो इस अशरे की बरकत से अल्लाह उसकी गुनाहों को माफ कर देता है। वैसे तो रमजान का हर अशरा फजीलत भरा है। मगर अंतिम अशरा ‘जहन्नूम’ से मुक्ति (अशर-ए-बारात) खास होता है इसके साथ ही बताया कि इस अशरे के 10 दिनों में ही पांच ताक रातें (लैलतुल कद्र) होती हैं। जो रजमान के 21, 23, 25, 27 व 29 की रात है। इन रातों में इबादत का सवाब एक हजार माह के इबादत से भी अधिक है। इसी अशरे में शबीना, मुहल्ले की खैर-ओ-बरकत के लिए लोग एतकाफ पर बैठकर इबादत करते हैं।
फल दही का करें अधिक इस्तेमाल
डाक्टर वारिस अंसारी ने बताया कि गर्मी के मौसम होने की वजह से रोजेदार सहरी में भी फल का प्रयोग करें। इससे दिनभर शरीर में पानी की कमी नहीं होगी। हरीरा (मेवे का पेस्ट व तुर्री) के अपेक्षा दही के बने आइटम का ज्यादा प्रयोग करें। छाछ, मटठा के अलावा दही में फल मिलाकर खाएं। क्योंकि इससे भी गर्मी में शरीर को राहत मिलती है। पाचन ठीक रहता है। जबकि हरीरा को खाने से पेट भारी हो जाता है।
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