तारिक आज़मी
मौज का शहर दिल्ली.. पढ़े लिखो का शहर दिल्ली.. मासूमियत से सराबोर दिल्ली.. इस वक्त दिल्ली में लोकसभा चुनावों के नतीजो पर सब अपने अपने कयास लगा रहे है। मगर ज़मीनी हकीकत से बेखबर कयास तो देश में कई आ रहे है उसी तरह ये भी कयास अथवा कह सकते है एग्जिट पोल आ रहे है। कई एग्जिट पोल तो दिल्ली में पूरी सीट भाजपा के खाते में दे रहे है। जबकि हकीकी जमीन से ताल्लुक रखने वालो को ये बात हज़म नही हो रही है। यहाँ बड़ी पेचीदगी के साथ अगर सीट पर मतों के समीकरण को समझेगे तो यह समझ आ जायेगा कि वाकई एग्जिट पोल अपने मुल्क में ऐसा काम है कि पहले गलत किये कामो को दुबारा गलत करने का पैसा आपको मिलता हो।
खैर उनका जो पैगाम है वह अहले सियासत जाने, हम तो हकीकी ज़मीन से जुड़े बातो पर यकीन करते है तभी तो छोटे कद के बावजूद आपके दिलो में हमारे लिए मुहब्बत है। अच्छा लगता है सुनकर जब कोई अजनबी सा शक्स हमारा तार्रुफ़ जान कर कहता है कि ओह आपको पढता रहता हु बढ़िया लिखते है। ऐसा लगता है सीना गर्व से फुल गया हो। तो हम बात करते है हकीकत के जमीन से जुड़े एक सर्वे की। जिसके ऊपर नज़र डालने के बाद आपको खुद अहसास होगा कि एग्जिट पोल की चाहत में कैसे आपका वक्त बर्बाद करते लोग आपको हकीकत से रूबरू करवाना ही नही चाहते है। आज हालत हमारे ऐसे होते जा रहे है कि सच को छुपा कर, झूठ को दिखा कर, टीआरपी बढ़ा कर, सत्ता के पाले में खुद की जगह बनाते रहो बस पत्रकारिता हो गई।
वैसे कहने वाले तो हमसे भी कहते है कि आसन रास्तो से गुज़र जाइये जनाब, सच बोलने वाले तो सलीबो पर चढ़े है। तो मरहबा, इन सलीबो को भी एक सवार मिल रहा है। खैर आसान न सही मगर महात्मा गांधी के सिद्धांतो पर चलते हुवे उन्ही कठिन डगर को चुनते है। भले चुनौती लाख हो मगर मंजिल पुरसुकून होगी। वैसे भी हजारो ख्वाहिशे ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले। तो एक ख्वाहिश सच के जद्दोजहद की भी।
बहरहाल एग्जिट पोल कई चैनलों से लेकर डिजिटल मीडिया पर छाये हुवे है। हम किसी के एग्जिट पोल को गलत नही साबित कर रहे है। बस उन बड़े बड़े के बीच अपनी अदना सी बाते हम भी रखना चाहते है। एग्जिट पोल कई देखे। कई एग्जिट पोल दिल्ली के सभी 7 सीट पर भाजपा की फतह हासिली का दावा कर रहे है। ऐसा लगता है कि एक होड़ सी मची है कि दल विशेष को बहुमत एग्जिट पोल से ही दिलवा कर दम लेंगे। अगर ऐसे एग्जिट पोल के दावो को हकीकत माने तो काफी पैसे सरकार के बच जायेगे। फिर चुनाव में पैसो और वक्त के बर्बादी का क्या फायदा। एग्जिट पोल के लोगो को संपर्क करके ही हार जीत का फैसला किया जा सकता है।
अब आप खुद देखे दिल्ली की कुल सात लोकसभा सीटों में से तीन सीटों पर मुस्लिमों की काफी अहम भूमिका है। इन सीट पर मुस्लिम मतदाता गेम चेंजेर के तौर पर देखे जाते है। इस बार रमजान में मतदान के बाद ये कयास था कि मुस्लिम मतों पर इसका प्रभाव पड़ेगा और मुस्लिम मत इस बार कम पड़ेगे। मगर हुआ इसका उल्टा। मतदान के दिन खासकर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में अधिक मतदान हुआ है। चांदनी चौक, उत्तर पूर्वी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली में मुस्लिमों की तादाद अच्छी-खासी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर मुस्लिम समुदाय ने आप या कांग्रेस में से किसी एक पार्टी को अपना वोट दिया है तो ये चुनावी नतीजो को प्रभावित कर सकता है।
बीते रविवार 12 मई को दिल्ली की सभी सीटों पर 60.5% मतदान हुआ। वहीं मुस्मिम बहुल क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक मतदान देखने को मिला। चिलचिलाती गर्मी और रमजान के दौरान रोजा रखने के बावजूद मुस्लिम बहुल इलाके बल्लीमारान में 68.3% प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। वहीं शकूरबस्ती, मटिया महल और सीलमपुर में क्रमश: 68.7%, 66.9% और 66.5% मतदान दर्ज किया गया। चूंकि एक समुदाय से संबंधित मतदान का रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इन क्षेत्रों में कितने मुस्लिमों ने मतदान किया है। मुस्लिम बहुल इलाकों में अच्छी वोटिंग होने के कारण यही अनुमान लगाया जा रहा है कि इस मतदान में मुस्लिमों की संख्या अधिक रही है। वही दूसरी तरफ त्रिलोकपुरी में 65.4%, मुस्तफाबाद में 65.2%, बाबरपुर में 62.1% और चांदनी चौक में 59.4% प्रतिशत मतदान हुआ है। इसके अलावा अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्र जैसे मुस्तफाबाद और बाबरपुर में क्रमश: 65.22% और 62.14% प्रतिशत मतदान हुआ है।
अब अगर इसमें दलगत स्थिति देखे तो सभी दलों ने इस वोट पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए जमकर प्रचार किया था। मगर फायदे में यहाँ कांग्रेस ही दिखाई दे रही है। वर्ष 2014 में यहाँ आधा आधा वोट बट गया था। मगर इस बार स्थिति कुछ अलग है। वोटर खामोश थे। यही ख़ामोशी सभी दलों को बेचैन किये हुवे थी। खास तौर पर भाजपा को ये ख़ामोशी काफी खली। वही हमारे ग्राउंड लेवल पर हुवे सर्वे और जानकारी को आधार माने तो भाजपा के मुकाबिल कड़ी आप और कांग्रेस में से एक को चुनने के लिए इस बार मुस्लिम मतदाताओ ने कांग्रेस को तरजीह दिया। यहाँ तक हुआ कि आम आदमी पार्टी के मुस्लिम कार्यकर्ता भी इस बार मोदी के मुकाबिल राहुल गांधी के साथ खड़े नज़र आये है। वह भी कम प्रतिशत में नही बल्कि 85% मुस्लिम वोट कांग्रेस के खाते में गए है।
अब ऐसे हालात में अगर इस तीन सीटो पर भी भाजपा की जीत का दावा कोई एग्जिट पोल कर रहा है तो ये समझ से परे है और शायद जमीनी तपिश के दौर से नही गुज़रा हुआ सर्वे हो सकता है। अगर इन सीट पर भाजपा जीत दर्ज करती है तो फिर ये कहना कही से गलत नही होगा कि भाजपा को मुस्लिम मत मिले है। जबकि हकीकत ये है कि भाजपा मुस्लिम मतदाताओ के दिल में अपने लिए बैठी मेल को साफ़ नही कर पाई है। अब अगर हालत का जायजा ले तो फिर अन्य समुदाय के मतों में अकेले भाजपा ही वोट लेने की स्थिति में नही है। उन्ही मतों में कांग्रेस भी दावेदार है और आम आदमी पार्टी भी दावेदार है। अब अगर दोनों पार्टियों ने 20 प्रतिशत भी मत अपने खाते में किया है तो फिर कांग्रेस का पल्ला भारी रहेगा और कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओ के बल पर तीन सीट पर बढ़त बना रही है। ऐसी स्थिति में 7 लोकसभा सीट में से ३ कांग्रेस के खाते में नज़र आ रही है।
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