करिश्मा अग्रवाल
भोपाल. मध्य प्रदेश के भोपाल सीट पर भाजपा का एक लम्बे समय से कब्ज़ा रहा है। इस बार भाजपा ने संघ के दबाव में भले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को टिकट दे दिया है, मगर साध्वी की राहे आसान तो नही नज़र आ रही है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जो मालेगाव ब्लास्ट की आरोपी है और ज़मानत पर रिहा है को टिकट देने के पीछे संघ की सोच रही कि भगवा अथवा हिन्दू आतंकवाद को मुद्दा बना कर सियासी फायदा उठाया जाए। मगर इस बार ये तीर शायद गलत निशाने पर लग गया जब टिकट मिलते के साथ ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के विवादित बयानों ने उनको हाशिये पर ला दिया।
मामला अभी ठंडा भी नही हो पाया था कि इसी बीच उन्होंने बाबरी मस्जिद के सम्बन्ध में बयान देकर नये विवाद को जन्म दे दिया था। इस बयान पर भी वो ट्रोल हुई और फिर सबसे अधिक नुकसान देह बयान उनका दिग्विजय सिंह को लेकर थे। सूत्र बताते है कि उनके इस बयान के बाद जहा संघ ने उनको तलब कर लिया था और उन्हें बयान वापस लेना पड़ा था वही दूसरी तरफ उनके साथ के लोग भी इसके बाद उनके विरोध में आ गए थे। इस दौरान ट्रोलर्स ने तो उनके उस बयान को भी वायरल करना शुरू कर दिया था जिसमे उन्होंने शिवराज को श्राप देने की बात कही थी।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को टिकट मिलने के बाद सूत्र बताते है कि भाजपा की स्थानीय इकाई में भी दो फाड़ हो गये। एक विधायक प्रत्याशी ने तो साफ़ साफ़ प्रज्ञा ठाकुर के प्रचार को मना कर दिया था। भाजपा की इकलौती मुस्लिम विधायक प्रत्याशी रही महिला नेता ने साफ़ साफ़ कहा था कि वह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का प्रचार करने में असमर्थ है। अगर ज़मीनी हकीकत को नज़रअंदाज़ न करे तो साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को टिकट देकर संघ ने प्रज्ञा को थोपा है। बीजेपी पालियामेंट्री पार्टी उन्हें प्रत्याशी बनाने के मूड में नहीं था। ऐसे में बीजेपी से जुड़ा कार्यकर्ता साध्वी के प्रचार में पूरी तरह जुट नहीं पा रहा है। वही दूसरी तरफ जो लोग प्रचार में लगे भी है तो वह भी पुरे मन से नही लगे है। वही इस दौरान विवादित बयानों ने स्थिति और खराब कर दी है। हार्डकोर हिंदुत्ववादी छवि वाली प्रज्ञा ने बाबरी ढांचा विध्वंस पर गर्व होने की बात कहकर अपने आपको उदारवादी मुस्लिम वोटरों और ट्रिपल तलाक मुद्दे को लेकर बीजेपी के समर्थन में आई मुस्लिम महिलाओं का समर्थन भी गंवा सकती हैं।
वही दूसरी तरफ कांग्रेस ने दिग्विजय को काफी पहले प्रत्याशी घोषित करके बढ़त ले ली थी। बीजेपी ने भोपाल से प्रत्याशी चयन में काफी वक्त लिया। बाद में प्रत्याशी घोषित किया गया तो विवादित छवि और मालेगांव और मक्का मजिस्द मामले में आरोपी होने के कारण स्थिति और खराब हुई। वही सूत्र बताते है कि प्रज्ञा पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी आरोप लग रहे हैं। हिंदुओं में भी कुछ हद तक उनको लेकर नाराजगी। उनका मानना है कि प्रज्ञा, असीमानंद जैसे लोगों ने हिंदू धर्म पर लोगों को अंगुली उठाने का मौका दिया। मुकाबला एक तरफ राजनीतिक चातुर्य और लंबी सियासी अनुभव वाले दिग्विजय सिंह का प्रज्ञा से है। प्रज्ञा को राजनीति का अनुभव नहीं है। छवि कट्टरवादी हिंदु की है। विरोधाभासी और विवादित बयानों के कारण माना जा रहा है कि बीजेपी के कई प्रदेश स्तर के नेता प्रज्ञा के पक्ष में खुलकर सामने नहीं आ रहे। ऐसी स्थिति में प्रज्ञा ठाकुर का साथ देने के लिए उनका परिवार भी खुल कर सामने तो है मगर सूत्र बताते है कि आपसी टशन भी है। दुसरे उनके सेवक और ऐसे कार्यकर्ता जो प्रज्ञा ठाकुर के समस्त धार्मिक कार्यो में हमेशा उनके साथ रहते थे उनका प्रचार के दौरान नज़र नही आना भी आँखों को चुभता है।
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