आफताब फारुकी
नई दिल्ली. अदालतों के फैसलों के खिलाफ जाकर उसका विरोध सडको पर करना अब आम बात होती जा रही है। वैसे लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी का शायद यही एक फायदा है कि अदालतों के फैसलो के खिलाफ सडको का सहारा लिया जा सकता है। ताज़ा मामला है सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को यौन उत्पीड़न के आरोपों से सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की आंतरिक समिति ने क्लीनचिट देने का। अदालत ने जस्टिस गंगोई को क्लीन चिट देते हुये कहा है कि उसे उनके खिलाफ कोई ‘ठोस आधार’ नहीं मिला। इसके बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के बाहर महिला वकील और कुछ एनजीओ के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। नारेबाजी के बीच कुछ प्रदर्शनकारियों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने चीफ जस्टिस पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये थे।
सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल के कार्यालय के एक नोटिस में कहा गया है कि न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट ‘सार्वजनिक नहीं की जायेगी।’ समिति में दो महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी भी शामिल थीं। समिति ने एकपक्षीय रिपोर्ट दी क्योंकि इस महिला ने तीन दिन जांच कार्यवाही में शामिल होने के बाद 30 अप्रैल को इससे अलग होने का फैसला कर लिया था।
यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी ने कोर्ट की आंतरिक समिति द्वारा सोमवार को उन्हें क्लीन चिट दिये जाने पर कहा कि वह ‘बेहद निराश और हताश’ हैं। उन्होंने कहा कि भारत की एक महिला नागरिक के तौर पर उनके साथ ‘घोर अन्याय’ हुआ है और उनका ‘सबसे बड़ा डर’ सच हो गया महिला ने प्रेस के लिए एक बयान जारी कर कहा कि वह अपने वकील से परामर्श कर आगे के कदम के बारे में फैसला करेंगी।
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