तारिक आज़मी
वाराणसी. न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही शत्रु और मित्र निर्धारित होते है। जब हम पैदा होते हैं तब न तो हमारा कोई मित्र होता है और न ही कोई शत्रु पर धीरे धीरे व्यवहार ऐसा होता जाता है कि हम किसी के उत्कर्ष की कामना करते हैं तो किसी के पराभव की। उक्त बातें स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने लोकतन्त्र बचाओ यात्रा के क्रम में मध्यमेश्वर में व्यक्त किये।
उन्होंने आगे कहा कि यदि हमारे आस्था के प्रतीक स्थान ही नहीं रहेंगे तो हमारा गौरव हमारा आत्मसम्मान कहाँ रह पाएगा ? आप सभी लोग साक्षी हैं, काशीवासी हैं सब देख पा रहे हैं, पर कोई बोलने की हिम्मत आज नहीं कर रहा। ऐसी परिस्थिति की कल्पना किसी ने नहीं की थी कि काशी जैसी धर्मनगरी में भी कभी ऐसा होगा।
इस अवसर पर श्रीभगवान् जी, ब्रह्मचारी वैराग्य स्वरूप, दण्डीनाथ धर्मदत्त, साध्वी पूर्णाम्बा, भारत धर्म महामण्डल के न्यासी श्रीप्रकाश पाण्डेय, ब्रह्मचारी केशवानन्द, महावीर नमकीन के किशन जायसवाल, जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता देवेन्द्र पाठक, कृत्तिवासेश्वर मन्दिर के न्यासी मदन मोहन देववंशी, महामृत्युंजय मन्दिर के महन्थ कामेश्वर दीक्षित, गंगा औषधि केन्द्र के निदेशक रवि त्रिवेदी, प्रेम जायसवाल, श्याम जायसवाल, राम जायसवाल, तारिभुवनदास आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
नोटा पर कर सकते है विचार
स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने कहा है कि गठबन्धन की प्रत्याशी शालिनी और कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय दोनों को ही यह कहा था कि यदि काशी से मन्दिर तोडवा को हराने के लिए एक हो जाएँ तो काशी की रक्षा हो सकती है, पर दोनों की ओर से ही कोई उत्तर नहीं आया और उत्तर आने की कोई आशा भी नहीं है। ऐसे में अगले दो दिनों तक इस बात पर विचार होगा कि काशी में रामराज्य के समर्थक किस ओर जाएँ। क्योंकि रामराज्य यह मानती है कि अधर्मी और पापी का समर्थन देने पर पाप लगता है।
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