वाराणसी – बीएसऍफ़ के बर्खास्त सिपाही तेजबहादुर ने नामांकन ख़ारिज होने पर खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा
आफताब फारुकी
नई दिल्ली। बीएसऍफ़ के बर्खास्त सिपाही तेजबहादुर जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे का परचा ख़ारिज होना चर्चा का विषय बना था। अब यह मुद्दा एक बार फिर गर्म है क्योकि तेज बहादुर ने नामांकन रद्द होने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बताते चले कि तेज बहादुर यादव ने पहले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया था। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। समाजवादी पार्टी ने पहले शालिनी यादव को टिकट दिया था। तेज बहादुर का पर्चा रद्द होने के बाद अब समाजवादी पार्टी की ओर से शालिनी यादव ही पीएम मोदी के मुकाबले में हैं।
Dismissed BSF jawan Tej Bahadur Yadav approaches Supreme Court challenging rejection of his nomination as Samajwadi Party candidate from Varanasi Lok Sabha Constituency. Advocate Prashant Bhushan is appearing for Yadav (file pic) pic.twitter.com/Wr5x1zqZh7
— ANI (@ANI) May 6, 2019
बताते चले कि अपने एक वीडियो से चर्चा में आये बीएसऍफ़ के तत्कालीन जवान तेज बहादुर यादव ने सरकार पर आरोप लगाते हुवे खुद का एक वीडियो बनाया था, इस वीडियो में उन्होंने आरोप लगाया था कि जवानों को घटिया खाना दिया जा रहा है। इसके बाद उन्हें सीमा सुरक्षा बल से बर्खास्त कर दिया गया था। अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ बकौल तेज बहादुर वह न्यायालय के शरण में भी गए है और मामला विचाराधीन है।
इधर तेज बहादुर और उसके वीडियो प्रकरण को समाज भूल ही रहा था कि तेज बहादुर ने खुद की याद और खुद की पहचान को पुनः ताज़ा करते हुवे वाराणसी संसदीय सीट से अपना परचा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दाखिल कर दिया। इसके बाद 29 अप्रैल को अचानक राजनितिक उथल पुथल के बीच जब शालिनी यादव अपना नामांकन जुलूस लेकर निकल चुकी थी तो सपा ने प्रत्याशी बदलते हुवे तेज बहादुर यादव को अपना प्रत्याशी बना दिया। इसके साथ ही तेज बहादुर ने एक परचा और दाखिल कर दिया तथा शालिनी यादव ने भी अपना नामांकन सपा प्रत्याशी के तौर पर दाखिल किया।
पर्चो की जाँच के दौरान पहले 30 अप्रैल को तेज बहादुर के निर्दल प्रत्याशी के तौर पर परचा ख़ारिज हुआ उसके बाद एक जद्दोजहद चली। आखिर दुसरे दिन यानी १ मई को जिला निर्वाचन अधिकारी सुरेन्द्र सिंह ने तेज बहादुर यादव का परचा दोपहर ३ बजे के बाद ख़ारिज कर दिया। जिला निर्वाचन अधिकारी ने तेज बहादुर द्वारा पेश नामांकन पत्र के दो सेटों में ‘कमियां’ पाते हुए उनसे एक दिन बाद अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा था। उन्होंने बीएसएफ़ से बर्खास्तगी को लेकर दोनों नामांकनों में अलग अलग दावे किए थे। इस पर जिला निर्वाचन कार्यालय ने यादव को नोटिस जारी करते हुए अनापत्ति प्रमाण पत्र जमा करने का निर्देश दिया था। यादव से कहा गया था कि वह बीएसएफ से इस बात का अनापत्ति प्रमाण पत्र पेश करें जिसमें उनकी बर्खास्तगी के कारण दिये हों।
इस मामले में जिला मजिस्ट्रेट सुरेन्द्र सिंह ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 के हवाले से एक नोटिस जारी किया था जिसका जवाब 30 मई को ही लग गया था। इसके बाद धारा 33 का हवाला देते हुए कहा कि यादव का नामांकन इसलिये स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि वह निर्धारित समय में “आवश्यक दस्तावेजों को प्रस्तुत नहीं कर सके।” अधिनियम की धारा 9 राष्ट्र के प्रति निष्ठा नहीं रखने या भ्रष्टाचार के लिये पिछले पांच वर्षों के भीतर केंद्र या राज्य सरकार की नौकरी से बर्खास्त व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है। जबकि धारा 33 में उम्मीदवार को चुनाव आयोग से एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है कि उसे पिछले पांच सालों में इन आरोपों के चलते बर्खास्त नहीं किया गया है।
हालांकि यादव ने दावा किया था कि उन्होंने चुनाव अधिकारियों को आवश्यक दस्तावेज सौंपे थे। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में तेज बहादुर यादव की पैरवी प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण करेगे। अब देखना होगा कि तेज बहादुर का मामला क्या सुप्रीम कोर्ट में टिक पायेगा अथवा जिला निर्वाचन अधिकारी सुरेन्द्र सिंह का दावा वहा भी साबित हो जायेगा।