प्रदीप दूबे “विक्की”
औराई भदोही। गौरक्षा के नाम पर देश के कई हिस्सों में अच्छी खासी हिंसा देखने को मिली। प्रदेश में योगी सरकार के शासन में आते ही मामले में सख्ती भी हुई और गौरक्षा के लिए उपाय शुरू हुवे। इसी कड़ी में सबसे बड़ी समस्या अन्ना पशुओ में गौवंश को लेकर हुई। शासन से आदेश मिलने के बाद हर जिले में कई गौशालाओ का निर्माण हुआ। खाली पड़े सरकारी भवनों को गौशाला के रूप में प्रयोग किया गया। इन गौशालाओ के रख रखाव और अन्ना गौवंशो हेतु सरकार ने बड़ा फंड भी रिलीज़ कर डाला। आम जनता की भावनाओ को भी तसल्ली मिली और वही किसानो को भी अन्ना पशुओ से सुकून महसूस होना शुरू हुवा। मगर इन अस्थाई गौशालाओ में बिना खान पान की उचित व्यवस्थाओ के इन गौवंशो का भूख प्यास से तड़प कर मरने की सूचनाये आने लगी। स्थिति ऐसी है कि जहा एक तरफ हिन्दू समाज के आस्था का प्रतीक गाय वही मुस्लिम समाज के लिए एक बेजुबान जानवर पर ज़ुल्म जैसे आस्था से जुडी बाते अब सामने आने लगी है।
औराई में बंद पड़ी चीनी मिल के आसपास क्षेत्र में फैली बदबू का सबब जानने के लिए हमारे प्रतिनिधि प्रदीप दुबे “विक्की” उक्त गौशाला परिसर में पहुच जाते है। वहा का नज़ारा देख कर उनके भी पसीने गर्मी से नही बल्कि बेजुबान जानवरों की दुर्दशा को देख कर छुट पड़ते है। गौरतलब है कि जिले के औराई में बंद पड़ी चीनी मिल परिसर में अस्थाई गोशाला का निर्माण किया गया है। जिसमें गोवंशीय आवारा पशुओं से किसानों की फसलों को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह गौशालाओं का निर्माण किया गया है। सरकार की तरफ से देखरेख करने वाली संस्थाओं को बकायदा चारे और पानी के लिए पैसा भी दिया जा रहा है, लेकिन भीषण गर्मी में पशुओं की हालात दिन पर दिन बद्दर हो रही है। चीनी मिल परिसर से लगातार मवेशियों के मरने की खबरें हैं। भीषण गर्मी में गाय और सांड पानी और चारे की बगैर दमतोड़ रहे हैं। वहा कार्यरत एक कर्मी ने अपना नाम न उजागर करने के शर्त पर बताया कि अकेले सोमवार को ही लगभग 10 गायों के मरने की खबर है।
क्या कहते है ज़िम्मेदार –
क्या कहते है ज़िम्मेदार को अगर देखे तो सभी एक दुसरे पर टालते दिखाई दे रहे है। ऐसा लगता है कि एक अधिकारी से आप सवाल पूछ रहे है तो वह जवाब देने के बजाये गेंद दुसरे अधिकारी के पाले में फेक दे रहा है। इस क्रम में जब हमने फोन पर मुख्य पशु चिकित्साधिकारी से बात किया तो वह हमारा सवाल सुनकर ही लगभग हैरान से रह गए। हमने वहा की वर्तमान स्थिति को बताया तो ऐसा लगा उनकी बातो और उनकी शांति से कि उनको स्थिति तो मालूम ही है मगर मामले में मीडिया के संज्ञान को लेकर वह चौक गए है। उन्होंने कुछ मृत पशुओ की व्यवस्था करने की बात कहते हुवे मामले को बीडीओ के पाले में डालते हुवे कहा कि इस प्रकरण में आप उनसे बात कर ले।
जब हमने प्रकरण को बीडीओ के संज्ञान में डालते हुवे उनसे फोन पर बात किया तो महोदय ने मामले सवाल और ज़िम्मेदारी को सीधे उठा कर ग्राम सभा पर डालते हुवे कहा कि मेरे पास जिलाधिकारी जी का जिओ है। जिसमें पशुओं के मरने व चारा पानी का तथा मरे जानवरों को हटवाना प्रधान का दायित्व है। अब हमने जेसीबी के बोल दिया है। इतना कहकर साहब ने फोन काट दिया और फिर दुबारा फोन भी नही उठाया। कमाल की बात तो ये है कि साहब को मर चुके गौवंशो की चिंता तनिक भी नही है। बस जेसीबी को बोल दिया उसका फलोअप भी शायद लेना साहब ने ज़रूरी नही समझा होगा। रोज़ बरोज़ होती गौवंशो की दर्दनाक मौत से उनका कोई लेना देना नही है।
गौशाला में कुल 7 लोग कार्यरत है। मगर तनख्वाह उनकी 4 महीनो से ऊपर हो गया है नहीं आती है। एक कर्मी ने हमसे नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि “यहाँ कई दिनों से चारे की व्यवस्था नही है। मैं भी हिन्दू हु और गाय से मेरी भी आस्था जुडी है, मगर मजबूर हु। पिछले तीन महीनो से पगार नही आई है। अधिकतर कर्मी काम छोड़ कर जा चुके है। बिना पगार की बेगारी कैसे होगी। गाये मर जाती है। उनको जानवर नोचते है। देख कर मन दुखी हो जाता है। मगर कर भी क्या सकते है।
उसने बताया कि यहाँ कुछ भी ठीक नही चल रहा है। लोग सरकार को अँधेरे में रखे है। यहाँ के जिलाधिकारी को भी अँधेरे में रखा जाता है। कई बार कहा जा चूका है चारे आदि के लिए मगर हो कुछ नही रहा है। उसने बताया कि यहाँ लगभग 500 गाय बछड़े बैल आये थे जिसमे 370 गाय बैल को टैग लगा था। 200 गाय व बैल चीनी मिल कैंपस के अंदर हैं। उसकी सुचना के अनुसार 500 गाय बैल मे 270 गौवंश बचे है। डाक्टरों की टीम रोज घायल पशुओं का इलाज करने आना चाहिये मगर होता ऐसा नही है। उसने दावा किया कि हम 7 वर्कर है। चार माह से एक पैसा भी किसी को वेतन नही मिला है, जिससे वर्कर भागने पर मजबूर है। पूरे कैंपस मे संक्रमण फैल गया है। बगल मे तहसील होने से आने-जाने वालों का बुरा हाल है।
मरे हुए गौवंशो को न दफनाना दे रहा बिमारी को दावत
अधिकारियो का दावा था कि पूर्व में ऐसी शिकायत थी जिस पर गौर किया गया था। अब मवेशियों को चीनी मिल परिसर में कर दिया गया है। चारे और पानी की पर्याप्त सुविधा है। सांडों के मारने से कुछ गायों की मौत हुई थी लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। अब गायो की मरने की खबरें नहीं है। गोशाला में सब ठीक है।
तस्वीरे गवाह है क्या ठीक है
गौशाला में तस्वीरो को आप देख सकते है। तस्वीरे मन को विचलित कर सकती है, मगर बेजुबान जानवर कहे अथवा आस्था का केंद्र कहे, बात एक ही है। उनके लिए तस्वीरे दिखाना ज़रूरी हो जाता है। आप खुद तस्वीरो में मर कर पड़े गौवंशो को देख सकते है। इनके शव कितने पुराने होंगे ये आपको भी अंदाज़ लग रहा होगा। मगर ज़िम्मेदार कहते है कि वहा सब कुछ ठीक है। सरकार ने फण्ड की कमी नही रखा है। जिलाधिकारी पत्र जारी करके अगली बिल सम्बंधित विभाग से भुगतान के लिए मांग रहे है, मगर स्थिति ऐसी है कि जिम्मेदारो के पास कोई जवाब नही है। आखिर जब 500 गौवंश आये तो टैग कम को क्यों लगा ? क्या कारण है कि इतने बड़ी संख्या में गौवंश मर रहे है ? आखिर चारे पानी के नाम पर क्या व्यवस्था हो रही है? मामले में जवाब आखिर कौन देगा ? मुख्य पशु चिकित्साधिकारी की ख़ामोशी अथवा बीडीओ साहब का जेसीबी को बोल देना ही जवाब है ? सवाल काफी है। वक्त रहते जिलाधिकारी को मामले का संज्ञान लेना होगा अन्यथा ज़िम्मेदार अधिकारी क्या गुल खिला सकते है वह दिखाई दे रहा है।
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