तारिक आज़मी.
नई दिल्ली: कर्णाटक का सियासी नाटक अपने आखरी दौर में पहुच चूका है। विधान सभा चुनावों के बाद से ही स्थिर सरकार को देखने के लिए इस प्रदेश की आंखे पथराई है। पहले यदुरप्पा के सीएम बनते ही मामला आखिर अदालत के चौखट पर पंहुचा और सुप्रिम कोर्ट ने उस समय फैसला सुनाते हुवे उसी दिन फ्लोर टेस्ट करने का आदेश दिया था ताकि विधायको की खरीद फरोख्त न हो सके। इस फ्लोर टेस्ट के पहले ही अल्पमत यदुरप्पा सरकार ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के साथ सरकार बनती है और सरकार अपना बहुमत सदन में पाती है।
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के इसी अपील में कर्णाटक विधानसभा स्पीकर भी आये और उन्होंने अदालत में अपना पक्ष रखा। इस बीच अदालत ने शुक्रवार को यथास्थिति बनाये रखने का निर्देश दिया और मंगलवार का दिन अपने फैसले के किया मखसूस किया। मंगलवार को सुनवाई पूरी कर फैसले को हिफाज़त में रखा और आज बुधवार को देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला कर्णाटक के विधानसभा स्पीकर के हक़ में दे दिया कि वह नियमानुसार इस्तीफे पर अपना फैसला ले। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि बागी विधायकों के इस्तीफों पर स्पीकर अपनी इच्छा के मुताबिक फैसला ले सकते हैं।
यही नहीं अदालत ने इसके साथ ही यह भी कहा कि बागी विधायकों को सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। फैसला सुनाते हुए सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि मामले में संवैधानिक संतुलन बनाना जरूरी है, जो सवाल उठे हैं उनके जवाब बाद में तलाशे जाएंगे। कुमारस्वामी और विधानसभा अध्यक्ष ने बागी विधायकों की याचिका पर विचार करने के न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया था। वहीं, बागी विधायकों ने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार बहुमत खो चुकी गठबंधन सरकार को सहारा देने की कोशिश कर रहे हैं।
मुल्क की सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। मगर इस फैसले के बाद भी कर्णाटक सरकार पर मडराता खतरा कम नही हुआ है। हर तरफ एक ही सवाल है कि कर्नाटक की सियासत में अब क्या होगा ? क्या कुमारस्वामी सरकार बचेगी या गिरेगी। इस सवाल का जवाब अगर सियासी आकड़ो से लिया जाये तो कर्णाटक की सरकार गिरती हुई दिखाई दे रही है। सरकार के खतरे में आने की बात आकडे और संख्या बल के आधार पर किया जा रहा है।
इसको इस तरीके से समझे कि अगर बागियों के इस्तीफे मंजूर हुए तो कर्नाटक में स्पीकर को छोड़कर विधायकों की संख्या 223 है। बहुमत के लिए 112 विधायकों का समर्थन जरूरी है। कांग्रेस (78), जेडीएस (37) और बसपा (1) की मदद से कुमारस्वामी सरकार के पास अभी 116 विधायक हैं, जिसमे से 16 विधायक बागी होकर विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। अगर स्पीकर बुधवार को इन बागियों के इस्तीफे मंजूर कर लेते हैं तो सरकार को बहुमत के लिए 104 विधायकों की जरूरत होगी। सरकार के पास 100 का आंकड़ा नज़र आ रहा है। जबकि भाजपा के पास 105 विधायक हैं और उसे दो निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है। यानि कि कुल 107 सीट हो जायेगी। इस हिसाब से सरकार का गिरना तय हुआ,
वही अगर दूसरी तरफ बागी विधायक अयोग्य करार दिए जाये तो भी सदन में गुरुवार को विश्वास मत के दौरान सरकार को बहुमत के लिए 104 का आंकड़ा जुटाना होगा। यह उसके पास नहीं होगा। ऐसे में भी सरकार गिर जाएगी। वही अगर अगर बागियों ने सरकार के खिलाफ वोटिंग किया तो यानि कि इन 16 बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर नहीं होते हैं और वे फ्लोर टेस्ट के दौरान सरकार के खिलाफ वोटिंग करते हैं तो सरकार के पक्ष में 100 वोट पड़ेंगे। यह संख्या बहुमत के लिए जरूरी 112 के आंकड़े से कम होगी। ऐसे में कुमारस्वामी सरकार विश्वास मत खो देगी और सरकार के खिलाफ वोट करने पर बागियों की सदस्यता खत्म हो जाएगी।
वही अगर ये माना जाये कि बागी विधायक सदन से अनुपस्थित रहते है तो इस स्थिति में विश्वास मत के समय सदन में सदस्य संख्या 207 रह जाएगी। बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 104 का हो जाएगा। लेकिन, बागियों की अनुपस्थिति में सरकार के पक्ष में केवल 100 वोट पड़ेंगे और ऐसे में भी सरकार गिर जाएगी।
इस आकड़ो के अखाड़े में कल कर्णाटक सरकार चित होते हुवे दिखाई दे रही है वही भाजपा के द्वारा सरकार बनाया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो फिर कांग्रेस के लिए ये एक बड़ा झटका होगा। अब देखना होगा कि कर्णाटक की सरकार रहती है अथवा बिदाई लेती है।
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