तारिक आज़मी (इनपुट अनिल कुमार)
बिहार के छपरा जिले में हुई माबलीचिंग की घटना ने भीडतंत्र के ऊपर उठ रहे सवालो को और भी ज्यादा तवज्जो देना शुरू कर दिया है। बिहार के छपरा जिले को सारण नाम से जाना जाता है। इसी जिले में पशु चोरी के इलज़ाम पर तीन लोगो को भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दिया था। ज़िले में बीते शुक्रवार सुबह भीड़ की पिटाई से हुई तीन लोगों की मौत के इस मामले में जिला पुलिस ने सात लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में आठ लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है। इसके अलावा पुलिस ने कई अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है। हालांकि बिहार पुलिस इस घटना को मॉब लिंचिंग मानने से इनकार कर रही है। मगर अगर अपराध का तरीका देखा जाये तो यह माब लीचिन ही दिखाई देता है।
ऐसा ही लगभग माहोल इस गाव में तीसरे मृतक के घर का है। राजू नट के घर के भी तसल्ली देने वालो का आज भी ताँता लगा हुआ है। राजू की पत्नी और बच्चों की आँखे आज भी अपने सुहाग और अपने पिता के वापसी की आस में पथराई हुई है। उनकी आंखे सवाल उस भीड़ से पूछना चाहती है कि अगर तुम्हे चोरी का शक था तो फिर खुद तुम फैसला करके सजा देने वाले कौन होते हो। दुनिया का कोई भी मुल्क चोरी की सजा मौत दे ऐसा कानून कहा है ? घर में मौत का सियापा छाया है। रह रह कर कभी राजू की पत्नी तो कभी बच्चो के रोने की आवाज़े बाहर निकलती है।
दूसरी तरफ जिस गांव में ये घटना हुई उस महादलित बाहुल्य पिठौरी नन्दलाल टोला गांव के लोगों का आरोप है कि शुक्रवार की सुबह तीन लोग गांव में पिकअप वैन पर मवेशियों को लाद रहे थे तभी उन्हें पकड़ लिया गया। बीबीसी ने इस घटना के ग्राउंड रिपोर्टिंग का दावा करते हुवे अपने समाचार में मोहित कुमार का हवाला देते हुवे लिखा है कि मोहित उसी गाव का है, जहा घटना हुई है। बीबीसी ने अपनी खबर में कहा है कि मोहित ने उन्हें बताया कि “रात करीब दो बजे के आसपास पिकअप वैन से कुछ लोग आये थे। उन्होंने पहले एक बकरी को चुरा कर कहीं रख दिया और फिर दुबारा यहां आए। पिकअप वैन में बकरी की लेड़ी (गोबर) मिली थी। ये लोग दोबारा आए और उन्होंने गांव के मुहाने पर बंधी दो भैसों को वैन में चढाने की कोशिश किया। इसी दौरान भैंस ने उनमें से एक को धक्का मार दिया जिसके बाद हल्ला मच गया और वो ग्रामीणों के हत्थे चढ़ गए। हम लोगों ने उन्हें पकड़ कर दरवाजे पर लाकर बांधा। उनसे पूछताछ की गयी। उसी बीच थाने को फोन किया। उन्होंने कहा कि पकड़ कर रखिये हम लोग आ रहे हैं। इसी दौरान लोगों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया जिससे दो लोगों की यहीं मौत हो गई।
फिलहाल जिस गाव में घटना हुई है उस गाव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। इस गांव में भी एक अजीब सी ख़ामोशी है। गाव में किसी प्रकार की कोई हलचल नही है। यहाँ की ख़ामोशी बयान करती है कि दर्द तो इस गाव में भी है। घटना को अंजाम चंद मुट्ठी भर लोगो ने ही दिया होगा मगर इस घटना को गलत कहने वाले भी गाव में लोग है। वही मृतक के गाव में भी ख़ामोशी है। आप खुद सोचिये इस भीड़ का किसको फायदा हुआ। क्या नतीजा आज सामने है। दो इंसानी बस्तियां जो हमेशा खुशहाल रहा करती थी आज गम के साये में है। लोग ग़मगीन है। वो जो उत्तेजक भीड़ रही होगी, उस भीड़ में घटना करने वाले जो भी दस बीस या फिर जितने भी रहे होंगे उससे कही ज्यादा वहा की जनता रही होगी, जिसका कोई कसूर नही होगा, मगर आज गम के साए में दोनों गाव है। एक गाव को गम है कि उसने अपने तीन नवजवान खोये है वही दुसरे गाव को तकलीफ है कि उसकी ज़मीन पर खून बह गया। सोचे आखिर इस बेवजह के गुस्से का क्या नतीजा निकला ?
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