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समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस – हाई कोर्ट में दाखिल हुई फैसले के खिलाफ याचिका

आफताब फारुकी

चंडीगढ़: स्वामी असीमानंद की मुश्किलें भले चंद दिनों के लिए ख़त्म हुई थी और एनआईए कोर्ट ने उनको समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में बरी कर दिया था। मगर इस फैसले को पाकिस्तान की नागरिक राहिला वकील ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी।

कौन है याचिकाकर्ता

याचिका दाखिल करने वाली राहिला एक पाकिस्तानी नागरिक है और उन्होंने दावा किया था कि 2007 के समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में उसके पिता भी मारे गए थे। राहिला ने अपने वकील मोमिन मलिक के माध्यम से उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की। इस सम्बन्ध में मलिक ने बीते शुक्रवार को बताया कि उनकी मुवक्किल के ओर से मैंने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की जिसमें हमने पंचकूला एनआईए अदालत द्वारा स्वामी असीमानंद और तीन अन्य को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी है। राहिला वकील विस्फोट में मारे गए पाकिस्तानी नागरिक मुहम्मद वकील की बेटी हैं।

क्या थी घटना

बताते चले कि 18 फरवरी 2007 की ह्रदयविदारक इस घटना में कुल 68 लोगो की मौत हुई थी और 12 अन्य लोग घायल हुवे थे। घटना हरियाणा में पानीपत के निकट समझौता एक्सप्रेस में उस समय विस्फोट हुआ था, जब ट्रेन अमृतसर में अटारी की ओर जा रही थी। इस घटना के 12 साल बाद इस साल 20 मार्च 2019 को पंचकूला की एक विशेष अदालत ने इस मामले में चारों आरोपियों- नबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बरी कर दिया गया था।

क्या कहा था जज ने अपने फैसले में

एनआईए की विशेष अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा था कि मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका। अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया।अपने 160 पेज के फैसले में  जज ने कहा था कि अभियोजन पक्ष ने सबसे मजबूत सबूत अदालत में पेश नहीं किए। स्वतंत्र गवाहों की कभी जांच नहीं की गई।

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