आफताब फारुकी/मनोज गोयल
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज उत्तर प्रदेश के एक लाख से अधिक शिक्षको को बड़ी राहत देते हुवे इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया है। बताते चले कि उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग से जुड़े एक लाख से अधिक सहायक अध्यापको की नौकरी उस समय खतरे में आ गई थी जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि ऐसे शिक्षक जिनका बीएड अथवा बीटीसी का रिजल्ट बाद में आया है और टीईटी का परिणाम पहले आया है, उनका टीईटी प्रमाणपत्र वैध नहीं रहेगा। हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट यह फैसला 2011 और उसके बाद यूपी में हुए सभी टीईटी परीक्षाओ और नियुक्तियों पर लागू होता है।
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 मई के अपने आदेश में बेसिक शिक्षा अधिकारियों से कहा था कि जिन शिक्षकों के प्रशिक्षण का परिणाम उनके टीईटी रिजल्ट के बाद आया है उनका चयन निरस्त कर दें। हालांकि इस मसले पर अब तक सरकार ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।
एक अनुमान के अनुसार ऐसे शिक्षकों की संख्या एक लाख से अधिक है जिनका ट्रेनिंग का परिणाम टीईटी के बाद घोषित हुआ था। इस आदेश का असर वर्तमान में चल रही 68,500 सहायक अध्यापक भर्ती पर भी पड़ने वाला था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से प्रभावित शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। चयनित शिक्षकों का कहना था कि उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी-टीईटी) के लिए 4 अक्टूबर 2011 और 15 मई 2013 को जारी शासनादेश में इस बात का जिक्र नहीं था कि जिनके प्रशिक्षण का परिणाम टीईटी के बाद आएगा उन्हें टीईटी का प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा।
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