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श्रद्धालुओं ने उपवास के साथ किया शिवलिंग की पूजा

सरताज खान

गाजियाबाद लोनी। हरिद्वार से जल लेकर आने वाले शिवभक्त कांवड़ियों की भीड़ अब जहां क्षेत्र में आयोजित शिविरों से लगभग सिमट सी गई है। वहीं उनकी भारी भीड़ शाम होते होते क्षेत्रीय शिवालयों में पहुंच गयी और वहां अपनी हाजिरी के बाद त्रयोदशी का जल अभिषेक करने में लगे थे। जो महाशिवरात्रि(चौदस) का जलाभिषेक करने के पश्चात वहां से अपने-अपने गंतव्य पर लौटे। वही मंदिरों में जलाभिषेक के लिए वहां जमा शिवभक्त कांवड़ियों के लिए श्रद्धालुओं द्वारा उनके ठहरने व खाने-पीने आदि की सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई।

इसके अतिरिक्त मंदिरों में शिवलिंग पर लगाए जाने वाले भोग व अन्य दूध दही शहद आदि पूजा सामग्री बेचने वालों की भीड़ नजर आयी। जो चौदस का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी एक विशेष महत्व रखता है। पंडितों के अनुसार मंगलवार दोपहर लगभग 12बजे से चौदस का जल अभिषेक विधिवत पूजा-अर्चना के साथ प्रारंभ कर दिया। जिसके मद्देनजर हरिद्वार आदि से जल लेकर आने वाले लगभग 95 प्रतिशत कांवड़ियां अब अपने नजदीक स्थित शिवालयों (मंदिरों) में पहुंच चुके हैं।

जिनमें बात क्षेत्र के मुख्य मंदिरों की करें तो गुलाब वाटिका स्थित प्राचीन शिव मंदिर , राम पार्क स्थित सिद्ध बाबा मंदिर व लोनी तिराहे पर स्थित शिव मंदिर शामिल है। जहां जलाभिषेक के लिए पहुंचने वाले शिव भक्त कावड़िया एक बड़ी संख्या में पहुंचे।बम बम भोले शिवमय से शिवालय गूंजायमान रहा। वहां चारों ओर विभिन्न आयोजन जैसे यज्ञ, भजन-कीर्तन व ढोल की थाप पर थिरकने के अलावा कावड़ियों द्वारा लगाए जा रहे बम-बम भोले के जयकारों के साथ- साथ अन्य सैकड़ों श्रद्धालुओं की आवाज से तमाम मंदिर परिसर गूंजता हुआ नजर आया। जहां के माहौल को देखकर लगता था मानो सब कुछ शिवमय हो गया हो।

श्रद्धालुओं ने रखा उपवास

हिंदू धार्मिक त्योहारों में अपना एक विशेष ध्यान रखने वाले महाशिवरात्रि पर्व पर अधिकांश श्रद्धालु भक्त भोले के नाम से उपवास रखते हैं। जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक होती है। यही कारण था कि मंदिरों में पहुंचे शिवभक्त कांवरियों के साथ-साथ उतनी ही संख्या में वहां भोले के नाम से उपवास रख वहां जल अभिषेक करने वाले अन्य श्रद्धालुओं की भीड़ जमा थी।

भोले के पसंदीदा भोग की सजी थी दुकानें

मान्यतानुसार भोले के प्रिय माने जाने वाले भांग, धतूरा व पुष्पमाला आदि बिक्री करने वाले दुकानदारों की भी वहां कोई कमी नहीं थी। ताकि श्रद्धालुओं को उसकी व्यवस्था करने में कोई परेशानी ना उठानी पड़े। ऐसी अधिकांश दुकाने मंदिरों के आस-पास ही सजी थी जहां पूजा के लिए सभी प्रकार की सामग्री खरीदने वाले श्रद्धालु का ताता लगा था।

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