आफताब फारुकी
कुपवाड़ा। भारतीय सेना का एक सैनिक कश्मीर में तैनात है। उसे अन्य सैनिकों के साथ एक स्कूल में रखा गया है। स्कूल के सामने एक झोपड़ी है। झोपड़ी से निकलकर अक्सर एक तीन साल की छोटी बच्ची खड़ी रहती है। लड़की यतीम हो चुकी है। आतंकवादियों ने उसके पिता को इस शक की बिना पर गोली मार दी थी कि वह पुलिस का मुखबिर था।
एक दिन सैनिक ने अपनी मां को चिट्ठी लिखी कि मेरी एक तीन साल की दोस्त है। उसके लिए एक सलवार-कमीज़ सिलवाकर रखना। अगली बार जब छुट्टियों पर आऊंगा तो ले लूंगा। लौटकर उसे ये तोहफा दूंगा। सैनिक की नन्हीं परी से दोस्ती बढ़ती गई।
फिर भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। सैनिक को मोर्चे पर जाना था। उसने अपने आखिरी खत में अपनी मां को लिखा कि “अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मेरी ओर से उस लड़की का ख्याल रखें और उसकी मदद करते रहें। उसकी स्कूल की फ़ीस के लिए उसके मां बाप को कुछ पैसे देते रहें।” सैनिक अपनी सरजमीं के लिए शहीद हो गया। मां बाप के पास अपने बेटे की तमाम यादें थीं, जिनके बीच उसकी ‘आखिरी इच्छा’ भी याद रही।
इस बात को 20 साल हो चुके हैं। बच्ची अब 22 साल की स्टूडेंट है। सैनिक के पिता हर साल उस बच्ची से मिलने कश्मीर जाते हैं और उसके लिए तोहफे ले जाते हैं। बदले में बच्ची उन्हें सेब के कार्टन देती है। उन्होंने हाल ही में उसे एक कम्प्युटर तोहफे में दिया है। जल्द ही लड़की की शादी होगी और उसे अपने सैनिक दोस्त की तरफ से किसी शानदार तोहफे का इंतजार है।
इस सैनिक को आप भी जानते हैं। सैनिक का नाम है लेफ़्टिनेंट विजयंत थापर (Lieutenant Vijayant Thapar) पुत्र कर्नल विरेंदर थापर (Colonel Virendra Thapar)। विजयंत की शहादत ने दुश्मन के कब्जे से तीन ठिकाने आजाद कराने में मदद की थी। देश एक वीर चक्र का सम्मान देकर ऐसे सर्वोच्च बलिदान का कर्ज कहां चुका सकता है! हम आप सब ताउम्र उनके कर्जदार हैं।
(साभार – बीबीसी)
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