बापुनन्दन मिश्रा
रतनपुरा (मऊ). आसमान मे दहकते सूर्य देव की कातिल किरणें और बादलों की लगातार अनुपस्थिती ने धान की फसल के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। ऐसे में किसानो के माथे पर चिंता की लकीरों का खिंचना पूरी तरह स्वाभाविक है।ऊपर से उमस भरी गर्मी ने रही सही कसर भी पूरी कर दी है। मौसम की इस मार से अन्नदाता लाचार है आखिर वह क्या करे।उसे समझ मे नहीं आ रहा है।
मानसून के शुरुआत में हुई जबरदस्त बरसात में यद्यपि अनेक किसानों की धान नर्सरी पानी में डूब कर बर्बाद हो गई।फिर भी वह हिम्मत नहीं हारा और किसी तरह संडा नर्सरी की व्यवस्था कर रोपाई कराया। उसे उम्मीद थी कि मौसम साथ देगा तो उसके खेतों में धान की बालियाँ लहलहायेंगी। किंतु मौसम की बेरुखी ने उसके अरमानों को धूलधूसरित कर दिया।बिजली की आँख मिचौली और सूखी नहरों ने भी अपनी तरफ से उसे सताने की कोई जुगत नहीं छोड़ी। सूखे खेतों मे मुरझाये धान के पौधों को देखकर उसका कलेजा मुँह को आ जा रहा है। उसकी चिंता भी जायज है ,मँहगी जुताई, मजदूरी, खाद आदि मे अपनी पूँजी लगाकर वह मौसम की बेरुखी को कोसते हुए अपनी निराशा को छिपाने का कठिन प्रयास कर रहा है।
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