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एक दुखिया की दर्द भरी दास्ताँ – देर से ही सही मगर आ जा, पथरीली अंखिया जो देख रही है उसका रास्ता

बापूनन्दन मिश्र

रतनपुरा (मऊ). विकासखंड रतनपुरा से सटे ग्राम अगरपुरा के निवासी संजय चौहान पत्नी संघ चार बेटे बेटियों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे थे। संजय चौहान टाइल्स लगाकर अपने परिवार का जीवन  यापन कर रहे थे कि अचानक उनके जीवन में एक बज्रपात सा हो गया। यू कह सकते हैं आसमान से बादल टूट कर उनके इस हस्ती खेलती गृहस्थी को ही तहस-नहस कर दिया।

यह कहानी कोई फिल्मी दुनिया अर्थात धारावाहिक कि नहीं है। यह सच्ची घटना आज से तीन साल पहले संजय चौहान अपना पूरा परिवार लेकर बेंगलुरु मे रहते थे। टाइल्स लगाने का काम करते थे। एक दिन काम के ही सिलसिले में बेंगलुरु से कोलकाता (हुगली) जा रहे थे कि रास्ते में ही अपने साथियों  के साथ से कहीं बिछड़ गए और लापता हो गए। तब से लेकर आज तक उनका परिवार उनके आगमन की राह देख रहा है। परिवार में बड़ी बच्ची अनीता 20 वर्ष और  वीरेंद्र चौहान बड़ा बेटा 18 वर्ष दो छोटेछोटे बच्चे आराधना और बृजेश है।

चार बच्चों को लेकर किसी तरह संजय चौहान की पत्नी मीना देवी अपने परिवार का गुजर बसर कर रही है। पति के लापता हो जाने के बाद परिवार के सभी लोग भी मीना देवी का साथ छोड़ चुके थे। 20 वर्षीय अनीता बीएससी प्रथम वर्ष में पढ़ते हुए रात में किसी प्राइवेट अस्पताल में कार्य कर दिन में पढ़ाई करती हुई अपने भाई बहन तथा परिवार कि नैय्या का पतवार बनी हुई है। पिता के लापता हो जाने के बाद कई बार हलधरपुर थाने पर आवेदन भी दिया गया, लेकिन आज तक उसका कोई सुराग नहीं प्राप्त हो सका। अब तो उनकी बड़ी बेटी अनीता विवाह के योग्य हो गई है। जिससे मीना देवी बहुत चिंतित रहती हैं। किसी तरह एक घर और अल्बेस्टर मैं अपने परिवार को लेकर जाड़ा गर्मी बरसात बिता रही है।

संपत्ति के नाम पर उनकी पैतृक भूमि केवल 6 मंडा ही है, जो उसके भरण पोषण का एक जरिया है। लेकिन उसमें भी तो खाद बीज तथा अन्य प्रकार के खर्च हैं। किस प्रकार अन्न पैदा होगा वह भी चिंता का विषय है। ग्राम प्रधान द्वारा एक शौचालय तथा लाल कार्ड बनवाया गया है, जिससे गेहूं और चावल ला कर अपना जीवन बिता रही है। बात करते-करते मीना देवी जो अपने पति संजय चौहान के बारे में बता रही थी, तो उनके उस पथरीली आंखों से मानो खून के आंसू गिर रहे थे। वह आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। कंपकपाते हुए लफ्जों से बोली अब तो बस एक ही आस है, हम लोगों के जीवन में वो आ जाये तो आजा फिर से मेरी बगिया हरी भरी हो जाए। मेरे बच्चों के सिर पर पिता की छाया हो जाए। मेरा जीवन सुखमय हो जाएगा। मुझे और किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। टूटे हुए इस परिवार को सरकार से और भी मदद की आवश्यकता है जिससे अच्छे ढंग से जीवन चल सके।

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