फारुख हुसैन
पलिया कलां खीरी। चाक पर हाथ फेरकर मिट्टी के बर्तन गढ़ने वाले तराई के कुम्हार इस समय काफी व्यस्त हैं। दीपावली करीब है, इसलिए तेजी से दीपक बनाने का काम चल रहा है। सरकारी काम की तरह कोई लक्ष्य नहीं है कि कितना बनाना है, खुद के हाथ का हुनर है और पेट भरने के लिए इस पुश्तैनी कारोबार को चाक के माध्यम से चलाया जा रहा है। दीपक का ढ़ेर लगा हुआ है।
मिट्टी के दीपक बनाकर रोशनी फैलाने वाले ये कुम्हार मेहनत में कोई कमी तो नहीं छोड़ रहे हैं पर परिणाम वही है कि बस पेट भर जा रहा है। जो कमाते हैं, वही खाते हैं। कोई जमा पूंजी नहीं, मेहनत का आसरा है। खास बात यह है कि इस रोजगार से जुड़े लोग भले ही खुद की जिंदगी इस कारोबार के सहारे काट दिये हों पर अब अपने बच्चों को इससे दूर कर रहे हैं। अभी जितने लोग चाक चला रहे हैं वह सभी बुजुर्ग हैं। नयी पीढ़ी इससे दूर हो रही है। क्योंकि इस कारोबार में उन्होंने जिंदगी तो काट दिया पर कोई खास बदलाव नहीं आया। पहले भी झोपड़ी थी और आज भी है। बस यही खिज है कि वह इस धंधे से अपनी आने वाली पीढ़ी को दूर कर रहे हैं। ताज्जुब तो यह है कि जिस कारोबार से वह सबको रोशन कर रहे हैं, उसी कारोबार ने उन्हें अंधेरे में छोड़ दिया है।
पलिया में जिंदा है मिट्टी का कारोबार
कई वर्षो से पलिया में मिट्टी से विभिन्न प्रकार के सामान को बनाने वाले कुम्हार जाति के लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं।इन लोगों का पुश्तैनी और परंपरागत कारोबार घाटे में है लेकिन आज उनके मुरझाए चेहरे पर सुकून है। वह प्लास्टिक पर प्रतिबंध और चाइनीज सामान के बहिष्कार को बदलाव के रूप में देख रहे हैं!
सिंगल यूज प्लास्टिक बंद होने से रोजगार बढ़ने की उम्मीद
कभी शादी-विवाह में कुल्हड़ (चुक्कड़) और मिट्टी के अन्य बर्तनों की डिमांड रहती थी लेकिन बदलते दौर के साथ प्लास्टिक के बर्तनों ने सबको छिन लिया। कारोबार कम होता गया और इससे बनाने वालों का भी मोह भंग हुआ। वह खुद आने वाली पीढ़ी को इससे दूर करने लगे। लेकिन जब से केंद्र सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक को बंद करने का अभियान छेड़ा है, तब से कुम्हारों के बीच में भी चर्चा तेज हो गयी है। कुम्हार समाज के लोगों को उम्मीद है कि अगर सख्ती से प्लास्टिक बंद हुए तो मिट्टी के बर्तनों के दिन फिर से लौटेंगे।
लेकिन इनके पास कोई नयी तकनीक नहीं है जिससे मशीन के जरिये मिट्टी के बर्तनों की बड़ी खेप तैयार हो और मेहनत और समय दोनों कम लगे। फिलहाल मिट्टी के बर्तनों के दिन अगर दोबारा बहुरेंगे तो कुम्हारों की जिंदगी में भी थोड़ी खुशी आयेगी।
मिट्टी के इन बर्तनों की बढ़ गयी है डिमांड
इस बार के दीपावली को लेकर मिट्टी के ढिबरी की मांग भी बढ़ गयी है। कुम्हारों को उम्मीद जगी है कि इस बार की बिक्री बेहतर होने से उनके घर भी खुशहाली आयेगी। उनके भी बच्चे अच्छे से दीपावली मना पायेंगे। लेकिन प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद अब मिट्टी के बने दीये की मांग के साथ, कुल्हड़ (चुक्कड़), चुकिया, मिट्टी की मूरत और खिलौने की मांग बढ़ने लगी है। पंडित गोविंद माधव बताते हैं कि अब लोग यह समझने लगे है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए भी प्लास्टिक की जगह मिट्टी के बने सामानों का प्रयोग जरूरी है।
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