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बाबरी मस्जिद-जन्मभूमी प्रकरण – सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकारो के अधिवक्ता ने कहा, सभी सवाल हमसे ही किये गये कभी हिन्दू पक्ष से नही किया

आदिल अहमद

नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि मामले में सुनवाई अब अपने अंतिम चरण में पहुच चुकी है। अयोध्या मामले में आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में 38वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि दिलचस्प बात यह है कि इस केस की सुनवाई के दौरान सभी सवाल हमसे ही किये जाते हैं। कभी हिन्दू पक्ष से सवाल नहीं किया जाता।

वही धवन के इस बयान पर हिंदू पक्षकारों ने आपत्ति जताई। धवन ने केस की सुनवाई के दौरान केहा कि मुझे जवाब देने के लिए टाइम नहीं दिया गया है, जो समय सीमा तय की गई है वो काफी नहीं है। इस मामले में बहुत सारे तथ्यों व कानूनी पहलुओं को कोर्ट के सामने रखना है। राजीव धवन और हिंदू पक्षकारों के वकील सीएस वैद्यनाथन दोनों ने लिखित दलीलें कोर्ट को दीं है।

धवन ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं दिए गए केंद्रीय गुंबद के नीचे ही राम का जन्म हुआ। गुंबद के नीचे राम जन्म होने, श्रद्धालुओं के वहीं फूल प्रसाद चढ़ाने का कोई भी दावा सिद्ध नहीं किया गया। गुम्बद के नीचे तो ट्रेसपासिंग कर लोग घुस आए थे। जब वहां पूजा चल रही थी तो अंदर घुसने का मतलब क्या है? इसका मतलब पूजा बाहर ही हो रही थी। कभी भी मन्दिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई। वहां लगातार नमाज़ होती रही थी।

धवन ने कहा कि रीति-रिवाज कोई दिमागी खेल नहीं है। इसे विश्वास के साथ नहीं मिलाया जा सकता। हिंदू पक्ष ने सभी दलीलों को बिना किसी तथ्यात्मक आधार और स्पष्टीकरण के प्रस्तुत किया। 1989 तक हिंदुओं द्वारा जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं किया। धवन ने कहा कि 1885 और 1989 के बीच हिंदू पक्ष द्वारा कभी जमीन के टाइटल का दावा नहीं किया गया। जबकि, 1854 से ही बाबरी मस्जिद के रखरखाव के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुदान दिए जाते रहे।

धवन ने माना कि पुरातात्विक साक्ष्य को प्रमाणित किया जा सकता है। हालांकि, इससे पहले पुरातत्व को मुस्लिम पक्षकारों ने एक सामाजिक विज्ञान के रूप में माना था और उसे खारिज कर दिया था। धवन ने कहा कि एएसआई रिपोर्ट में कभी ये नहीं कहा गया कि मंदिर को तोडकर मस्जिद बनाई गई। इस जगह पर हमेशा मुस्लिमों का कब्जा रहा। हिंदुओं ने बहुत बाद में जमीन के टाइटल का दावा किया लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। उन्होंने 1934 से प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जिसके लिए कोई सबूत नहीं है।

साथ ही उन्होंने कहा कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं हैं कि वादी (हिंदू) विवादित भूमि का मालिक है। हिंदुओं को सिर्फ भूमि के उपयोग का अधिकार था। इसके अलावा कोई अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया गया था। उन्हें पूर्वी दरवाजे से प्रवेश करने और प्रार्थना करने का अधिकार दिया गया, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

जस्टिस SA बोबडे और जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि क्या मुसलमानों का एकमात्र अधिकार होने का दावा करना उनकी दलील को हल्का नहीं करेगा? जबकि हिंदुओं को बाहरी आंगन में प्रवेश करने का अधिकार था। धवन ने कहा कि इससे उन्हें अधिकार तो नहीं मिलता। जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि कई दस्तावेज़ है जो दिखाते है कि वह बाहरी आंगन में रहते थे।

धवन ने कहा कि यह दिखाने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है कि हिंदू बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का मालिक है। एक भी ऐसा दस्तावेज नहीं है जो साबित करता हो कि हिंदुओं का वहां पर पहले कब्ज़ा रहा था। जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि 1858 के बाद के दस्तावेजों से पता चलता है कि राम चबूतरा की स्थापना की गई थी, उनके पास अधिकार था।

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