आफताब फारुकी
नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद-जन्मभूमि प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस अंतिम पड़ाव पर है। आज बहस के 38वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोशनी डालते हुवे कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में जस्टिस खान और जस्टिस शर्मा की राय एक-दूसरे से अलग थी। जस्टिस खान ने कहा था कि मस्जिद बनाने के लिए किसी स्ट्रक्चर को ध्वस्त नहीं किया गया था। जबकि जस्टिस शर्मा की राय इससे अलग थी। धवन ने कहा जिलानी ने सही कहा था कि 1885 से पहले के किसी भी दस्तावेज़ को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। सन 1885 से पहले के जो दस्तावेज़ हिन्दू पक्ष के पास हैं वह सिर्फ विदेशी यात्रियों की किताब, स्कंद पुराण और दूसरी किताबें हैं।
राजीव धवन ने पक्ष रखते हुवे कहा कि औरंगजेब बेहद उदार राजा था। मोहम्मद गोरी सहित दूसरे लोग, जिन्होंने भारत में युद्ध किया, क्या उन्होंने मस्जिदों का निर्माण किया? एक नए तरह का इतिहास लिखने की कोशिश न की जाए। अगर बाबर के काम की समीक्षा होगी तो अशोक की भी करनी होगी। राजीव धवन ने कहा कि इस्लामिक कानून बेहद कॉम्प्लेक्स है? हिन्दू पक्ष की बेहद सीमित जानकारी है इसको लेकर।
इस मुद्दे पर पीएन मिश्रा ने राजीव धवन पर कहा कि आप ये कैसे कह सकते हैं कि हमको इस्लाम पर कम जानकारी है? बहस कर लीजिए। उन्होंने कहा कि आप यह बताने वाले कौन हैं कि हम क्या बहस करें, क्या नहीं? कोर्ट ने हमें बहस करने की इजाजत दी हमने की। राजीव धवन के इस बयान पर चीफ जस्टिस रंजन गंगोई ने मुस्कुराते हुए कहा राजीव धवन के पास असीम ज्ञान है।
राजीव धवन ने कहा कि मालिकाना हक को लेकर हिन्दू पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है। उन्होंने कहा कि क्या कोर्ट सभी उन 500 मस्जिदों की खुदाई कराएगा जिसको लेकर यह कहा जाता है कि ये हिन्दू मंदिर पर बनी हैं? उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर मस्जिद के नीचे कुछ अंश किसी दूसरे धर्म के मिले हैं तो भी क्या 450 साल पुरानी मस्जिद अवैध हो जाएगी?
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