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बाबरी मस्जिद-जन्मभूमि संपत्ति विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई पूरी, देश की दूसरी सबसे बड़ी बहस में जाने किस पक्ष ने क्या रखा दलील

आफताब फारुकी

नई दिल्ली. बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद पर 40 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई। माना जा रहा है कि पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। यह ऐतिहासिक फ़ैसला होगा। राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील इस मुद्दे पर राजनीत भी काफी हुई है। बताते चले कि बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के ज़मीन पर मालिकाना हक़ का फैसला हाई कोर्ट इलाहाबाद ने देते हुवे तीन हिस्सों में ज़मीन तकसीम कर तीनो फरीक को बराबर बराबर ज़मीन दिया था। जिसके खिलाफ तीनो फरीक ही सुप्रीम कोर्ट के शरण में गये थे।

आख़िरी सुनवाई के एक दिन पहले जस्टिस गोगोई ने कहा था कि बुधवार की शाम पाँच बजे तक सुनवाई पूरी हो जाएगी लेकिन बुधवार को एक घंटे पहले ही सुनवाई पूरी करने की घोषणा कर दी गई। साथ ही अदालत ने ये भी कहा कि अगर दलीलें बाक़ी हों तो संबंधित पक्ष तीन दिन के भीतर लिखित रूप में दे सकते हैं। माना जा रहा है कि नवम्बर के मध्य में सेवानिवृत हो रहे सीजेआई खुद के सेवाकाल में ही इस मामले में अपना फैसला दे सकते है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 16 अक्तूबर की देर शाम एक बयान जारी कर कहा कि 17 तारीख को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रहे पांच जजों की संवैधानिक पीठ के सभी सदस्य चेंबर में बैंठेंगे। अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि चेंबर बैठक में क्या होने वाला है। यह सुनवाई भारत के सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में दूसरी सबसे लंबे समय तक चलने वाली सुनवाई थी। इसके पहले  केशवानंद भारती केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने 68 दिनों तक की थी। वहीं लंबी सुनवाई के मामले में तीसरे नंबर पर आधार कार्ड की संवैधानिकता का मुक़दमा था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय में इस केस की सुनवाई 38 दिनों तक चली थी।

ज़मीन विवाद से जुड़े इस मामले को सुनने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के दूसरे चार माननीय न्यायाधीशों के नाम जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की छह अगस्त से प्रति दिन सुनवाई की थी। मतलब हफ़्ते में पाँच दिन। इससे पहले रिटायर्ड जस्टिस एफएमआई कलीफ़ुल्लाह की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल की इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिशें नाकाम हो गई थीं।

क्या रखा अदालत में मुस्लिम पक्षकारो ने दलील

एएसआई की रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष के ऐतराज़ जताने पर सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के वक़ील डॉक्टर राजीव धवन और मीनाक्षी अरोड़ा से पूछा था कि अगर पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में ख़ामियां थीं, तो मुस्लिम पक्षकारों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस पर सवाल क्यों नहीं उठाया था। अदालत ने कहा था कि, ‘अगर आप ने हाई कोर्ट में एएसआई की रिपोर्ट पर ऐतराज़ नहीं जताया, तो आप यहां पर इस पर सवाल नहीं उठा सकते हैं।’

डॉक्टर राजीव धवन ने इसके जवाब में कहा था कि हम ने निश्चित ही एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाए थे। लेकिन, तब माननीय उच्च न्यायालय ने कहा था कि हम इसे जिरह के आख़िर में सुनेंगे, लेकिन, फिर वो कभी नहीं हुआ। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्षकारों के इस तर्क को मान लिया कि अगर उन्हें एएसआई की रिपोर्ट के बरक्स एक और एक्सपर्ट की रिपोर्ट को हाई कोर्ट के सामने पेश करने का मौक़ा दिया जाता, तो अदालत ने उसे भी माना होता।

डॉक्टर राजीव धवन ने तर्क दिया था कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के मालिकाना हक़ (ज़मीन विवाद) में मुस्लिम पक्ष को 1934 से हिंदू पक्ष ने नमाज़ अदा नहीं करने दी थी। जब जस्टिस बोबडे ने डॉक्टर राजीव धवन से ये पूछा कि हिंदुओं के नमाज़ पढ़ने से रोकने के बाद क्या मुस्लिम पक्षकारों ने नमाज़ पढ़ने के लिए कोई कार्रवाई की थी? तो राजीव धवन ने कहा था कि मुसलमान हर शुक्रवार को वहां नमाज़ पढ़ते थे। इसके अलावा वो विवादित जगह पर नमाज़ नहीं पढ़ते थे। डॉक्टर धवन ने कहा कि मस्जिद की चाबियां मुसलमानों के ही पास थीं, लेकिन पुलिस उन्हें शुक्रवार के अलावा बाक़ी दिनों में नमाज़ नहीं पढ़ने देती थी। धवन ने कहा कि 1950 में ज़ब्ती के बाद से मस्जिद पर ताला लगा हुआ था। और उसके बाद से ही पुलिस, मुस्लिम पक्षकारों को शुक्रवार के अलावा दूसरे दिनों में वहां नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं देती थी।

मुस्लिम पक्षकारों ने पांच जजों की संविधान पीठ के सामने बाबरनामा का हवाला दिया और कहा कि मस्जिद को बाबर ने बनवाया था। मुस्लिम पक्षकारों के वक़ील डॉक्टर राजीव धवन ने अदालत के सामने कहा कि, ‘मैं बाबरनामा के हवाले से ये बात कह रहा हूं। मैं बाबरनामा और इसके अनुवादों के हवाले से बता रहा हूं कि मस्जिद को बाबर ने बनवाया था।’ डॉक्टर धवन ने ये भी कहा कि दूसरे पक्षकार सरकारी गजट के केवल गिने-चुने हिस्सों का ही हवाला नहीं दे सकते। वो उन तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ सकते जिनमें ये लिखा है कि मस्जिद को बाबर ने ही बनवाया था।

ज़मीन पर अपना दावा और मज़बूत करने के इरादे से डॉक्टर राजीव धवन ने बहुत से दस्तावेज़ों, शिला लेखों और दूसरे सबूतों को भी अदालत के सामने पेश किया। इनमें से कई अरबी और फ़ारसी भाषा में अल्लाह लिखा हुआ था।

राम जन्म स्थान को लेकर भी चली लम्बी जिर

सीनियर वकील के। परासरन ने राम लला (जिन्हें राम लला विराजमान भी कहते हैं) की तरफ़ से बहस की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने तर्क रखा कि वाल्मीकि रामायण में कम से कम तीन जगह इस बात का ज़िक्र है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था।परासरन के इस तर्क पर अदालत ने उनसे पूछा था कि क्या ईसा मसीह बेथलहम में पैदा हुए थे, ये सवाल भी किसी अदालत के सामने आया है?

तब वरिष्ठ वक़ील के। परासरन ने कहा था कि, ‘जन्म स्थान ठीक वही जगह नहीं जहां पर श्री राम का जन्म हुआ, बल्कि उसके आस-पास की ज़मीन भी उसी दायरे में आती है। सलिए पूरा इलाक़ा ही जन्मस्थान है। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि वो श्री राम का जन्म स्थान है। हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही पक्ष विवादित ज़मीन को जन्म स्थान कहते हैं।’ राम लला की तरफ़ से सीनियर वक़ील सीएस वैद्यनाथ ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 को मुसलमानों ने वहां पर आख़िरी बार नमाज़ पढ़ी थी। इसके 6 दिन बाद 22 दिसंबर 1949 को वहां मूर्तियां रखी गईं।

इस पर अदालत ने पूछा था कि क्या मूर्तियां रख देने से मुस्लिम वहां नमाज़ नहीं पढ़ सकते? इस पर वैद्यनाथन ने जवाब दिया था कि मुसलमानों के वहां जाने पर रोक थी। अपनी बहस में वैद्यनाथन ने विलियम फिंच के यात्रा वृतांत का हवाला देने की इजाज़त मांगी। विलियम फिंच 1608 से 1611 के बीच भारत के दौरे पर आए थे। वैद्यनाथन ने कहा कि मुग़ल बादशाह अकबर और जहांगीर के ज़माने में कई यूरोपीय यात्री भारत आए थे। इनमें विलियम फिंच और विलियम हॉकिंस भी थे। इन्होंने अपने वर्णन में अयोध्या के बारे में भी लिखा था।

वैद्यनाथन ने अदालत से कहा कि हम ये कहना चाह रहे हैं कि पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में भी लोग ये विश्वास करते थे कि श्री राम का जन्म वहीं हुआ था। माननीय अदालत को इस तथ्य का भी संज्ञान लेना चाहिए। क्योंकि ये इस बात का सबूत है कि वहां पहले से मंदिर मौजूद था, जिसे बाद में तोड़ डाला गया था। ये जगह हमेशा ही भगवान श्री राम का जन्म स्थान मानी जाती रही है। वैद्यनाथ ने कहा कि अयोध्या कोशल साम्राज्य की राजधानी थी। महाराजा दशरथ, भगवान श्री राम के पिता था, जो रामायण के नायक थे। राम का दरबार सबसे पवित्र जगह है क्योंकि श्री राम का जन्म वहीं हुआ था। जिसे बाद में तोड़ कर मस्जिद बनाई गई।

एतराज जताया है मुस्लिम पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्टों पर

राम लला और निर्मोही अखाड़े के तर्कों पर ऐतराज़ जताते हुए मुस्लिम पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्टों में कई कमियों की तरफ़ इशारा किया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने विवादित स्थल को खुदाई के दौरान पुरानी कलाकृतियां, मूर्तियां, खंभे और मंदिर के दूसरे अवशेष मिले थे। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में विवादित ढांचा, जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था, के नीचे एक विशाल मंदिर के अवशेष होने की बात कही थी।

क्या रही निर्मोही अखाड़े की दलील

निर्मोही अखाड़े ने सर्वोच्च न्यायलय में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि जो लोग अयोध्या की विवादित ज़मीन पर राम मंदिर बनाना चाहते हैं, उनका दावा है कि बाबर के सूबेदार मीर बाक़ी ने वहां पर राम मंदिर के बनाए क़िले को तोड़ कर मस्जिद बनवाई थी। वो भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण की पड़ताल के हवाले से ये दावा करते हैं कि मस्जिद के नीचे मंदिर था।

निर्मोही अखाड़ा ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि जो लोग राम मंदिर के पक्ष में हैं उनका दावा है कि राम ने जो क़िला बनवाया था उस पर बाबर के सिपहसालार मिर बाक़ी ने 1528 में बाबरी मस्जिद बनवाई। निर्मोही अखाड़े की तरफ़ से जिरह करते हुए वरिष्ठ वकील सुशील कुमार जैन ने सर्वोच्च न्यायलय से निचली अदालत में पेश कुछ दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए कहा था कि राम जन्मभूमि पर निर्मोही अखाड़े का हक़ है और ज़मीन उन्हें दी जानी चाहिए।

सुशील कुमार जैन ने सर्वोच्च अदालत में बहस के दौरान कहा था कि मस्जिद का भीतर वाला गुंबद भी निर्मोही अखाड़ा का ही है। सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संविधान बेंच के सामने जिरह में जैन ने ये भी कहा था कि सैकड़ों सालों से विवादित ज़मीन के भीतर के आंगन और राम जन्मस्थान पर हमारा क़ब्ज़ा था। सुशील कुमार जैन ने सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान कहा कि निर्मोही अखाड़ा कई मंदिरों को चलाता है। जैन ने सर्वोच्च अदालत को विस्तार से बताया था कि निर्मोही अखाड़े के क्या-क्या काम हैं। जैन ने अदालत को बताया था कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मौत से पहले उनकी सुरक्षा निर्मोही अखाड़ा ही करता था। निर्मोही अखाड़े ने बहस के दौरान दावा करते हुवे कहा था कि मंदिर ही जन्म भूमि है। इसलिए विवादित ज़मीन का मालिकाना हक़ निर्मोही अखाड़े का ही है। जैन ने कहा कि विवादित ज़मीन पर हमारा दावा 1934 में दायर किया गया था जबकि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने विवादित ज़मीन पर हक़ जताने का अपना वाद 1961 में दायर किया था।

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