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पत्रकार को मिली नगर पंचायत अध्यक्ष के तरफ से धमकी, पत्रकार मांगे इन्साफ, नही सुन रहे थाना प्रभारी साहब

ए जावेद

बिल्थरारोड(बलिया)। कानपुर के रायपुरवा थाना प्रभारी के लापरवाही भरे नतीजे से एक पत्रकार विजय गुप्ता को अपनी जान गवानी पड़ी। इस घटना ने पत्रकारों में देश भर में उबाल पैदा कर डाला है। पत्रकार विजय गुप्ता ने थाना प्रभारी रायपुरवा को संभावित घटना के रात को ही लिखित शिकायत देकर अर्जी किया था कि साहब मेरी जान को खतरा है। मगर थाना प्रभारी महोदय ने एक न सुनी उस पत्रकार की और ठन्डे बस्ते में अर्जी डाल दिया। फिर क्या नतीजा हुआ यह बताने की ज़रूरत नही है। थाना प्रभारी के लापरवाही का नतीजा उस पत्रकार को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। लगता है रायपुरवा प्रकरण से बलिया के थाना उभाव प्रभारी ने कोई सीख नही लिया है और एक पत्रकार द्वारा बार बार लिखित तहरीर देने के बावजूद भी उसकी फ़रियाद नही सुन रहे है।

घटना कुछ इस प्रकार है कि बलिया के सियर विधानसभा क्षेत्र के नगर पंचायत बेल्थरारोड अध्यक्ष मालूम नही क्षेत्र में कितनी विकास की गंगा बहा रहे है। मगर उनका विकास कलम पर अपना जोर लगा बैठा है और सख्त तम्बी है कि खबर केवल उनके पक्ष में ही लगेगी। सपा से नगर पंचायत अध्यक्ष बने बाबू जी ने सपा सरकार जाते ही सपा से पल्ला झाड लिया और भाजपा का दामन थाम बैठे। हो भी क्यों न दूसरी बार नगर अध्यक्ष जो बनना था। कुछ पत्तेचाट पत्रकारों को अपने साथ जोड़े साहब बहादुर खुद की वाहवाही करने वालो की फ़ौज शायद अपने आस पास देखना चाहते है। बस उनकी वाहवाही के अलफ़ाज़ जो कलम से लिखे वह उनका पसंदीदा पत्रकार होता है और जो नही लिखे उसको अंजाम भुगतने की धमकी भी दे दिया जाता है।

घटना विगत सप्ताह की है। नगर पंचायत के एक निर्माण में घटिया ईंटो का प्रयोग हो रहा था। इसको देख कर एक दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार ने खबर इकठ्ठा किया और खबर के लिये साहब से उनका बयान भी चाहा तो साहब ने कह दिया जो लिखना है लिखा डालो। पत्रकार का भी पूरा नाम अरविन्द यादव था। उसने भी लिख दिया जो सही था। खबर के प्रकाशन के बाद खुद की हुई किरकिरी से साहब नाराज़ हो बैठे। फिर क्या था, अपने आजू बाजू से फोन करवा कर फोन पर ही पत्रकार अरविन्द यादव की सेक दिया ढंग से। इत्तिफाक से अरविन्द यादव इस समय अपने परिवार के साथ था तो परिवार को टेंशन न हो इस लिए उसने केवल सर और साहब कहकर अपने विचार ढंग से व्यक्त नही किया। मगर साहब ने जमकर सुना डाला और फरमान जारी कर डाला कि इलाके में रहने नही देंगे।

वैसे साहब का फरमान है तो थोडा चिंता का विषय है ही। देखे न कभी पूर्व सपा विधायक के करीबी साहब तख़्त बदलते ही दुसरे खेमे में नज़र आने लगे। इसको ही तो कहा जाता है रहने नही देंगे। वक्त करवट ले बैठा और आज पूर्व विधायक से कही अधिक साहब पॉवर फुल है। इतने पॉवर फुल कि खबर वही लिखेगी जो वह चाहेगे। असल में कलम पर पहरा लगा बैठे है। अब साहब को कौन समझाये कि 10 रुपया से लेकर दस लाख तक की कलम बाज़ार में मिलती है, मगर सच लिखने की तलब बाज़ार में नही मिलती है साहब। पत्रकार अपनी कलम से क्रांति लाता है। किसी दल अथवा व्यक्ति विशेष की गुलामी कलम नही कर सकती है।

बहरहाल, डरा और खौफज़दा पत्रकार खुद की सुरक्षा हेतु थाना उभाव में तहरीर दे चूका है। मगर थाना प्रभारी साहब के पास उस गरीब और कमज़ोर पत्रकार जो एक बाहुबली के खौफ से खौफजदा है वक्त नही है। या फिर कह ले साहब वक्त निकालना नही चाहते है। अब भले सूबे के पुलिस मुखिया ओपी सिंह कुछ भी कहे, भले मुख्यमन्त्री कितने भी निर्देश जारी करे। मगर लोग भूल जाते है कि उसका अनुपालन सुनिश्चित तो थाना स्थानीय ही करता है। सूबे के पुलिस मुखिया ओपी सिंह ने साफ़ साफ़ कहा कि पत्रकारों की शिकायत पर तुरंत तवज्जो दिया जाये, अब तवज्जो देना काम थाना प्रभारी का है तो उनके जब समझ आयेगा तभी तवज्जो दिया जायेगा, अन्यथा ऐसे शिकायती पत्र रोज़ कई आते जाते रहते है।

वैसे थाना प्रभारी महोदय शायद कोई छोटी मोटी घटना का संज्ञान नही लेना चाहते होंगे, हां बड़ी घटना में यह छोटी मोटी घटना बदल जाए तो और बात है। वैसे थाना प्रभारी महोदय से कुछ कहने की हिम्मत हमारी कहा साहब, मगर साहब ज़िन्दगी पत्रकारों की भी कीमती है। और अध्यक्ष महोदय, मुझको नही पता आप अरविन्द को रहने देंगे क्षेत्र में या फिर नहीं वैसे आपको बताऊ आपकी उन समस्त धमकियों की कॉल रेकार्डिंग उपलब्ध है। क्षेत्र आपका ही है अध्यक्ष महोदय, हम तो गरीब मजलूम लोग है। कहा आपके ताकत के सामने टकरा सकते है साहब, मगर एक बात कहू साहब, साफ़ साफ़ कहता हु, आपको धमकी देना है, या फिर जो धमकी दिया है उसको चरितार्थ करना है तो कर लो साहब, कहो मत, क्योकि हमको सच के लिए मरना आता है।

आपको सच दबाना है, बेल्थरारोड में डिक्टेटरशिप करना है करे, शौक से करे मालिक आदमी है आप। कर सकते है। आपकी सरकार है, आप खुद गद्दीनशीन है, मगर साहब हम सच लिखना नही छोड़ने। आप जितना ज़ुल्म करोगे कर लो न, मगर फिर भी सच लिखेगे। और सच के सिवाय कुछ नही लिखेगे। क्योकि हम साफ़ साफ़ कहते है कि खबर वही जो हो सही। और सही खबर के लिए कोई मुझको गोली भी मार दे तो परवाह नहीं। आप हमारे जिस्म का एक एक कतरा लहू निकाल ले। मगर लिखेगे तो सच ही। कलम आप खरीद सकते है, मगर हमारी कलम बिकाऊ नही है, कृपया खरीदने का प्रयास न करे। जन प्रतिनिधि है आप। जनता के प्रतिनिधि। एक शेर सुनाता हु साहब रहत इन्दौरी का कि “आज जो साहिब-ए-मसनद है कल नही होंगे, किरायदार है ज़ाती मकान थोड़े है।”

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