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तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – अब कहा है गौरक्षा के नाम पर हिसा करने वाले, मऊ जनपद के इस गौआश्रय केंद्र का हाल ले ले थोडा

तारिक आज़मी/ तस्वीरे और इनपुट बापुनंदन मिश्रा

अख़लाक़ से लेकर पहलू खान और ऐसे ही अनगिनत घटनाओं के बारे में जानते है हम और आप। किस प्रकार गौरक्षा के नाम पर देश के लगभग हर सूबे में सड़को पर हिंसा करने वाले गौरक्षको के हिंसाओ का समाचार अक्सर सुनने और सोशल मीडिया पर देखने को मिलता रहता है। इसी सब के दरमियान अपना राजनितिक लाभ साधने वालो की कमी भी नहीं रहती है। कुछ तो ऐसे है कि अपने नाम के आगे गौरक्षक अथवा गौभक्त लगाकर सोशल मीडिया पर खुद को गाय का सम्मान करने वालो की श्रेणी में खड़ा करके बड़ी बड़ी बाते करते है।

हकीकत के ज़िन्दगी में अगर आप देखे तो शायद ही कोई ऐसा शहर अथवा गाँव न होगा जहा पर छुट्टा पशुओ के तरह आपको गाय घुमती हुई, सब्जी और फलो के ठेले पर मुह मारती और फिर दूकानदार की लाठिया खाती दिखाई न दे जाए।इनकी सेवा सत्कार करने के लिए कोई गौरक्षक सामने नहीं आता है। किसी दुर्घटना में गाय शिकार होकर घायल हो जाए, अथवा मर जाए तो कोई भी ऐसा नही दिखाई देता है जो इनका इलाज करे अथवा इन गायो का अंतिम संस्कार करे। मगर गौरक्षा के नाम पर सडको पर हिंसा करने को मिल जाए तो पिद्दी पहलवान भी खुद को अंडरटेकर बन जाता है और भीड़ के साथ शामिल होकर इन्साफ सड़क पर खुद ही करने लगता है।

आज हम आपको एक ऐसी जगह लिए चलते है जहा गायो के आश्रय की बात कही जाती है। अपनी बातो को शुरू करने के पहले ही हम आपको बता दे कि हर दुर्व्यवस्था के लिए सरकार को दोषी ठहराना उचित नही है। सरकार हर गली नुक्कड़ पर खड़े होकर इस बात की निगरानी नही कर सकती है कि हमारे दिए आदेश का पालन सही तरीके से हो रहा है कि नही। इसके लिए हमें और आपको ही कदम बढाने पड़ते है। एक उदहारण देता हु कि अगर आपके घर की बिजली चली जाए और पडोसी के यहाँ आ रही हो तो आप सरकार को दोष नही देते है बल्कि सम्बंधित अधिकारी से शिकायत करते है। उनसे मुलाकात करके अपनी समस्या बताते है और आवश्यक होने पर आप लिखित शिकायत देते है। उसी प्रकार हम काम के लिए आप सरकार को अथवा सरकारी तंत्र को दोष नही दे सकते है।

प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही गायों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनकी उचित देखभाल के लिए कई फ़ैसले लिए गए। इसी क्रम में लगभग हर ब्लाक पर एक गौआश्रय स्थल का निर्माण सरकारी संपत्ति पर हुआ है। जहा छुट्टा पशुओ की तरह टहलने वाली गायो को आश्रय देने के लिए लाया जाता है। सरकार यहाँ गायो के भोजन से लेकर उनके स्वास्थ तक की व्यवस्था पर अच्छे खासे पैसे खर्च कर रही है। सरकार की मंशा पर हम उंगली नही उठा रहे है, मगर सबसे निचले पायदान पर आते आते व्यवस्था दुर्व्यवस्था में कैसे बदलती है आप उन गौआश्रय स्थलों में जाकर देख सकते है। राज्य का शायद ही कोई ऐसा इलाक़ा हो जहां से आए दिन  भूख और देखभाल के अभाव में  गायों-बछड़ों के मरने की ख़बर न आती हो। ज़्यादातर आश्रय स्थलों में गायें चारे और पानी के अभाव में ही दम तोड़ दे रही हैं या फिर उन्हें बाहर ही घूमने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।

जबकि हकीकत है कि सरकार इन गायो के देखभाल के लिए, उनके चारे पानी के लिए अच्छा खासा बजट दे रही है। सरकार पैसो में कोई कमी नही कर रही है। मगर स्थिति जस की तस बनी हुई है। गायो के सेवा के लिए रखे गये सेवको से अगर पूछे तो उनका कहना होता है कि कई महीनो से तनख्वाह नही आ रही है तो वह दुसरे काम करके अपने खर्च चला रहे है। वैसे ये बात हज़म होने लायक तो नही है क्योकि लगभग हर जिलो में इन गौसेवाको को समय से तनख्वाह भेजी जा रही है। फिर आखिर क्यों सेवक अपने कार्य नही कर रहे है ये सवाल सरकार से नही बल्कि उन गौसेवाको से होने चाहिए।

तस्वीरे जो आप देख रहे है वह मऊ जनपद के रतनपुरा  स्थित पशु चिकित्सालय केंद्र में बने गौआश्रय स्थल की है। जहां आए दिन गाय भूख और दवा की अभाव में दम तोड रही हैं। स्थानीय प्रशासन इन सारी चीजों से बेखबर है। बुधवार को रतनपुरा पशु चिकित्सालय के अधीक्षक विनय कुमार पांडे से इस सम्बन्ध में बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि भारी बारिश के कारण तीन गाय मर गई है। जबकि प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों जिन्होंने अपना नाम शैलेश राजभर, दिलीप सिंह, मुन्ना यादव और हरिराम यादव बताया के बातो पर अगर ध्यान दे तो गायो को समय पर चारा तो दूर की बात बीमार पड़ने पर दवा तक नहीं दी जाती है।

उन्होंने बताया कि गाय को सुखा भूसा डाल का छोड़ दिया जाता है। यही नहीं जहां गाए बाधी जाती है, वहां बेशुमार गंदगी फैली है, गोबर को भी नहीं हटाया जाता है। जो कि पशुओं के बिमारी का मुख्य कारण है। आश्रय स्थल पर समस्त पशु कीचड़ में ही रहने के लिए बाध्य है। हालत कुछ इस प्रकार बताई गई कि चिकित्सक भी बीमार पशुओ को देखने जल्दी नही आते है। ग्रामीण तो यहाँ तक कहते सुने गये कि इससे बेहतर तो ये पशु सडको पर ही थे। भले ही कम सही मगर इनको भूख लगने पर भोजन तो मिल जाता था।

बहरहाल, यहाँ के हालत देख कर बरबस ही मुह से निकल पड़ा कि कहा है काका वो सडको पर हिंसा करने वाले गौरक्षक। क्या केवल गौप्रेम और सम्मान केवल सडको पर ही दिखाई दे जाता है और उबाल खाता है। तनिक इस तरफ भी उसी प्रेम और सम्मान की धारा को बहने दे। इस दुर्व्यवस्था के लिए किसी व्यक्ति विशेष अथवा पुरे तंत्र को ज़िम्मेदार हम नही कह रहे है। मगर जो इस दुर्व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार है उनसे मेरा सिर्फ इतना ही कहना है कि आप किसी धर्म को मान रहे हो। मगर किसी भी धर्म में पशुओ के साथ ऐसी क्रूरता नही बताई जाती है। बेजुबान जानवर ही समझ कर इनका भला कर दे साहब, ये अपना दर्द किसी को बता नही सकती है।

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