तारिक आज़मी
वाराणसी। मज़हब के ठेकेदारों और मज़हब के नाम पर नफरत फैला कर सियासत करने वालो को एक करारा जवाब मुहब्बत होती है। शायद वह इस जवाब को न समझ पाए मगर अधेरे को मिटाने के लिए एक चिराग-ए-सुखन ही काफी होता है। शायद वह एक चराग-ए-सुखन जलाने की कोशिशे हर तरफ होती है। मगर इस चराग को रोशन करने की कामयाबी कितनो को मिलती है ये तो तवारीखी वक्त ही बता सकता है। वैसे ऐसे लोगो को भले दुनिया किसी भी नाम से पुकारे मगर ये खुद में ही खोये अपने सफ़र का कारवा लेकर चलते रहते है। ये हकीकत है कि मज़हबी नाइत्तेफाकी पैदा कर मुआशरे (समाज) में अँधेरा करने वालो के लिए सिर्फ एक जवाब है, तालीम का उजाला।
खुद भी पढ़ रही और बच्चों को भी दे रही नि:शुल्क शिक्षा
तहनियत खुद पढ़ाई कर रही है और बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं। हकीकत में तहनियत उन बच्चों के लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं है, जो तालीम तो पाना चाहते हैं लेकिन माली हालत बेहतर न होने ये ख्वाब बना हुआ था। ऐसे बच्चों के सपनों को उड़ान देने के लिए नि:शुल्क शिक्षा देने का काम तहनियत ने शुरू किया है। जिसका परिणाम सामने आने लगा है।
सभी छात्र गैर मुस्लिम
उनके स्कूल की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मुस्लिम शिक्षिका के पास पढ़ने आने वाले सभी छात्र गैर-मुस्लिम खासकर दलित हैं। तहनियत के इस काम में शुरुआत में मज़हबी अड़चनें भी आईं, लेकिन अपने मजबूत इरादों के बल पर उन्होंने छात्रों के बीच धर्म की दीवार को कभी आड़े नहीं आने दिया।
पूरा परिवार देता है साथ
तीन बहन भाइयों मे सबसे बड़ी तहनियत के इस काम में उनकी छोटी बहन तमन्ना और सरकारी शिक्षक पिता रज्जब शेख और सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता भी सहयोग करते हैं। तहनियत ने बताया कि अभी उनके पिता और क्षेत्र के लोग इस कार्य के लिए पैसे का इन्तजाम करते हैं। लेकिन साक्षरता को बढ़ाने के लिए सभी के सहयोग की जरुरत है। उन्हें उम्मीद है कि जल्द बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए अन्य लोग भी आगे आयेंगे।
तहनियत ने हमसे बात करते हुवे बताया कि बच्चों को तालीम देना भी एक इबादत है। इस्लाम में इल्म का बड़ा मुकाम है। शरियत में कहा गया है कि इल्म हासिल करने के लिए अगर चीन भी जाना हो तो जाओ। जिन बच्चो को तालीम सिर्फ इस वजह से नही मिल पाए कि वह गरीब है और कापी किताब खरीदने के पैसे उनके पास नही है उनको तालीम मुहैया कराना भी एक इबादत से कम नही है। तहनियत ने कहा कि इबादत के पैसे नही लिए जाते है। इसलिए वह छात्रों से कोई शुल्क नहीं लेतीं। कहा कि मैं एक वर्ष पूर्व से पढ़ा रही हु। शुरुआत के तीन महीनों में लगभग 10 बच्चे आये थे लेकिन अब 40 बच्चे रोज पढ़ने आते हैं।
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