Categories: UP

बुझ गया बनारस के फ़ुटबाल का एक सितारा, हार गए ज़िदगी की जंग में सिकन्दर

तारिक आज़मी

वाराणसी। शहर बनारस अपने दो खेलो में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा है। बनारस में जहा कटिंग मेमोरियल के ग्राउंड को हाकी खिलाडियों की फैक्ट्री कहा जाता था वही बनियाबाग़ मैदान को फ़ुटबाल खिलाडियों की फैक्ट्री के नाम से जाना जाता रहा है। वक्त ने काफी करवटे लिया और हाकी जहा वरुणा पार से खत्म होने के तरफ बढ़ चुकी है। वही बनिया बाग़ मैदान भले ही बच्चो को फ़ुटबाल खेलता देख खुद को तसल्ली दे रहा हो मगर हकीकत में फ़ुटबाल भी इस मैदान से अब ख़त्म होने के कगार पर पहुच चूका है।

जिस तरीके से शहर में फ़ुटबाल अपने आखरी मरहले में जा रहा है उसी तरीके से पुराने फ़ुटबाल खिलाड़ी भी अपने कारोबार में जाकर आजीविका पर ध्यान केन्द्रित रखने लगे है। एक आखरी सफा बने हुवे शहर के अपने समय के मशहूर फ़ुटबाल खिलाड़ी रहे और बाद में खेल से संन्यास लेकर बच्चो को फ़ुटबाल सिखाने में अपनी ज़िन्दगी करने वाले सिकंदर आज आखिर खुद की सांसो से चल रही अपनी जंग हार गए। 85 वर्षीया फ़ुटबाल खिलाड़ी और बनारस स्पोर्टिंग के कोच रहे सिकंदर ने आज शाम को खुद के पैत्रिक आवास बनिया बाग़ पर अपनी आखरी सांसे लिया।

सिकंदर बतौर खिलाड़ी शहर का नाम राष्ट्रीय स्तर पर काफी रोशन किया था। वही खेलो से सन्यास लेने के बाद सिकंदर ने खुद का जीवन फ़ुटबाल को समर्पित करते हुवे नवजवानों को फ़ुटबाल खेलना सिखाना बतौर कोच शुरू कर दिया था। उनके सिखाये हुवे कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम और शहर का नाम रोशन कर चुके है। बताया जाता है कि खेल सिखाने के लिए सिकंदर कभी कोई भी फीस नही लेते थे। वह खेल को एक कला कहते थे और कहते थे कि कला का ज्ञान किसी को बेचा नही जाता है। इसका कोई मोल नही होता है।

पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि सिकंदर काफी समय से तकाज़ा-ए-उम्र की वजह से बीमार चल रहे थे। अपने पीछे उनकी पत्नी, 5 बेटे और एक बेटी का भरा पूरा परिवार छोड़ गए है। उनके आखरी मंजिल का सफ़र दोपहर एक बजे शुरू होगा और उनकी ख्वाहिशो के मुताबिक जिस मैदान ने उनको बचपन से खेलते हुवे जवान होते देखा है, फिर उसके बाद उस जवानी में उनके फ़ुटबाल के खेल की उचाइयो को देखा इसके बाद उनके बतौर एक कोच बच्चो को सिखाते हुवे देखा है उसी बेनियाबाग मैदान में नमाज़-ए-जनाज़ा होगी। इसके बाद पास ही तकिया रहीम शाह पर वह सुपुर्द-ए-ख़ाक किये जायेगे।

कहा जाता है मिटटी का चोगा एक दिन मिटटी में मिल जायेगा। शायद इसी तर्ज पर कल सिकंदर भी मिटटी के सुपुर्द होंगे, पीछे रह जायेगी तो उनकी यादे, अगर कुछ बाकी बचेगा तो उनके शागिर्दों में उनके सिखाये हुवे खेल का हुनर और कुछ बाकी रहेगा तो उनकी बच्चो को दी गई तालीम। PNN24 न्यूज़ इस जुझारू खिलाड़ी को अपनी सच्ची श्रधांजलि अर्पित करता है।

pnn24.in

Recent Posts

आशा सामाजिक शिक्षण केन्द्रों का हुआ संचालन प्रारम्भ, वाराणसी जनपद में कुल 11 केंद्र का संचालन लगभग 350 बच्चे हो रहे हैं लाभान्वित

शाहीन अंसारी वाराणसी: विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट द्वारा…

18 hours ago

एशियन ब्रिज इंडिया, मेन एंगेज इंडिया और साधिका ने मनाया अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी दिवस

ए0 जावेद वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के शिक्षाशास्त्र विभाग में अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी…

18 hours ago

संभल जामा मस्जिद प्रकरण में बोले ओवैसी ‘अदालत द्वारा बिना मस्जिद का पक्ष सुने आदेश पास करना गलत है’

निलोफर बानो डेस्क: उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के…

19 hours ago