तारिक आज़मी
वाराणसी। शहर बनारस अपने दो खेलो में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा है। बनारस में जहा कटिंग मेमोरियल के ग्राउंड को हाकी खिलाडियों की फैक्ट्री कहा जाता था वही बनियाबाग़ मैदान को फ़ुटबाल खिलाडियों की फैक्ट्री के नाम से जाना जाता रहा है। वक्त ने काफी करवटे लिया और हाकी जहा वरुणा पार से खत्म होने के तरफ बढ़ चुकी है। वही बनिया बाग़ मैदान भले ही बच्चो को फ़ुटबाल खेलता देख खुद को तसल्ली दे रहा हो मगर हकीकत में फ़ुटबाल भी इस मैदान से अब ख़त्म होने के कगार पर पहुच चूका है।
सिकंदर बतौर खिलाड़ी शहर का नाम राष्ट्रीय स्तर पर काफी रोशन किया था। वही खेलो से सन्यास लेने के बाद सिकंदर ने खुद का जीवन फ़ुटबाल को समर्पित करते हुवे नवजवानों को फ़ुटबाल खेलना सिखाना बतौर कोच शुरू कर दिया था। उनके सिखाये हुवे कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम और शहर का नाम रोशन कर चुके है। बताया जाता है कि खेल सिखाने के लिए सिकंदर कभी कोई भी फीस नही लेते थे। वह खेल को एक कला कहते थे और कहते थे कि कला का ज्ञान किसी को बेचा नही जाता है। इसका कोई मोल नही होता है।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि सिकंदर काफी समय से तकाज़ा-ए-उम्र की वजह से बीमार चल रहे थे। अपने पीछे उनकी पत्नी, 5 बेटे और एक बेटी का भरा पूरा परिवार छोड़ गए है। उनके आखरी मंजिल का सफ़र दोपहर एक बजे शुरू होगा और उनकी ख्वाहिशो के मुताबिक जिस मैदान ने उनको बचपन से खेलते हुवे जवान होते देखा है, फिर उसके बाद उस जवानी में उनके फ़ुटबाल के खेल की उचाइयो को देखा इसके बाद उनके बतौर एक कोच बच्चो को सिखाते हुवे देखा है उसी बेनियाबाग मैदान में नमाज़-ए-जनाज़ा होगी। इसके बाद पास ही तकिया रहीम शाह पर वह सुपुर्द-ए-ख़ाक किये जायेगे।
कहा जाता है मिटटी का चोगा एक दिन मिटटी में मिल जायेगा। शायद इसी तर्ज पर कल सिकंदर भी मिटटी के सुपुर्द होंगे, पीछे रह जायेगी तो उनकी यादे, अगर कुछ बाकी बचेगा तो उनके शागिर्दों में उनके सिखाये हुवे खेल का हुनर और कुछ बाकी रहेगा तो उनकी बच्चो को दी गई तालीम। PNN24 न्यूज़ इस जुझारू खिलाड़ी को अपनी सच्ची श्रधांजलि अर्पित करता है।
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