तारिक आज़मी
शायरी की दुनिया में एक बड़ा नाम है कैफ भोपाली। आज कल उनका एक शेर काफी ट्रेंड कर रहा है सोशल मीडिया पर। शेर कुछ इस तरह है कि ये दाढ़िया, तिलाक्धारियां नही चलती, हमारे अहद में मक्कारियां नही चलती। दिलो को जोड़ कर रखे मेरे सरदार, सरो को काट कर सरदारियाँ नही चलती। इस शेर ने मौजूदा वक्त में सोशल मीडिया पर खूब धूम मचाया हुआ है। यहाँ तक कि मशहूर शायर डॉ राहत इन्दौरी ने भी अपने ट्वीटर वाल पर इस शेर को जगह दे डाली है।
बहरहाल, शेर का दूसरा मिसरा अगर ध्यान दे तो काफी काबिले गौर है। सरदारियाँ चलाने के लिए भी सरो की ज़रूरत होती है। हुक्मरान हुकूमत से बना हुआ लफ्ज़ है। मगर हुकूमत तो रिआया पर होती है। अगर रिआया ही नही है तो फिर हुकूमत किस काम की और किसके ऊपर होगी। मौजूदा हालात में CAA हेतु चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान हो रही हिंसा कही न कही से इस शेर से ताल्लुक रखती है। मैं साफ़ साफ़ कहता हु कि जो भी आन्दोलन हिंसक होता है उसका अंजाम आन्दोलन का खात्मा ही होता है। हिंसा की जम्हूरियत में कोई जगह नही है।
एक पुलिस वाला भी इंसान होता है। हमारे आपके तरह का ही इंसान। वह भी नौकरी अपने बाल बच्चो की अच्छी परवरिश के लिए ही करता है। किसी के 52 बिगहे में पुदीना नही बोया हुआ है और वह नौकरी कर रहा है। सभी अपनी ज़रुरतो के हिसाब से ही नौकरी करते है। जैसे हम अपने बॉस के आदेश का पालन करते है वैसे ही पुलिस कर्मी भी अपने अधिकारियो के आदेश का पालन करते है। अब इसके लिए किसी आन्दोलन को हिंसक रूप देकर पुलिस पर हमलावर हो जाना कही से अक्लमंदी का काम नहीं कहलायेगा। आखिर आपका आन्दोलन अथवा विरोध प्रदर्शन हिंसक क्यों हो रहा है, कौन है जो विरोध प्रदर्शन के दौरान पथराव और अभद्रता करता है इसके लिए कही न कही से विरोध करने वालो को गौर-ओ-फिक्र की ज़रूरत है।
शायद इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ वह सरदारियाँ है जो हमको सडको पर अपनी रहनुमाई में लेकर आती है। आखिर आपकी रहनुमाई में चल रहे युवक हिंसक कैसे हो जा रहे है। कैसी रहनुमाई है। आपको अपनी रहनुमाई पर भी सोचना चाहिए कि आखिर आपकी रहनुमाई में किसका कितना नुकसान हो रहा है। भीड़ जब अनियंत्रित होती है तो एक भीड़ रहती है। आखिर ऐसी भीड़ के रहनुमा और सरदार बने लोग क्या अपनी सरदरियो के लिए ही सर को कलम करवा रहे है।
बहरहाल, कुछ ऐसा ही वाकया हुआ है है उत्तर प्रदेश के बिजनौर में। जहा पुलिस ने पहली बार कबूल किया है कि नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में उनकी ओर से फायरिंग की गई थी। यूपी में 15 लोगों की मौत प्रदर्शनों के दौरान हुई, जिनमें ज्यादात्तर की मौत गोली लगने से हुई है। लेकिन पुलिस का अभी तक कहना था कि उन्होंने कहीं भी प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई। लेकिन पश्चिम यूपी के बिजनौर में पुलिस ने एनडीटीवी को बताया कि शहर में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है, जिनमें से एक की मौत पुलिस की गोली लगने से हुई। बिजनौर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान शुक्रवार को हिंसा भड़क गई थी। एनडीटीवी की खबर में इस बात का दावा किया गया है कि बिजनौर के पुलिस प्रमुख ने बताया है कि एक पुलिसकर्मी ने आत्मरक्षा में 20 वर्षीय सुलेमान पर गोली चलाई थी।
अब अगर एनडीटीवी के रिपोर्ट का संज्ञान लिया जाए तो यह बयान जो बिजनौर के पुलिस अधिकारी का है से उत्तर प्रदेश पुलिस प्रमुख का बयान बिल्कुल विपरित है। यूपी के डीजीपी ने कहा था कि पुलिस फायरिंग में एक भी मौत नहीं हुई है। डीजीपी ओपी सिंह ने शनिवार को एनडीटीवी से बातचीत में कहा था कि हमने एक भी गोली नहीं चलाई’।
वही दूसरी तरफ सुलेमान के परिवार का कहना है कि वह सिविल सर्विसेज़ के एग्जाम की तैयारी कर रहा था और उसका प्रदर्शनों से कोई लेना देना नहीं था। उन्होंने दावा किया है कि पुलिस ने उन्हें डराया है। एनडीटीवी ने अपनी खबर में सुलेमान के भाई शोएब मलिक के बयान का हवाला देते हुवे कहा है कि शोएब ने कहा है कि ‘मेरा भाई नमाज पढ़ने गया था। हमारे घर के पास की मस्जिद नहीं बल्कि दूसरी मस्जिद गया था। जब वह बाहर आया तो लाठीचार्ज किया जा रहा था और आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे थे। पुलिस ने उसे उठाया और गोली मार दी।’
बहरहाल, मामले में अगर पुलिस के बयान को आधार माने तो भीड़ ने एक पुलिस वाले की रायफल छीन लिया था जिसको लेने के लिए पुलिस कर्मी दुबारा भीड़ में गया था और आत्मरक्षा में गोली चली। अगर इस बयान को ध्यान में रखे तो बात ये समझ में आती है कि गोली नाम पता पूछ कर नही चलती है। वही अगर मृतक सुलेमान के भाई का बयान ध्यान दे तो कुछ अलग ही है। मगर फिर भी एक शंका है कि शोएब का बयान खुद की आँखों से देखा बयान नही है बल्कि लोगो ने उसको जो बताया वह वो बता रहा है। इस बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने रविवार को बिजनौर पहुंचकर सुलेमान और अनिस के परिवार वालों से मुलाकात किया है। शायद राजनितिक मुलाकातों का दौर शुरू हो चूका है। सभी सियासी दल शायद अब मुलाकात का सिलसिला चलायेगे। मगर कोई इस बात पर गौर-ओ-फिक्र नही कर रहा है कि उस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कौन कर रहा था, या फिर बिना नेतृत्व की ही भीड़ थी। बहरहाल, प्रकरण जांच का विषय है और देखना होगा कि बिजनौर के पुलिस कप्तान क्या इसकी जाँच करवाते है या फिर नही।
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