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दालमंडी – पहलवानी के वर्चस्व से अपराध के वर्चस्व तक (भाग – 15) – कुख्यातो को भी संरक्षण देते है दालमंडी-नई सड़क के ये चंद बिल्डर

तारिक आज़मी

वाराणसी का दालमंडी क्षेत्र जहा व्यापार का हब है वही कुछ मुट्ठी भर के कुख्यातो द्वारा बिल्डर बन कर उभर जाने से चर्चा का केंद्र भी बनता जा रहा है। कभी एक समय था कि दालमंडी केवल और केवल व्यापार के लिए जाना जाता था। मगर आज एक समय ऐसा भी आ गया है जब बड़े बड़े अपराधियों को भी यहाँ के कुछ बिल्डर संरक्षण केवल अपने फायदे और दबदबे के लिए देते रहते है। इनको अपना दबदबा केवल बनाना ही मकसद होता है और विवादित संपत्तियों का ठेका लेना ही इनका मकसद होता है।

अपराध और बिल्डर के बीच का ये तालमेल की शुरुआत अगर देखे तो काफी मनोरंजक भी समझ में आती है। शुरू में तो केवल अपने नाम और कद के लिए चंद चुनिन्दा बिल्डर अपराध जगत के लोगो से नाता रखते थे। मगर समय बदला और बिल्डर के साथ काम करने वाले से लेकर चाय पकौड़े वाले भी अचानक बिल्डर बन बैठे। यहाँ से शुरू होता है अपराधियों के संरक्षण का मामला। अपनी गोटी सेट करने और काम में भारी भरकम कमाई के लालच में लोग कांट्रेक्टर बन बैठे है।

कैसे होता है बिल्डर कॉन्ट्रैक्ट का काम

दालमंडी-नई सड़क इलाके में सबसे ज्यादा कमाई का कारोबार बिल्डर कॉन्ट्रैक्ट पर भवन निर्माण का होता है। संपत्ति मालिक को एक टोकन मनी के रूप में एक रिफंडेबल रकम दिल जाती है और 100 रूपये के स्टाम्प पर एक मसौदा तैयार हो जाता है। जिसके तहत निर्मित हिस्से का 60 प्रतिशत हिस्सा बिल्डर बेचता है और बकिया हिस्सा 40 प्रतिशत संपत्ति मालिक का हो जाता है। एक उदहारण से इसको समझा जा सकता है कि संपत्ति पर दस दूकान और दस फ़्लैट निकलता है तो इनमे से 6 दुकाने और 6 फ़्लैट बिल्डर बेच देता है और बकिया संपत्ति यानी 4 दूकान और 4 फ़्लैट संपत्ति मालिक का हो जाता है।

कैसे है बड़ा मुनाफा

एक भवन निर्माण में कुल पांच तल्ले बनते है। सब मिलाकर लागत कुल एक से डेढ़ करोड़ पड़ती है। भवन निर्माण का कार्य शुरू होते ही बुकिंग शुरू हो जाती है और भवन निर्माण का अधिकतर पैसा एडवांस बुकिंग में निकल जाता है। कुछ जगहों पर अगर बिल्डर का नुकसान होता दिखाई देता है तो उस साईट को छोड़ कर बिल्डर एडवांस रकम लेकर रफूचक्कर होने का रास्ता भी जानता है। ऐसी कई शिकायते खुद चेतगंज थाने पर आई है जिसका निस्तारण पुलिस समझौते के तहत ही करवाती रही है।

उदहारण एक दे देता हु कि दालमंडी के एक बिल्डर साहब खुद के नाम में बाबा लगा कर बिल्डर बन गए। एक फ़्लैट की बुकिंग लिया और लाखो लेकर निर्माण रोक दिया, वर्त्तमान में ये मामला बड़े अधिकारियो के यहाँ से होते हुवे चौकी पानदरीबा पर निस्तारण की मुद्रा में है। अब पेच इसमें भी फंसेगी क्योकि बाबा से बिल्डर बने साहब ने वायदा तो कर लिया फ़्लैट देने का मगर सूत्र बताते है कि संपत्ति का मालिक रजिस्ट्री को तैयार हो ये ज़रूरी नही है। फिलहाल फ़्लैट की बुकिंग लगभग दो साल पहले करवाने वाला व्यक्ति शराफत में अपने 18 लाख फंसा चूका है और फ़्लैट पर काम भी बाकि है जो कछुआ रफ़्तार से चल रहा है।

शुरू से रहा है बाहुबलियों का वर्चस्व

बहरहाल, इस कारोबार में लम्बी चौड़ी इनकम को देखा कर हर दूसरा इंसान बिल्डर बनने को तैयार बैठा है। मगर मुद्दे की बात यहाँ जो प्रशासन गौर नही कर रहा है वह यह है कि शुरू से इस कारोबार पर बाहुबलियों का वर्चस्व रहा है। क्षेत्र में गिने चुने बिल्डर थे। अधिकतर गैर विवादित संपत्ति का ही काम होता रहा है। मगर समय के साथ आये बदलाव में इस गैर विवादित संपत्ति की जगह विवादित संपत्तियों ने भी लेना शुरू कर दिया और मामला यहाँ तक आ पंहुचा है।

हो चुकी है हत्या

बहुबल प्रदर्शन कर दालमंडी-नई सड़क इलाके में खुद का वर्चस्व कायम करने का आज कोई नया अपराधिक खेल नही है। इसका सबसे बड़ा उदहारण पार्षद कमाल हत्याकांड रहा है। दालमंडी क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी की तरह उभरे पार्षद कमाल की सरेराह उनके घर के पास हत्या कर दिया गया था। कारण सिर्फ एक था कि वर्चस्व कायम करना था। भले ही पुलिस ने मामले में चंद दिनों के भीतर ही कुख्यात को मुठभेड़ में मार गिराया, मगर वर्चस्व कायम हो चूका था। ये भारी भरकम वर्चस्व था और छोटे मोटे मामलो में बोलना इस वर्चस्व की फितरत नही थी।

अपराधियों को दिलता है संरक्षण

इसके बाद शुरू होता है खुद को बाहुबली साबित करना, खुद को बाहुबली साबित करने की ललक में अपराधियों को ये छोटे मगर खुद को बड़ा बिल्डर दर्शाने वाले संरक्षण देना शुरू कर चुके है। इस संरक्षण में इन बिल्डर्स द्वारा अपराधियों के साथ साथ खुद की अच्छी पैठ पुलिस के साथ भी बनाने का पूरा प्रयास रहता है। इस दौरान इनको थोडा बल और भी मिल गया जब स्थानीय चौकी इंचार्ज दालमंडी जमीलुद्दीन का स्थानांतरण हो गया और नए चौकी इंचार्ज को हल्का समझने में अच्छा ख़ासा समय लग गया। इस दौरान पुलिस में पैठ बनाने में कुछ ऐसे बिल्डर्स जिनकी तय्दात मुट्ठी भर भी नहीं है कामयाब हो रहे है।

कई कुख्यात पा रहे है कथित बिल्डरो के यहाँ संरक्षण

लगातार शहर ही नहीं बल्कि शहर और प्रदेश के बाहर के अपराधियों को संरक्षण देने का दौर शुरू हो गया। अति गोपनीय सूत्रों की माने तो वाराणसी पुलिस के लिए सरदर्द बने अपराधी दीपक वर्मा तक को इस इलाके के एक बिल्डर ने लम्बे समय तक शरण दे डाला। हमारे सूत्रों को दीपक वर्मा का वर्त्तमान फोटो भी प्राप्त हुई है जिसको आम जन की सुरक्षा के कारण अभी प्रकाशित करना उचित नही होगा।

बिहार के अपराधियों को भी मिला है संरक्षण

बनारस तो छोड़े साहब, मुठ्ठी भर वाले बिल्डर्स में एक ऐसे भी है जिन्होंने खुद के यहाँ बिहार के अपराधी को शरण दे रखा है। हिम्मत की दाद देना होगा इनके भी कि एक अपराधी को शरण देने वाले साहब उस अपराधी को लेकर पुलिस चौकी पर बैठ कर लोगो के मामले निपटाते भी दिखाई दे जा रहे है। मगर धन्य है वह चौकी प्रभारी और साथ ही एक अन्य थाने के सिपाही जो उसको पहचान करने के बाद भी अनदेखा करते है।

प्रयागराज में हत्या की सुपारी लेने वाला भी था एक बिल्डर के संरक्षण में

विगत पखवारे प्रयागराज में एक अपराधी की हत्या की सुपारी लेकर मारने गया मुमताज़ भी एक बिल्डर के दाहिने बाय दिखाई देता था। सूत्रों की माने तो बिल्डर साहब उसको दिन भर खुद की सुरक्षा में लेकर घुमा करते थे। वही उस हत्या की मुख्य रूप से सुपारी लेने वाला शाहिद भी उसी बिल्डर के साथ दिन भर उसकी कथित सुरक्षा के लिए रहता था। वैसे यह बात उन बिल्डर साहब को समझना चाहिए कि जब एक सुपारी लेकर वह किसी और को भेज सकता है किसी की हत्या के लिए, तो किसी ने दो चार लाख ज्यादा दिया तो घर का भेदी लंका भी ढाह सकता है।

अगले अंक में हम आपको बतायेगे कि आखिर कौन है दीपक वर्मा और उसका वर्त्तमान का फोटो भी जारी करेगे। जुड़े रहे हमारे साथ क्योकि हम इसी तर्ज पर काम करते है कि “जो बात कहते डरते है सब, वह बात तू लिख। इतनी अँधेरी थी न कभी ये रात तू लिख, जिसने कसीदे लिखे थे वह फेक कर कलम, फिर खून-ए-जिगर से सच्चे कलम की सिफअत तू लिख।” जुड़े रहे हमारे साथ……

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