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हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र कैलाली स्थित बेहड़ाबाबा मंदिर, साल में दो बार लगता हैं विशाल मेला

फारुख हुसैन

लखीमपुर  खीरी÷गौरीफंटा/ वसुधैव कुटुम्बकम ही सनातन परम्परा का मुख्य आधार रहा है वह चाहे नेपाल हो या चीन भारतीय सनातन धर्मी अपनी भक्तिभावना के लिये हमेशा से ही विशाव मे विशेष स्थान बनाये रहे है। भारतीय सीमा से सटे नेपाल के सुदुरपश्चिम प्रदेश की अस्थायी राजधानी धनगढ़ी उप-महानगरपालिका कैलाली ग्राम रामपुर-उर्ममा में स्थित बेहड़ाबाब का स्यम्-भू शिव मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केन्द रहा हैं जहा सदियो से भारतीय शैव्य परम्परा मे आस्था रखने वाले भक्त बेहड़ा बाबा दर्शन को पैदल व बैल गाडियो से आते रहे है, तथा नेपाल की राजशाही के दौरान भारतीयो शिव भक्तो को विशेष संरक्षण भी दिया जाता रहा है और पलिया बस यूनियन स्पेशल बसे भी गौरीफंटा तक चलाती रही है।

हिमालय की तलहटी में बसा पड़ोसी देश नेपाल  2020 को भ्रमण साल के तौर पर पर्याटन , प्रवर्धन विकास को लेकर सभी सात प्रदेशों से लगी भारतीय सीमाओं से भारतीय पर्याटकों को नेपाल में प्रवेश कराने  के लिए भब्य स्वागत करने की रणनीति बनाई है जिससे पर्यटन को बढावा मिल सके। नेपाल की राजशाही के दौरान भारतीय शिव भक्तो को राजशाही की तरफ से विशेष सहयोग मिलता था तथा मंदिर का मुख्य पुजारी भी बरखागिर को नियुक्त कर रखा गया था जो भारतीय मूल के गोस्वामी ब्राम्हण  थे इनसे पहले इनके पिता बेहडा बाबा मंदिर मे पूजा अर्चना करते थे।गौरीफंटा बांर्डर से 25 किलों मीटर दूर बेहड़ाबाबा के मंदिर में साल में दो बार विशाल मेला लगता हैं, प्रत्येक वर्ष माघ में मौनी आमवस्या , व ज्येष्ठ मास की दशमी तिथि को  जिसमें भारत के लखीमपुर , सीतापुर, बहराइच , शाहजहांपुर , हरदोई ,पीलीभीत , गोरखपुर , लखनऊ , कानपुर आदि जिलों से लाखों की तादात में भारतीय बाबा के अनुयायी भक्त सदियों से नेपाल दर्शन भ्रमण को जाते रहे हैं।

दर्शन हेतु जानें के लिए गौरीफंटा बांर्डर से धनगढ़ी बाजार होकर जंगल रास्ते से पैदल व अतरिया – चौमाला होकर निजी वाहनों , बसों से बाबा के दरबार में अर्जी लगाने के लिए लोग जाते रहे हैं। बेहड़ाबाबा के बारे में कहां जाता हैं कि लगभग ढाई सौ वर्ष पहले एक भारतीय ग्वाले को जो यहां के जंगल मे रहकर गायो को चराया करता था उसे स्यंम्-भू शिंवलिंग के स्वतः ही अचानक दर्शन हुये उसने देखा कि भूमि फोडकर एक काली शिव लिंग आकृति भूमि से ऊपर निकली दिखाई दी जिसे उस ग्वाले ने अपने साथियो को दिखाया और पूजन- अर्चन शुरू कर दिया आगे चलकर लोगो की की मन्नते पूरी होने लगी और वहां जंगल में जानवर चराने वाले चरवाहों ने उस काली लाट शिंवलिंग के बारे मे आस पास के गांववालों को भी बताया और पूजा पाठ शुरू कर दी। जैसे जैसे लोगों की मुरादें पूरी होती गई वैसे वैसे लोगों की आस्था बढ़ने लगी।

मुख्य प्राचीन मंदिर का निर्माण भारतीय भक्तो के द्वारा सहयोग से कराया गया और बाद मे नेपाल जिला प्रशासन ,भक्तों के सहयोग से अब मंदिर की रेख देख गांव समिति के लोगों द्वारा की जा रही हैं। श्रद्धालु दर्शन से पूर्व पवित्र नदी शिंव गंगा मे स्नान कर शिवगंगा का जल लेकर मंदिर मे चढाते है और मंदिर के उत्तर स्थित विशाल तालाव से कमल का फूल लेकर बाबा को अर्पित कर सरोबर के समीप स्थित प्राचीन माता के भी दर्शन का पुण्य लाभ उठाते है। दर्शन को जाने वालों में महिला ,पुरुष , बच्चों का साल में दो बार जन सैलाब भारतीय जिलो से नेपाल उमड़ पड़ता हैं।

निघासन तहसील के बौधिया निवासी पंडित बेदप्रकास मिश्र”व्यास जी”बताते है कि उनके पिता जी श्री शिव गोविन्द मिश्र जिनका वर्ष 1996 मे निधन हो गया, वह जव तक जीवित रहे हर माह की शिव रात्रि को सायकिल से जाकर बाबा के दर्शन करे थे और वही रुककर अमावस और पूर्णिमा को कथा करने के बाद ही गांव लौटते थे तथा लोगो को भी भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाते थे वही इसी गाव के ठाकुर द्वारिक सिंह जब तक जीवित रहे हर वर्ष दर्शन कर मंदिर मे चांदी का रुपया और हरिद्वार से गंगा जल लाकर चढाते थे यही परंपरा अब उनके पुत्र (अब लखीमपुर) निवासी भी निभा रहे है।

दर्शनार्थियों को पलिया से गौरीफंटा तक भेजने के लिए पलिया बस यूनियन को चार पाँच दिनों तक अतरिक्त दर्जनों अतिरिक्त बसों की व्यावस्था करनी पड़ती हैं। बाबा के भक्त मुकेश गुप्ता , गजेन्द्र सिंह , श्रीकिसन , विश्व कांत त्रिपाठी ने बताया कि मन्नते पूरी होने पर यहां मिट्टी की कुठिया चढ़ाने का प्रचलन हैं। मान्यता हैं कि यहां अधिकांशत : बिना औलाद वाले मां -बाप पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हैं  तथा देबी आपदा  से ग्रस्त फसलों की भरपाई के लिए भी लोग देवों के देव महादेव से प्रार्थना करने के लिए भारत से नेपाल पहुंते हैं।

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