तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – जामिया और शाहीनबाग़ के हमलावरो से आप नफरत नहीं करे, बस हालात को समझे. इस थेथरई की भी क्रोनोलाजी समझे

तारिक आज़मी

क्रोनोलाजी कब से थेथ्रोलाजी बनी समझने के लिए वक्त और एक समझ चाहिए। शायद चाय की चुस्की लेने के साथ ठन्डे दिमाग से अगर आप सोचे तभी आपके समझ में आयेगा कि आखिर इस थेथ्रोलाजी का जन्म कहा से हुआ। विश्वविद्यालय से कब यूनिवर्सिटी का जन्म व्हाट्सअप पर हुआ इसका पता लगाने के लिए एक बार फिर से इंजीनियरिंग में एडमिशन लेकर तीन बार फेल होना पड़ेगा। आप हमारी इस बात पर तीन बार हा हा हा करके हंस सकते है। खुद आप सोचे जब ज्ञान का समन्दर व्हाट्सअप पर बहने लगे तो उसको क्या कहेगे ? इस शिक्षा के माध्यम को आप व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी कह सकते है। ये ज्ञान इस प्रकार का है कि आपकी क्रोनोलाजी कब थेथ्रोलाजी में तब्दील हो जाए मालूम ही नहीं पड़ेगा। नफरतो की सियासत के बीच कब मुहब्बते तब्दील होकर कही गुम हो गई पता नही चला।

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आप खुद सोचे गांधीवादी तरीको से विरोध कर रहे लोगो का विरोध गोडसे सरीखे गोलियों से मिला आपको शायद बेचैन कर डाले। आप तब ज्यादा बेचैन होंगे जब नौकरशाहों द्वारा राजनैतिक बाते आप सुने और समझे कि वह नौकरशाह है, क्योकि उनकी बातो को सुनकर तो आप यही समझेगे कि किसी दल विशेष के प्रवक्ता है। अब आप खुद देखे आज एक नौकरशाह की ट्वीट देखा जो शाहींनबाग़ की घटना पर था। उन्होंने लिखा कि “मुझे पता नही क्यों एसा लग रहा है कि बहुत जल्द एक कहावत है “पतली गली पकड़ के भागना” चरितार्थ होने वाली है ?” अब आप सोचे उत्तर प्रदेश पुलिस के नौकरशाह जब ऐसी भाषा का प्रयोग करेगे तो क्या वह निष्पक्ष विवेचना कर सकते है। शक आपको ही नहीं बल्कि सभी को होता है।

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बहरहाल, आज हमारा मुद्दा इन नौकरशाह पर किसी तरह से अपना और आपका कीमती वक्त बर्बाद करने का नही है। जो मौसमो के तरह खुद का मिजाज़ और विचारधारा बदल सके फिर उसकी बात ही क्या करना है। हमारा मकसद सिर्फ उन नफरतो पर आज गौर-ओ-फिक्र करना है जो समाज में फैलते हुवे हमारे आपके घरो में आने को बेचैन है। हो भी क्यों न जब राजनैतिक दलों के मंच से गोली मारो ****को, आप हमसे ले लो आज़ादी-हम देकर रहेगे आज़ादी-हम ठोक कर देंगे आज़ादी जैसे नारे लगे तो आपको ज़रूर सोचना चाहिए कि कही आपको भीड़ में तो तब्दील नही किया जा रहा है।

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अब आप देखे खुद कि जब 30 जनवरी को जामिया में प्रोटेस्ट की तैयारी चल रही थी तभी एक युवक हाथो में तमंचा लेकर खुल्लम खुल्ला जामिया में आता है। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच तमाशबीन की तरह हाथ बांध कर खडी रही दिल्ली पुलिस और वह युवक जिसको आज नाबालिग साबित किया जा रहा है वह काफी देर तक तमंचा लहराता है। उसके बाद एक गन शॉट करता है और गोली एक युवक के बाजू में लगती है। इस दौरान कई फोटो ऐसे वायरल हुवे जिसमे जामिया में बहादुरी के साथ लाइब्रेरी तक में घुस कर छात्रो को मारने वाली दिल्ली पुलिस उतनी ही बहादुरी के साथ हाथ बांध कर खडी रहती है।

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ये तो सिर्फ एक शुरुआत थी। इसके बाद तो ऐसी घटनाओ की बाढ़ सी आ गई। दूसरी घटना हुई शाहीन बाग़ में, जहा जय श्री राम का नारा लगाकर एक और कट्टरपंथ की विचारधारा का प्रदर्शन करने वाले युवक ने दो गोलियां चलाई। इसके बाद शायद दिल्ली पुलिस ने नींद से जम्हाई लेना शुरू किया होगा। ऐसा इस लिए है क्योकि उसी रात को खुद को हिंदूवादी संगठनो ने शाहीनबाग़ का विरोध करने का मंसूबा तैयार किया और इसकी घोषणा भी सोशल मीडिया पर किया गया। दिल्ली पुलिस चाहती तो शायद उनपर कार्यवाही कर सकती थी। मगर उसने दुसरे दिन के प्रदर्शन में पसीना बहाना ज्यादा सही समझा होगा। अभी इस घटना की रात भी नही गुज़री कि जामिया में फिर एक बार गोली चली। इस बार अज्ञात हमलावरों ने गोली चलाई।

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चलिए साहब मुद्दे पर सीधे आते है। काफी लम्बे अरसे से देश हित के मुद्दों पर चिंता जताते हुवे कई पत्रकारों ने और समाज चिंतको ने इस बात की चिंता जताई थी कि कही हम भीड़ में तब्दील तो नही हो रहे है। और आज उसका मुजाहिरा हो रहा है। हम भीड़ में तब्दील हो चुके है। भीड़ की तरह हमारा बर्ताव हो चूका है। हम खुद के बजाये अपने सोचने समझने का कण्ट्रोल दुसरे के हाथो में दे चुके है। हमारे नवजवान कही न कही बहकावे का शिकार हो चुके है। नफरते हमारे ज़ेहन में घर कर चुकी है। राष्ट्र हित में कितना ये बेहतर है इसको आप खुद सोचे। क्रोनोलाजी इसकी गौरतलब करने को कहने की हिमाकत कैसे करू साहब, क्योकि क्रोनोलाजी की बात करूँगा तो व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के ज्ञानी अपना ज्ञान बघारते हुवे इस क्रोनोलाजी को थेथ्रोलाजी बना डालेगे। वैसे इस शब्द के कई मायने है, शोर्ट कट में आप हुज्जत-ए-बंगाल लफ्ज़ को समझने की कोशिश करे,

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नफरतो की इस दौड़ और सियासी नफरतो का शिकार होने वाला था शायद वो नाबालिग। फेसबुक प्रोफाइल पर अगर जाकर उस युवक की गतिविधियों को देखे तो आपको अंदाज़ा लग जायेगा कि आखिर किस प्रकार की नफरतो के बीच उसकी मानसिकता पनप रही है। आप उससे नफरत न करे। नफरतो का ये सिलसिला यही रोकिये। मुजाहिरा उस मुहब्बत का करे जिसने हमारे समाज को मजबूत नीव दिया है। आप उस मानसिकता को बीमार ज़रूर कह सकते है जो अपने मुफायद की खातिर हमारे समाज के नवजवानों के जेहनो में ज़हर घोल रही है। आप खुद सोचे मंचो से गोली मारो ****को जैसे नारे लगाये जायेगे। किसी विरोध प्रदर्शन को टुकड़े टुकड़े गैग और गद्दार जैसे शब्दों का प्रयोग होता देखेगे और फिर जिसको हम अपनी नुमाईन्दगी दे वही हमारे रहनुमा किसी विरोध प्रदर्शनकारी को भावी बलात्कारी साबित करने में जुटे तो नफरत की खेती ही होगी न।

मैं यहाँ उस नाबालिग लड़के को रामभक्त ही कहकर संबोधित करूँगा क्योकि मैं अपने मुल्क के कानून का सम्मान करता हु और कानून कहता है कि बालअपचारी का नाम प्रदर्शित नही हो सकता है। भले ही जब तक दिल्ली पुलिस उसको नाबालिग होने की घोषणा कर पाती तब तक उसका नाम और पूरा पता तक पुरे मुल्क को पता चल चूका था। मगर हम उसका नाम नहीं लेकर एक रामभक्त जैसे लफ्ज़ का इस्तेमाल करेगे। वैसे तो कृत्य कही से भी मर्यादा पुरषोत्तम अथवा इमाम-ए-हिन्द जैसे लकब से नवाज़े गए “राम” की दी हुई सीख से नहीं मिलते मगर क्या बताये काबुल में सिर्फ घोड़े थोड़ी होते है।

आप खुद सोचे आप भी एक माँ बाप या भाई बहन है। आप में से कितने लोग ऐसी आशा कर सकते है कि आपके परिवार का कोई बच्चा इस तरीके की हरकत करे। भले ही एक्स्ट्रा लाडप्यार हमारे बच्चो को बिगाड़ देने की राह तजवीज़ कर डाले मगर आप कभी भी नहीं चाहेगे कि हमारे परिवार का कोई बच्चा ऐसे हरकत करके कानून के शिकंजे में फंस जाए। आप जाकर उस रामभक्त के घर में उसके परिजनों की हालत अभी देखे। शायद उनकी रातो की नींद हराम होगी। दिन का चैन कचहरी की भागदौड़ में खर्च हो रहा होगा। खाना तो पूरा परिवार में बनता होगा मगर सुबह फेक का ही जाता होगा क्योकि कोई भी शायद भरपेट नही खा पा रहा होगा।

आप बिलकुल सही विजुअल क्रियेट कर रहे है। आप शांति से सोचे। ऐसे युवको के लिए आप नफरत अपने दिमाग में न भरे, बल्कि एक सहानुभूति उस परिवार के लिए ज़रूर रखे। नफरतो की इस खेती में आप ऐसे युवको के लिए अपने ज़ेहन में अगर नफरत लायेगे तो फिर नफरते अपना काम करना शुरू कर देंगी और उस नफरत की खेती को आप उर्वरक की शक्ति प्रदान कर बैठेगे। इससे बेहतर है कि नफरत के इस खेत में आप मुहब्बत का मट्ठा डाले और इस नफरत की फसल को रोक दे। अपने बच्चो को ऐसे कार्यक्रमों और टीवी डिबेट से दूर रखे जो सिर्फ नफरत की सौदागरी कर रहे है। मैं तो कहूँगा कि आप टीवी पर ऐसे समाचार चैनलों को ही बंद कर दे। टीवी मनोरंजन के लिए है खबरों में मनोरंजन न तलाशे। कई चैनल फिल्म दिखाते है। सीरियल्स देखे, फिल्म देखे, कपिल शर्मा का शो देखे। आपका मनोरंजन भी हो जायेगा और टीवी के पैसे भी वसूल हो जायेगे। बस ख्याल रखे अब नफरतो को नकारे। मुहब्बतों से अपना मुस्तकबिल सवारे। वरना वह दिन दूर नही होगा जब ऐसे रास्ता भटके नवयुवक हमारे और आपके परिवार में भी होंगे।

मुझको पता है कि आप सोच रहे होंगे कि हलके फुल्के जोक्स के साथ मजाकिया लहजे में आपसे गुफ्तगू करने वाली मोरबतियाँ आज इतनी संजीदा लफ्जों से क्यों सजी है। आप खुद सोचे जब माहोल इस तरीके का हो जाए तो ये सोचना होता है कि परिवार हमारा भी इसी मुआशरे में रहता है। राहत इन्दौरी साहब के शेर ने काफी ध्यान अपनी तरफ खीचा कि “सबकी पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए, सोचता हु कोई अखबार निकाला जाए। पी कर जो मस्त है उनसे तो कोई खौफ नही, पीकर जो होश में है उनको संभाला जाए। आसमा ही नही एक चाँद भी रहता है वहा, भूल कर भी कोई पत्थर न उछाला जाए।” शेर को बारीकी से समझने की ज़रूरत है। संजीदगी लफ्जों में खुद आ जायेगी।  

लेखक – तारिक आज़मी

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