तारिक आज़मी
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 को शायद इतिहास के पन्नो में विवादित और नफरतो के बीच हुवे चुनाव के तौर पर देखा जा सकता है। चुनावो में कई चुनावी वायदों के बीच पाकिस्तान भी आया, ईवीएम बटन दबाने पर शाहीनबाग़ को करेंट लगवाने की बात भी हुई। गोली मारने तक के नारे लगे और तो और शाहीनबाग़ के प्रदर्शनकारियों को भावी बलात्कारी और मानवबम की फैक्ट्री तक के बयान सामने आये। नफरतो की सियासत के बीच मतों के ध्रुवीकरण को शायद दिल्ली की जनता ने पार कर दिया और भाजपा को लाखो कोशिशो के बाद भी करारी हार का सामना करना पड़ा है।
दिल्ली चुनावों में भाजपा ने जी तोड़ कोशिशे किया था। भाजपा के द्वारा स्टार प्रचारकों के तौर पर लगभग अपनी पूरी टीम लगा दिया गया था। नफरतो का भी बयानों में दौर चला। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवालिया निशाँन लगा डाला गया। ईवीएम सुरक्षा पर भी सवाल लगाये गए। मगर दिल्ली की जनता का दिल शायद स्थानीय मुद्दों पर रुका रहा। उनको मोहल्ला क्लिनिक से लेकर केजरीवाल सरकार से आशा और उम्मीद दिखाई दे रही थी। भले ही भाजपा के द्वारा प्रचार के तौर पर कहा गया कि बटन इतने गुस्से से दबाये कि करेंट शाहीनबाग़ में लगे, मगर बटन तो झाड़ू पर दबा और भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
जेपी नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने के बाद पहला विधानसभा चुनाव हुआ। भाजपा ने कुछ इस तरह अपनी ताकत झोकी कि दिल्ली के तख़्त को पाने के लिए खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बागडोर संभाली और जमकर प्रचार किया। प्रचार हेतु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी कई सभाये हुई। गिरिराज सिंह ने भी अपना जोर दिखाया। यहाँ तक कि गृहमंत्री ने खुद गली नुक्कड़ो में प्रचार अभियान में भाग लिया। उत्तर प्रदेश और बिहार के वोटरों को लुभाने के लिए बड़ा चेहरा अभिनेता से नेता बने मनोज तिवारी को सामने किया गया। एक इंटरव्यूव के दौरान मनोज तिवारी ने रो रो कर अपनी गरीबी को बताया कि वह 24 साल तक सायकल नही खरीद पाए थे। पाकिस्तान का नाम इन सबके बीच खूब उछाला गया।
वैसे भी पाकिस्तान का नाम जितना भारत की सियासत में लिया जा रहा है उसको अगर याद करने पर हिच्च्कियो में तब्दील किया जाए तो फिर व्यक्तिगत रूप से कहना चाहूँगा कि बहुत बेगैरत ज़िन्दगी लेकर बैठा है पकिस्तान, वरना इतनी हिच्चकिया लेकर तो आमूमन गैरतदार लोग मर ही जाते है। लगता है दो चार चुनाव में अगर पाकिस्तान ऐसे ही याद किया जाता रहा तो वह हिचकियो की बिमारी का इलाज करवाने लगेगा। मेरे इस कटाक्ष पर आपको हंसी आ सकती है। मगर शायद दिल्ली की जनता ने अमूमन हसी नही हंसा बल्कि ईवीएम से अपना जवाब दे डाला।
इस सियासत में हनुमान जी को भी लाया गया था। बजरंगी से बजरंगी भाईजान तक के तमगो के साथ हुवे चुनाव में पोलिंग का दिन जहा हनुमान जी का दिन कहा जाता है, वही प्रशाद (नतीजो) का दिन मंगलवार भी हनुमान जी का दिन ही रहा। प्रसाद वितरण हो चूका है और जीत की ख़ुशी आम आदमी पार्टी के खेमे में चहक रही है। केजरीवाल जहा गुब्बारे उड़ा कर अपनी जीत का जश्न मना रहे है वही भाजपा के खेमे में सियासी मायूसी भी है। भले ही अभी तक के रुझानो के बाद कहा जा सकता है कि चार सीट पर भाजपा अधिक जीत गई है। पिछली बार तीन सीट पाने वाली भाजपा को इस बार चार सीट अधिक मिली है। इस चार सीट के अधिक जीत भाजपा को संतुष्टि तो नही दे सकती है। वही दूसरी तरफ जनता ने कह दिया कि अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल
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