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अर्दोग़ान ने सीरिया के तेल में फिर हिस्सा मांगना शुरू कर दिया, क्या पुनरनिर्माण के नाम पर तेल में साझेदारी मांगना सही है? कहां टिकी हैं तुर्की की निगाहें

कुमैल अहमद

: तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान हाल ही में जब ब्रसेल्ज़ की यात्रा से लौट रहे थे तो उन्होंने विमान पर पत्रकारों से बातचीत में यह ख़ुलासा किया कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन के सामने प्रस्ताव रखा है कि पूर्वी फ़ुरात के इलाक़े में सीरिया के तेल के कुओं को अपने हाथ में ले लिया जाए और इससे हासिल होने वाली आमदनी से सीरिया का पुनरनिर्माण किया जाए और सीरिया की मदद की जाए कि वह अपने पांव पर खड़ा हो जाए।
अर्दोग़ान ने कहा कि वह यही प्रस्ताव अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सामने भी रखने वाले हैं।
यह पहला मौक़ा नहीं है जब अर्दोग़ान ने यह मुद्दा उठाया है। इससे पहले दिसम्बर महीने में भी उन्होंने जेनेवा में शरणार्थियों के मामले में होने वाले सम्मेलन में कहा था कि सीरिया के तेल से होने वाली आमदनी को उत्तरी सीरिया में शरणार्थियों को बसाने पर ख़र्च किया जाए और उनके लिए आवास, स्कूल और अस्पताल बनाए जाएं।
तुर्क राष्ट्रपति अर्दोग़ान रूस और अमरीका के सामने यह प्रस्ताव रखकर एक तीर से तीन निशाने साधना चाहते हैं।
पहली चीज़ है कुर्द फ़ोर्सेज़ को तेल की आमदनी से वंचित करना जो इस समय पूर्वोत्तरी सीरिया के इलाक़े में स्वाधीन प्रशासन स्थापित करने में व्यस्त हैं। कुर्द फ़ोर्सेज़ को तुर्क राष्ट्रपति अर्दोग़ान आतंकवादी कहते हैं क्योंकि इन कुर्दों से तुर्की के कुर्दों को भी मदद मिल रही है जो तुर्की के भीतर अलगाववाद का अभियान चला रहे हैं।
अर्दोग़ान दूसरा निशाना यह साधना चाहते हैं कि आने वाले समय में जब सीरिया के पुनरनिर्माण का सिलसिला शुरू हो तो तुर्की को भी रुस के साथ हिस्सेदारी मिल जाए और सीरिया के तेल के कुओं का कंट्रोल तुर्क कंपनियों के हाथ में आ जाए और तुर्की अपने आर्थिक हित साध सके।
अर्दोग़ान का तीसरा निशाना यह है कि जो सीरियाई शरणार्थी इस समय तुर्की के भीतर मौजूद हैं उनसे तुर्की की जान छूट जाए और इन शरणार्थियों को सीरिया के पैसे से सीरिया के भीतर बसा दिया जाए। तुर्की में शरणार्थियों की संख्या 40 लाख तक बताई जाती है।
तुर्क राष्ट्रपति अर्दोग़ान इस समय गंभीर संकटों में फंसे हैं क्योंकि पड़ोसी देशों से उनका विवाद है। इस स्थिति में वह जहां से भी संभव है पैसा हासिल करना चाहते हैं। मगर उन्हें इसका अच्छा मौक़ा केवल सीरिया और लीबिया में दिखाई दे रहा है। अर्दोग़ान को मालूम है कि तुर्की को हर साल 54 मिलियन पर्यटकों से 40 अरब डालर की जो रक़म हासिल हो जाती थी वह कोरोना वायरस के कारण इस साल हासिल नहीं हो पाएगी।
सीरिया के तेल के इलाक़ों पर तुर्क सैनिकों का कोई कंट्रोल नहीं है। जिन इलाक़ों में तुर्क सैनिक मौजूद हैं वहां से तेल वाले इलाक़े कई सौ किलोमीटर दूर हैं। एसी रिपोर्टें हैं कि ट्रम्प सरकार और सीरियाई कुर्दों ने एक इस्राईली कंपनी को ठेका दिया है कि वह सीरिया का तेल निकाले और बेचे। इस्राईली मीडिया में कुर्द नेता का एक ख़त छपा है जिसमें उन्होंने इस्राईली कंपनी को सीरियाई तेल के कुओं से तेल निकालने का अधिकार दिया है।
इस समय जब तुर्की और रूस का मतभेद काफ़ी बढ़ चुका है तो हमें नहीं लगता कि अर्दोग़ान की पेशकश को पुतीन स्वीकार करेंगे। दूसरी बात यह है कि इस समय तेल के कुओं पर न तो तुर्की का कंट्रोल है और न ही रूस का। इस पर इस समय कुर्द फ़ोर्सेज़ और अमरीकी सैनिकों ने क़ब्ज़ा कर रखा है।

अगर अर्दोग़ान वाक़ई सीरिया का पुनरनिर्माण और सीरियाई शरणार्थियों के संकट से मुक्ति चाहते हैं तो इसका बेहतरीन और आसान रास्ता यह है कि अपने सैनिकों को सीरिया से बाहर निकालें और सीरियाई सरकार के साथ बैठ कर वार्ता करें।
सीरिया का तेल सीरियाई जनता की संपत्ति है दूसरे किसी को भी उसके क़रीब जाने का हक़ नहीं है। कुर्द फ़ोर्सेज़ जो अमरीकी सैनिकों की मदद से यह तेल चुरा रही हैं उन्हें कभी न कभी इस चोरी का हिसाब देना पड़ेगा बल्कि सज़ा भुगतनी होगी।
अमरीका सीरिया से बाहर निकलेगा और कुर्दों को एक बार फिर अकेला छोड़ देगा जैसा उसने अफ़ग़ानिस्तान में किया है या ख़ुद कुर्दों के साथ भी कर चुका है।
इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान सहित इलाक़े में अपनी सारी लड़ाइयां अमरीका हार चुका है और सीरिया की लड़ाई में भी उसका यही अंजाम होगा। यहां सवाल यह है कि क्या कुर्द और तुर्की इससे पाठ लेंगे?

(इनपुट्स रायुल यौम से)

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