बापू नंदन मिश्र
रतनपुरा(मऊ) कभी कम लागत में ज्यादा आमदनी के लिए जाना जाने वाला भेंड़ पालन व्यवसाय आज कठिनाई के दौर से गुज़र रहा है। ऐसा कहना किसी और का नहीं बल्कि कई पीढ़ियों से इस व्यवसाय में लगे भेड़ पालकों के हैं।विकास खंड रतनपुरा के दक्षिण तरफ स्थित लसरा गाँव के भेंड़ पालक बालेश्वर पाल ने कुछ इसी तरह अपनी समस्या बताया। उन्होने कहा कि भेड़ों से मांस,दूध,ऊन,खाद आदि उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
इसी कारण से पहले इसे एक लाभकारी व्यवसाय माना जाता था। ग्रामीण क्षेत्रों में सिमटते चारागाह भेड़पालकों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। सौ-दो सौ के झुंड में पाली जाने वाली भेंड़ो को बाँध कर खिलाना काफी कठिन एवं व्ययसाध्य है। अतः पालक झुंडों में लेकर उन्हें चारागाहों में चराते हैं।दूसरी समस्या इनकी बीमारियों के कारण आती है ।इनमें चिकड़ू(पैर का रोग),गलाघोटू, टेपवर्म,चर्म रोग सहित कई अन्य रोग प्रमुख हैं। इनकी दवाएँ नजदीकी राजकीय पशु अस्पताल पर नहीं उपलब्ध कराई जाती।
तीसरी समस्या इनके महत्वपू्र्ण उत्पाद ऊन की माँग ग्रामीण बाजारों में न के बराबर होने से भी पालकों में निराशा बढ रही है।उनका कहना है कि वर्ष में लगभग दो से तीन बार भेंड़ो से ऊन प्राप्त किया जाता है।जिनसे कंबल निर्माण कर उसे बेंच कर अच्छी आमदनी हो जाती थी।किंतु आज धंधा भी मंदा पड़ गया है। यद्यपि सरकार द्वारा कई योजनाएँ इस संबंध में चलाई जा रही हैं।किन्तु वह भेंड़ पालकों की पहुँच से अभी भी काफी दूर हैं।अतः लाभ का व्यवसाय होने के बावजूद भेंड़ पालकों की स्थिति अत्यंत दयनीय है।
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