तारिक आज़मी
वाराणसी। वाराणसी पुलिस की यादो में अचानक गिरधारी जिंदा हुआ है। नाम जानकर आपको भी अचम्भा हो सकता है। अपराधियों के ऊपर लिखी गई कहानिया और बनी हुई फिल्मे आपको रोचक लग सकती है। आप उनको देख कर भले पुलिस की कार्यशैली को मज़ाक का हिस्सा बना ले। मगर हकीकत ये है कि विवेचनाओ के जाल में उलझी पुलिस के पास क्राइम नियंत्रण का भले कार्य हो सकता है मगर फरार अपराधियों को पकड़ने के लिए जिस तसल्ली से वक्त की ज़रूरत है वह वक्त ही नही है।
कहा से जिंदा हुआ गिरधारी का नाम
लगभग 8 महीने पहले वाराणसी सदर तहसील परिसर में दिनदहाड़े दुस्साहसिक रूप से हत्या हो गई थी। वाराणसी पुलिस के लिए एक यह हत्या एक चैलेन्ज थी क्योकि एक कोल्ड ब्लाइंड मर्डर के तरीके से पुरे घटना में कोई सुराग पुलिस के हत्थे नही लगा था। सिर्फ अफवाहों का साम्राज्य ही पुलिस के हत्थे थे। इन्ही अफवाहों में से एक बाइक सवार दो युवको का फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा और दावा किया जाने लगा कि संदिग्ध हत्यारों का फोटो है। शाम भी नहीं गुज़री थी कि पुलिस ने उन दो युवको को पकड़ लिया। मगर खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत चरितार्थ होने लगी और पता चला कि वह दोनों युवक किसी भी तरीके से संदिग्ध नही थे।
रेनुकुट में मारे गए बबलू सिंह के हत्या का खुलासा हो गया और आरोपी पकडे गए। मामला राजनैतिक रंजिश जैसा निकल कर सामने आया। कई हत्याओं के दौर की एक हत्या के रूप में मामला खत्म भी हो गया। मगर विभाग ने एक खुलासे में इस बात पर तवज्जो नही दिया था कि रेनुकूट में मारे गए बबलू सिंह और उसी दिन वाराणसी में मारे गए बबलू सिंह के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध था। सम्बन्ध केवल औपचारिक अथवा कारोबारी ही नहीं बल्कि दोनों बबलू सिंह एक दुसरे के सगे ससुराली रिश्तेदार भी थे। बनारस में मारे गए बबलू सिंह का अच्छा ख़ासा समय रेनुकूट में मारे गए बबलू सिंह के आवास पर कटा था।
बहरहाल, दोनों मामलो को आपस में मिलाने से एक अलग खिचड़ी बन जायेगी, हम वापस बबलू सिंह जो वाराणसी तहसील सदर में मारे गये उस मुद्दे पर आते है। कुछ वक्त की भागदौड़ में अपराधी शहर छोड़ने में कामयाब हो गए। सूत्र बताते है कि अगर सही नाकेबंदी होती और तगड़ी चेकिंग होती तो शायद हत्या के बाद अपराधी भाग ही नही पाते। तहसील की सुरक्षा पर भी बड़ा प्रश्न उठा। सूत्र तो यह भी बताते है कि मौके पर किसी ने तहसील परिसर की छत से वीडियो बनाने का प्रयास किया था, जिस पर चौकन्ने अपराधियों की नज़र पड़ गई थी और उनमें से एक ने छत की तरफ भी गोली चला दिया था। इसके बाद से तहसील परिसर में सभी कर्मचारियों के बीच दहशत फ़ैल गई और जिसने भी वीडियो बनाया था वह डिलीट कर बैठा। हमारे द्वारा भी काफी प्रयास किया गया कि वह एक्सक्लुजिव वीडियो हमको प्राप्त हो जाए मगर कोई सफलता हाथ नही लगी थी। वही एसपी सिटी दिनेश सिंह ने प्रकरण को हल करने में काफी मेहनत किया।
यहाँ विभाग को दो हिस्सों में तकसीम होकर काम करते हुवे भी जानकारों ने देखा। देख कर ही लगने लगा था कि प्रकरण में क्राइम ब्रांच हल करने की अपनी कोशिश कर रही है। वही हर एक थाना प्रभारी अपनी कोशिश में लगा हुआ था। शिवपुर थाना प्रभारी खुद अपराध पर बहुत अच्छी जानकारी रखते है। मगर सफलता जुटाने में वह जानकारी अधूरी रह गई। बड़े सफ़ेदपोशो ने मामले में अपनी दखलअंदाजी जारी रखा था। नीचे से लेकर ऊपर तक जैक की कमी नही थी। सूत्र बताते है कि जो कोई मामले की तह तक जाने की कोशिश करता उसका रुख कही और मोड़ दिया जाता था।
वही हमारे सूत्र बताते है कि इस हत्याकांड में एक अपराधिक गैंग ने अपना वर्चस्व साबित करने का प्रयास किया था और प्रयास शायद सफल भी हुआ है। पूर्वांचल में “अजय-विजय” गैंग अपना पैर फैलाने की कोशिश कर रहा था। एक अति गोपनीय सूत्र के हवाले से मिली खबर के मुताबिक “अजय विजय” ने एक होटल व्यवसाई से बड़ी रकम की मांग किया था। बबलू सिंह इस रंगदारी में आड़े आ गए और खुद का अपराधिक इतिहास रखने वाले बबलू सिंह ने इस वसूली को रुकवा दिया। यहाँ से बबलू सिंह की पकड़ तो मजबूत हुई मगर अजय विजय की खुद की पकड़ अपराध जगत में कमज़ोर होती हुई दिखाई देने लगी। शायद यही एक बड़ा कारण बना बबलू सिंह की हत्या में।
वही एक अन्य सूत्र द्वारा मिली जानकारी और पुलिस की थ्योरी कुछ और कहती है। पुलिस थ्योरी और एक अन्य सूत्र से मिली जानकारी के अनुसार मुन्ना बजरंगी की पकड़ अपने सिंडिकेट में ढीली पड़ रही थी। लखनऊ में सफ़ेद कालर के बीच बैठे उसके संरक्षणदाताओं से लेकर वाराणसी तक के उसके सफेदपोश इससे चिंतित थे। इसी बीच छुटभैया जैसे बदमाशो ने भी बड़े बड़े कारनामे अंजाम देने शुरू कर दिए थे। जिसके बाद से बजरंगी के सफेदपोशो में अच्छी खासी सुगबुगाहट थी। वही जेल में बैठा बजरंगी किसी और नए प्रकरण को जन्म न देकर अपने नाम पर उतरती रंगदारी से संतुष्ट था और नही चाहता था कि किसी अन्य मामले में उसका नाम आये।
यही नही, बजरंगी खुद अथवा अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में भी था। इसके लिए उसके गुर्गे सेटिंग गेटिंग का जाल फैला रहे थे। इस बीच जौनपुर पुलिस ने भी एक बड़ी चुक किया था। जब बजरंगी की माँ मरी थी तो उसके अंतिम संस्कार में काफी संख्या में बड़े सफेदपोश इकठ्ठा होकर सीना पीट पीट कर रो रहे थे। ये सफेदपोशो पर शिकंजा कसने का एक अच्छा मौका था, मगर तत्कालीन जौनपुर पुलिस इस मामले में चुक चुकी थी। खैर, मुन्ना बजरंगी के सबसे करीबी तारिक की लखनऊ में हुई हत्या ने उसके सफेदपोशो में इस बात को ज़ाहिर कर दिया था कि बजरंगी की पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी है। इसी बीच बागपत जेल में बजरंगी की हत्या हो जाने के बाद गैंग के सफेदपोशी का चोला पहने लोगो तितर बितर होने शुरू हो गए। इस बीच सफेदपोश का चोगा पहने लखनऊ के एक ने दमन बबलू सिंह का थाम लिया। जिसका बुरा सबसे ज्यादा अगर किसी को लगा तो जौनपुर के वाइट कालर को लगा। जिसके बाद “अजय विजय” की रंजिश और जौनपुरी सफ़ेद कालर की रंजिश को एक साथ जोड़ कर भी देखा जाए तो इसका फायदा उठाया जौनपुर के सफ़ेदपोश ने और इस घटना को अंजाम दिलवा दिया गया।
सूत्रों की माने तो सफेदपोशी ने मामले में हत्यारों को रुकने से लेकर घटना के बाद का एग्जिट प्लान तक पूरा बना डाला। वाराणसी से लेकर चंदौली तक के सफ़ेदपोशी के सरताजो को उनका उनका काम सहेजा गया। सभी मोहरे सेट हुवे। रेकी की व्यवस्था भी हुई होगी और फिर घटना को अंजाम इस प्रकार से दिया गया कि बबलू सिंह के कमर पर लगी पिस्टल तक को निकालने का समय बबलू सिंह को नही मिला। क्रमशः भाग -2
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