अरशद आलम
वाराणसी। शहर में एक बार फिर लॉटरी का जिन्न बाहर निकल आया है। इस जुएं की लत में लाखों परिवार बर्बाद हो चुके हैं, जिसे देखते हुए करीब दो दशक पहले तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब यह जुर्म की श्रेणी में आता है, लेकिन इंटरनेट की मदद से सटोरियो ने यह गोरखधंधा फिर से शुरू कर दिया है। वे दोबारा लोगों को इस जुएं की लत लगवाकर हर दिन लाखों की काली कमाई कर रहे हैं। कुछ दिनों से वाराणसी में यह गोरखधंधा फिर से चोरी- छुपे चालू हो गया है।
सटोरियों ने पुलिस और प्रशासन की आंख में धूल झोंकने के लिए सट्टे का स्वरूप बदला है, लेकिन यह सट्टा बिल्कुल लॉटरी की तर्ज खेला जाता है। लॉटरी में जिस तरह से 0 से 9 नम्बर पर सट्टा लगाया जाता था। उसी तरह इसमें भी 0 से 9 नम्बर पर सट्टा लगता है। बस अन्तर इतना है कि लॉटरी में प्लेयर को प्रिंट की हुई लाटरी मिलती थी और इसमें प्लेयर को हाथ से लिखी पर्ची देने के साथ ही नेट से ड्रा निकाला जाता है, बड़े शहरों मुम्बई , पूना आदि में बैठे बड़े सटोरियों ने बाकायदा इसकी वेबसाइट भी बनाई हुई है। जिस पर हर आधी घण्टे में तथाकथित लाटरी का रिजल्ट ऑनलाइन आता है। खेलने वालो को बाकायदा सटोरियों द्वारा रिजल्ट देखने हेतु पासवर्ड और आईडी भी दी जाती है।
सट्टा खेलने के लिए अब कई सारी एप्प भी आ गई है, जिसमे कैसिनो में खेले जाने वाले सारे खेल ऑनलाइन उपलब्ध है, जो देश के किसी दूसरे कोने में बैठे आपरेटर द्वारा संचालित होती है, लोकल एजेंट कमीशन के आधार पर ग्राहक बनाते है और पैसा जमा कराकर एप्प का आईडी पासवर्ड ग्राहक को उपलब्ध कराते है, जीत या हार के बाद एप्प बैलेंस के हिसाब से पैसे का लेन देन हो जाता है। हाईटेक सटोरियों ने बाकायदा सट्टा खेलने वालो का व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाया हुआ है, जिससे वो बुकिंग से लेकर रिजल्ट भी रिलीज करते है, इस तरह ये बेईमानी का काला धंधा पूरी ईमानदारी से जारी है
जिस तरह से लॉटरी कई वैरायटी (2, 11, 51 आदि रु।) की होती थी, उसी तरह इसमें भी 11, 55 और 110 रुपए में एक नम्बर पर सट्टा लगा सकते हैं। लॉटरी की तरह इसमें भी प्लेयर अपनी इच्छानुसार एक नम्बर पर कई पर्ची ले सकता है। लॉटरी की तरह लक्की ड्रा निकलने पर एक पर्ची पर प्लेयर को नौ गुना पेमेंट होता है
शहर में फ़ैल रहा है सटोरियों का नेटवर्क
वैसे तो इस गोरखधंधे का जाल पूरे शहर में फैल गया है, लेकिन इसकी शुरुआत सिटी स्टेशन के आसपास के क्षेत्रो से हुई थी, और धीरे धीरे शहर के दालमंडी, लल्लापुरा, लक्सा सहित शहर के कई इलाकों में भी गुपचुप तरीके से शातिर सट्टेबाजों ने इटरनेट और व्हाट्सएप आदि के माध्यम अपना जाल फैला लिया है। काफी मशक्कत के बाद दालमंडी में तो लगभग सट्टा बंद हो गया है। मगर आसपास के इलाको में आज भी ये चालु है। सटोरियों ने अपना अड्डा दालमंडी से हटा कर अब नई सड़क के आसपास कर लिया है।
हर महीने करोड़ों की काली कमाई
सट्टा का यह काला कारोबार करीब 1 साल से शहर में गुपचुप तरीके से चल रहा है से शहर में चल रहा है और इस साल कोरोना के चलते आईपीएल के आयोजन ना होने से इन सट्टेबाजों को क्रिकेट पर सट्टा लगाने वाले नए ग्राहक भी मिल गए है
चरस से भी ज्यादा कमाई है इस काले कारोबार में
लोग सट्टे के इतने लती हो गए हैं कि सट्टे का एक- एक काउंटर रोज लाख-2 लाख या उससे ज्यादा का हो गया है। सूत्रों के मुताबिक इस समय शहर में कई सारे सटोरिये एक्टिव है इस हिसाब से सटोरिये हर महीने 1 से 2 करोड़ रुपए की काली कमाई कर रहे हैं। इस गोरखधंधे से जुड़े लोगों को तो कहना है कि इस धंधे में स्मैक से भी ज्यादा कमाई है।
इसे इत्तिफाक कहें या फिर कुछ और कि यह काला कारोबार पिछले 1 साल से शहर में फैलता जा रहा है, लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। स्मार्ट फोन के जरिये चुपचाप शहर में चल रहे इस गोरखधंधे पर पुलिस रोक कैसे लगाती है यह देखने वाली बात होगी।
कहा कहा है मुख्य अड्डा
अति गोपनीय सूत्रों की माने तो इस काले कारनामे के खेल का मुख्य अड्डा जहा सारनाथ के पंचकोसी मार्ग पर है, वही चेतगंज के सरायगोवर्धन सहित बनियाबाग़ के पास है। दुसरे अड्डो में भेलूपुर थाना क्षेत्र के शिवाला मुख्य अड्डा बना हुआ है। वही सिगरा थाना क्षेत्र का औरंगाबाद और लल्लापुरा भी इस कारनामे का गढ़ बना हुआ है। आदमपुर थाना क्षेत्र में भी जमकर इस काले कारोबार का परचम बुलंद है।
बड़ा सवाल
पुलिस की लचर कार्यशैली से इस काले कारोबार ने अपना पाँव जमकर फैला रखा हुआ है। कमज़ोर पड़ते पुलिस सूत्र और कही सूट बूट तो कही नंगे बदन कानो में मोबाइल लगाये चलते काले कारोबारियों पर पुलिस की नज़र क्यों नही पड़ती है ये बड़ा सवाल पैदा करता है। पुलिस खुद के सुचना तंत्र को क्या सिर्फ अपने खुद के जुगाड़ में ही इस्तेमाल कर रही है ये भी एक सवाल पैदा करता है। कई ऐसे काले कारोबारी है जिसको आज तक पुलिस पकड़ तक नही पाई है। जबकि जो पकडे गए पहले वह छुट कर खुद की सेटिंग गेटिंग से कारोबार चालु रखे हुवे है।
आदमपुर क्षेत्र का ऐसा ही एक कारोबारी कई बार जेल गया। मगर नतीजा आज भी सामने है। पुलिस के नाक के नीचे उसका काला कारोबार अब फोन पर कान में लगा कर जारी है। शिकायतों का क्या है साहब वो तो चलती रहती है। सूत्रों की माने तो स्थानीय पुलिस जानकारी होने के बावजूद सबूत नही मिल सकने का बहान बना कर खुद का पल्ला झाड लेती है। आखिर सबूतों के इस कथित अभाव में ऐसे काले कारोबारी कब तक आम नागरिको की ज़िन्दगी से खेलते रहेगे ? ये एक बड़ा सवाल है।
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