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राजनैतिक और अपराध के गठजोड़ का नमूना है दुर्दांत अपराधी विकास दुबे, जाने उसकी क्या है अपराधिक कुंडली

तारिक आज़मी संग फारुख हुसैन

कानपुर (डेस्क)। भारत की राजनीत और अपराध का गठजोड़ कोई नई बात नही है। बड़े अपराधियों को राजनैतिक संरक्षण कोई पुरानी बात नही है। अपने समय के दुर्दांत जौनपुर के अपराधी बब्बू को आईपीएस और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर अपराधियों के लिए खौफ का आज भी जो सबब है नवनीत सिकेरा ने तत्कालीन एक कद्दावर मंत्री के आवास के ठीक पीछे एनकाउंटर में मार गिराया था। उस समय भी मीडिया रिपोर्ट की बातो पर ध्यान दिया जाए तो उस अपराधी का सम्बन्ध तत्कालीन मंत्री से निकल रहा था।

इसके बाद भी कई बड़े अपराधी का गठजोड़ राजनैतिक रहा है। कुख्यात अपराधी और मौत का दूसरा नाम बने मुन्ना बजरंगी का नाम भी एक राजनैतिक दल के साथ जोड़ा जा रहा था। इसी प्रकार पूर्वांचल के कुख्यात रहे अन्नू त्रिपाठी और बाबु यादव का नाम भी राजनैतिक दलों के साथ जुडा हुआ था। कानपुर में आतंक का दूसरा नाम बने डी-2 गैंग भी राजनैतिक संरक्षण में होने की बात सामने आई थी।

विकास दुबे के घर को जाने वाली गाव की रोड पर लगा उसके नाम का शिलापट्ट दर्शाता है कि उसकी हनक आस पास के इलाको में ही नहीं बल्कि राजनैतिक भी है

हमारा इतना पुराना इतिहास बताने का सिर्फ एक मकसद है कि भारतीय राजनीती और अपराधियों से मेलजोल कोई नई बात नही है। इस प्रकार से दुर्दांत अपराधी विकास दुबे भी राजनैतिक संरक्षण में होगा। विकास  दुबे 90 के दशक में जब इलाके में एक छोटा-मोटा बदमाश हुआ करता था तो पुलिस उसे अक्सर मारपीट के मामले में पकड़कर ले जाती थी। लेकिन उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय रसूखदार नेता विधायक और सांसदों तक के फोन आने लगते थे।

विकास दुबे को सत्ता का संरक्षण भी मिला और वह एक बार जिला पंचायत सदस्य भी चुना गया था। उसके घर के लोग तीन गांव में प्रधान भी बन चुके हैं। अगर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो विकास दुबे ऊपर कैबिनेट मंत्रियों तक का हाथ था। कानपुर के जिस इलाकों से विकास दुबे का रिश्ता है, वह दरअसल ब्राह्मण बहुल इलाका है। लेकिन यहां की राजनीति में पिछड़ी जातियों को नेता भी हावी थे। इस हनक को कम करने के लिए नेताओं ने विकास दुबे का इस्तेमाल किया।

उधर विकास की नजर इलाके में बढ़ती जमीन की कीमतों और वसूली पर था। इसके बाद से शुरू हुवा सत्ता के संरक्षण में विकास दुबे का आतंक।  हालांकि बाद में उसका नाम कई ऐसे मामलों में सामने आया जिसमें निशाने पर अगड़ी जाति के भी नेता थे। मगर तब तक विकास दुबे का आतंक बढ़ गया था और कई नेता जिनसे विकास दबे की पटरी नहीं खाती थी वो उसके निशाने पर आ गए थे। उस समय इलाके में जमीनों की कीमत बढ़ने लगी थी।

सूत्रों की माने तो विकास दुबे का आपराधिक इतिहास ही नहीं रहा बल्कि उसकी पैठ हर राजनीतिक दल में होती है। शायद यही एक बड़ी वजह है कि आज तक उसे नहीं पकड़ा जा सका है। यही नही बल्कि खुद विकास दुबे कई राजनीतिक दलों में भी रहा है। उसने अपने घर को किले की तरह बना रखा है। यहां उसकी मर्जी के बिना घुस पाना बहुत ही मुश्किल है।

विकास दुबे को कानून अथवा किसी अन्य बात का कभी डर रहा ही नही है। कानून से खिलवाड़ करना उसने अपना शौक बना रखा था। क्योकि शायद उसको भली भाति मालूम है कि उसके राजनैतिक आका उसको बचा लेंगे। इसकी दबंगई की इन्तहा सिर्फ एक मामले में ही ज़ाहिर हो जायेगी जो इसने 2001 में किया था। विकास अपनी दबंगई के विकास हेतु थाने में घुसकर भाजपा के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। इस घटना के चश्मदीद गवाह एक नहीं काफी पुलिस वाले थे। इस हत्याकांड ने पुरे प्रदेश में हडकम्प मचा दिया था। लोगो में खौफ घर कर गया था। और शायद विकास दुबे यही चाहता भी था। आखिर उसका रिजल्ट क्या निकला। संतोष शुक्ला हत्याकांड जिसने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया था में पुलिस से लेकर कानून तक विकास दुबे का कुछ न कर पाया और उसको बरी कर दिया गया।

अपनी गलतियों से कभी सबक न सीखने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बड़ा झटका हो सकता था, मगर ऐसे झटको को उत्तर प्रदेश पुलिस आया गया करके टालने की आदत बना चुकी है। हुआ भी वही, कोई चिंतन मंथन नही हुआ कि पुलिस कहा चुकी जो विकास दुबे उस हत्याकांड से बरी हो गया। कोई गौर-ओ-फ़िक्र न हुई कि आखिर केस की पैरवी में कौन सी कमी थी। कौन गवाह टुटा, किसने गवाही बदली। बस आई गई बात खत्म हो गई और संतोष शुक्ला के मौत का इन्साफ पाने के लिए शायद संतोष शुक्ला की रूह आज भी तड़प रही होगी।

विकास दुबे इसके अलावा 2000 में कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या के मामले में भी नामजद किया गया था। इसी साल उसके ऊपर रामबाबू यादव की हत्या के मामले में साजिश रचने का आरोप लगा था। यह साजिश उसने जेल से बैठकर रची थी। 2004 में एक केबल व्यवसाई दिनेश दुबे की हत्या के मामले में भी विकास का नाम आया था। 2013 में भी विकास दुबे ने हत्या की एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया था। 2018 में विकास दुबे ने अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला करवाया था। अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।

2002 में बीएसपी की मायावती सरकार के दौरान उसकी तूती बोलती थी। उसके ऊपर जमीनों की अवैध खरीद फरोख्त का आरोप है। उसने गैर कानूनी तरीके से करोड़ों रुपये की संपत्तियां बनाई हैं। बिठूर में ही उसके स्कूल और कॉलेज हैं। वह एक लॉ कॉलेज का भी मालिक है। मगर विकास दुबे की हनक जारी रही। अधिकारी आते और चले जाते मगर कोई अधिकारी विकास दुबे का साम्राज्य खत्म नही कर पा रहा है। विकास दुबे के साम्राज्य का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जेल में रहने के दौरान ही वह चुनाव लड़ा था और शिवराजपुर से नगर पंचयात का चुनाव जीता भी था। क्योकि उसका खौफ इतना है कि वह जेल को अपना घर समझ कर वही बैठे बैठे घटनाओं को अंजाम दिलवा देता था।

विकास दुबे का अपराधिक इतिहास

बहरहाल, अब मामला पुलिस से आमने सामने टकराने का है। पुलिस नाकेबंदी करके तलाशी कर रही है। न मालूम इतने समय में विकास दुबे अपने किस राजनैतिक आका के पल्लू में पहुच चूका होगा। पुलिस आज उसके दो गुर्गो को मार कर पुलिस से लुटे गए असलहे बरामद कर खुद की पीठ भले थोड़ी थपथापा ले, मगर ये घटना आज से लगभग 2 दशक पहले पूर्वांचल में हुई घटना की याद को ताज़ा कर गई जब पुलिस टीम ने मुन्ना बजरंगी को उसके गुर्गो सहित घेरने की कोशिश किया था।

उसका क्या परिणाम हुआ आज भी उसकी नजीर कायम है। खौफ का दूसरा नाम बने अब विकास दुबे के मामले में कानपुर पुलिस कितना विकास करती है ये देखने वाली बात होगी। क्योकि कानपुर में बढ़ते अपराध और हौसले के बुलंद अपराधियों को चाबुको के बल पर नियंत्रित करने के लिए नवनीत सिकेरा जैसा अधिकारी कानपुर की सरज़मीन को चाहिये। मगर ताज़ा हालातो में नवनीत सिकेरा जैसा काबिल अधिकारी अब शांत होकर बैठा है।

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