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भारत-नेपाल सीमा पर कमाई कर बढ़ रहे धनकुबेरों की होनी चाहिए जांच, अल्पविधि में हो गई आर्थिक उन्नति, बन गये अमीर

फारुख हुसैन

पलियाकलां-खीरी। भारत-नेपाल सीमा से जुड़ा जनपद खीरी का यह तराई इलाका विदेशी वस्तुओं व भारतीय सामान की तस्करी के साथ वन्यजीवों के अवैध शिकार एवं वन माफियाओं की सक्रियता को लेकर हमेशा चर्चित रहा है। इसके अतिरिक्त सीमा क्षेत्र पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की संभावित गतिविधियों के कारण संवेदनशील माना जाता है। इन सबके बीच खास बात यह भी है कि पिछले एक दशक में सीमावर्ती इलाकों में ‘धनकुबेरों’ की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इनकी जांच आवश्यक बताई जा रही है।

भारत-नेपाल सीमा से जुडे जिला खीरी के प्रमुख गांवों, कस्बों तथा नगरों के तमाम सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्तियों का आर्थिक विकास बहुत ही अल्प अवधि में हुआ है। दूर-दराज के अनजान लोग इन ‘धनकुबेरों’ की आर्थिक उन्नति को भले ही चमत्कार मानते हो, किन्तु क्षेत्रीय नागरिक पर्दे के पीछे की वास्तविकता से भली भांति परिचित हैं और जानते हैं कि इस चमत्कार के पीछे तस्करी का कितना बड़ा योगदान है। तराई क्षेत्र के इतिहास पर अगर नजर डाली जाए तो लगभग दो-तीन दशक पूर्व यहां के धनकुबेरों को अंगुलियों पर गिना जा सकता था। लेकिन वर्तमान में स्थिति यह हो गई है कि बनगवां व सूंडा में अपनी दुकानें खोलने के बाद से तस्करी तथा दो नम्बर के अवैध कारोबार से बने अमीरों की फेहरिस्त काफी लम्बी हो गई है।

फुटपाथ से कोठियों व कोठियों से महलों तक पहुंचने वाले अमीरों की हकीकत से अनजान लोग उनकी आर्थिक तरक्की को मिसाल के रूप में पेश करते हैं परिणाम स्वरूप आधुनिकता व भौतिकवाद की अंधी दौड़ में भागने के लिए तैयार युवा पीढ़ी भी रातों-रात अमीर बनने का सुनहरा ख्वाब देखती रहती है। युवकों की इस कमजोरी का फायदा क्षेत्र में सक्रिय तस्कर गिरोह उठा रहे हैं। धनवान बनाने का सपना दिखाकर तस्कर युवकों को अवैध कारोबार में उतार देते हैं। उनको एक निश्चित सीमा तक ही आगे बढ़ने देते हैं। अगर किसी युवक ने हिम्मत जुटाकर सीमा का उल्लंघन करने का प्रयास किया तो मुखियाओं द्वारा इनका दायरा सीमित कर दिया जाता है। ऐसे में युवक कुंठाग्रस्त जीवन व्यतीत करने को विवश हो जाते हैं या फिर सांठ-गांठ करके अपना अलग गिरोह बनाकर तस्करी के दलदली गोरखधंधे में फंसें रहते हैं।

खतरा उठाकर अधिक लाभ लेने के लिए तस्करी के इस खतरनाक धंधे में शामिल युवक इस तरह से भटक गए हैं कि न उन्हें अपना भविष्य दिखाई दे रहा है, न देश की चिंता है और न ही इससे होने वाले गंभीर दुष्परिणामों की फिक्र है। भारत-नेपाल आवागमन के मुख्य मार्गो पर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जांच पड़ताल की जाती है। इसके चलते सक्रिय युवा तस्कर जंगल में बने चोर रास्तों से प्रतिबधित सामान यहां से वहां लाते ले जाते हैं। इनके कार्य में सीमा क्षेत्र के सुरक्षा विभागों के अधिकारी तथा कर्मचारी पर्दे की आड़ में निजी स्वार्थ वश भरपूर योगदान देते हैं। सूत्रों के अनुसार सीमा पर दोनों देशों के तमाम गांवों में तस्करों ने अनेक भूमिगत अड्डों को बना रखा है। जहां से इनका कारोबार निर्वाध गति से चलता रहता है। क्षेत्र के बुद्धिजीवियों का मानना है कि धंधा चाहे कुछ भी हो जो रोजी-रोटी से जुड़ गया उसे किसी भी स्थिति में समाप्त नहीं किया जा सकता है। कभी पैदल चलने वालों के हांथ में कौन सा कारू का खजाना लग गया कि वह अब अपनी कारों से घूमने लगे। लोगों का यह भी मानना है कि अमीर बनने की दौड़ में शामिल लोग तस्करी के अवैध कारोबार के द्वारा सरकार को राजस्व की क्षति पहुंचा रहे हैं। ऐसे लोग ज्यादा धन के लालच में भारत विरोधी गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं।

इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। आईएसआई की कार्यप्रणाली के अनुसार एजेंट ऐसे दिग्भ्रमित युवकों की तलाश में रहते हैं। आईएसआई ने अपने जाल में अगर युवकों को फांस लिया तो भविष्य में घातक दुष्परिणाम निकल सकते हैं। सरकारी तौर पर सीमा क्षेत्र पर आईएसआई गतिविधियों को शून्य बताया जा रहा है। इसके बावजूद भारत-नेपाल सीमा इसके लिए अतिसंवेदनशील खुफिया तंत्र द्वारा मानी जाती है। आईएसआई द्वारा न दिखने वाले फैलाए जा रहे मकड़जाल पर समय रहते लगाम लगाया जाना आवश्यक बताया जा रहा है, तथा पिछले एक दशक में बने धनकुबेरों की पृष्ठभूमि की जांच किसी बड़ी जांच एजेंसी से कराकर उनके अमीर बनने के रहस्य का पर्दाफाश किया जाना भी अपरिहार्य हो गया है।

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