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बिहार – चुनाव क्षेत्रों में जाने से कतराते नजर आ रहे हैं जनप्रतिनिधि, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जमकर खरी-खोटी सुना रहें हैं पीड़ित लोग

अनिल कुमार

पटना. विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र में जाने से भय लग रहा है. विशेषकर सत्ताधारी नेताओं को तो शामत नजर आ रही है। जिस चुनाव क्षेत्र में इस समय बाढ़ के कारण तांडव मचा हुआ है, वैसे क्षेत्रों में विधायकों को बाढ़ पीड़ितों ने जमकर क्लास ली है. जिसके कारण माननीयों को काफी फजीहत झेलना पड़ रहा है।

राजधानी पटना में पिछले माह दीघा विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक संजीव चौरसिया को उनके ही क्षेत्र नेपाली नगर में सड़क और जलजमाव के कारण काफी फजीहत झेलनी पड़ी थी. स्थानीय लोगों ने विधायक संजीव चौरसिया का भारी विरोध किया और उनकी बोलती बंद कर दी। संजीव चौरसिया को दबे पांव लौटना पड़ा। संजीव चौरसिया से भी बदतर हाल दरभंगा के कुश्वेशरस्थान से जदयू विधायक शशि भूषण हजारी के साथ हुआ। इन्हें क्षेत्र की जनता ने दो दो बार बंधक बनाकर रखा। जनता का आरोप है कि शशिभूषण हजारी क्षेत्र में न आते हैं और न ही क्षेत्र में कोई तरह का विकास कार्य किया है। तब भी चुनाव सिर पर आते देख विधायक हजारी क्षेत्र का लगातार भ्रमण कर रहे हैं।

यह सब से कुछ अच्छी स्थिति विपक्षी दल राजद की है। उनके विधायक अपने क्षेत्र में विकास नहीं होने का ठीकरा सत्तापक्ष के ऊपर थोप कर जनता को शांत कर देते हैं। महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद जर्नादन सिंह सिग्रीवाल के साथ भी पिछले सप्ताह यही वाक्या देखने को मिला। सांसद सिग्रीवाल अपने क्षेत्र में बाढ़ राहत शिविरों में घोर अनियमितता की शिकायत मिलने पर जांच के लिए गए थे पर जांच की तो बात दूर रही, इनके सामने ही दो पक्षों में लात जूता और कुर्सियां तोड़ी गई। जिसके कारण काफी अफ़रा-तफ़री मच गई और सांसद बैरंग वापस लौट गए।

जनता के विरोधों के बावजूद सांसदों और विधायकों का क्षेत्रों का दौरा करना मजबूरी बन गई है। अब आने वाले समय जब बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा किसी भी समय चुनाव आयोग कर सकती है तो इस मजबूरी में माननीयों लोगों ने भी अपनी ताकत झोंकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कोरोना और बाढ़ के तांडव से बिहार की जनता त्रस्त हो गई है और कोरोना के शुरुआती दिनों में कोई भी सांसद और विधायक अपने क्षेत्र में जनता का हालचाल पूछना भी मुनासिब नहीं समझते थे। जिसके कारण अभी माननीयों को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है।

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