तारिक़ आज़मी
आज जीवनी डॉट ओआरजी पर ऐसे ही कुछ पढ़ रहा था। रानी कर्णावती की जीवनी आँखों के सामने से गुज़र गई। बड़े ही बकवास तरीके से एक ही बात को तीन चार जगह लिखी हुई जीवनी में कही हुमायु को सम्मान का शब्द तो दिखाई नही दिया। बाबर शायद मौजूदा इतिहासकारों के लिए आक्रान्ता था। भले ही इन इतिहासकारों के पास इसका जवाब न हो कि बाबर अगर आक्रान्ता था और लुटेरा था तो फिर भारत में ही क्यों बस गया ? आक्रमण करके राज्य विस्तार की बाते इतिहास में शासको के शौर्य में गिनी जाती है। मगर बाबर को कब्र से उठकर अब साबित करना पड़ेगा कि ये उसका राज्य विस्तार था न कि कुछ और।
ये तो कुछ नहीं आप गूगल बाबा को सर्च करके देख ले। कई पोस्ट आपको ऐसे मिलेगे जो तथ्यों से खेलते हुवे गलत जानकारी देकर नफरत फैलाते हुवे वीडियो पोस्ट किया है। एक शोकिंग फैक्ट नाम के युट्यूबर ने तो वीडियो बनाया है कि कैसे भाई बनकर हुमांयू ने रानी कर्णावती को धोखा दिया था। देख कर ही आपको सोशल मीडिया पर से विश्वास उठ जायेगा। व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के ज्ञान से सराबोर कई पोस्ट आपको गूगल बाबा उपलब्ध करवा देंगे जो आपके और आपके बच्चो के दिमाग में नफरत की फसल बो देंगे। चंद विजिट के लिए ऐसे पोस्ट करना कितना आसान होता है। मगर इसका नतीजा क्या होगा ये जाहिलो के समझ से परे है। जी हां, जाहिल, पढ़े लिखे जाहिल जिनकी तालीम व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी की भेट चढ़ चुकी है।
इधर दुश्मन बहादुर शाह की इतनी बड़ी सेना और दुसरे तरफ वो सामंतो का पीठ में खंजर घोपने की तैयारी। रानी कर्णावती ने एक पत्र के साथ राखी भेज कर हुमायु से मदद मांगी। उधर अपने राज्य विस्तार के लिए दक्कन में जंग लड़ते हुमायु को जब रानी कर्णावती का सन्देश पंहुचा तो वह अपनी बड़ी फ़ौज को लेकर चित्तौड़ को निकल पड़ा। एक भाई अपनी बहन की रक्षा करने के लिए बेताब होकर लगातार फौजों के साथ दौड़ रहा था। रास्ते में चम्बल नदी पड़ती है। चम्बल नदी के तेज़ बहाव और उभांन को देख कर हुमायु की फ़ौज ने नदी पार करने से मना कर डाला। मगर बहन के स्नेह को सीने में समाये हुमायु को चम्बल के पानी की उफनाती लहरे भी नहीं रोक सकी और हुमायु चम्बल पार कर गए।
मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बहादुर शाह की फौजों और सामंतो की गद्दारी ने अपना काम कर दिया था। 8 मार्च 1535 को अपनी हार निकट देख रानी कर्णावती ने वीरांगनाओ सहित जौहर कर लिया था। खुद को आग के हवाले करके वो वीरांगना अजर अमर हो गई। हुमायु को जब चित्तौड़ पहुचने के बाद इसकी जानकारी मिली तो एक भारी फौजों के साथ अपनी बहन का बदला लेने के लिए हुमायु ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। इतिहासकारों के लफ्जों का अगर मुत्तला करे तो हुमायु इस जलाल के साथ थे कि कुछ चित्तौड़ के सामन्तो के चाटुकारों ने लिखा है कि वह किसी को भी नहीं बक्श रहा था। हर एक हद पार करते हुवे कर्णावती के हर एक गद्दार को उसके अंजाम तक पहुचाया। बहादुर शाह की फौजे वापस भाग भाग कर अपनी जान बचा रही थी। वजह साफ़ थी कि एक भाई अपनी बहन का बदला ले रहा था। चित्तौड़ फतह हो चूका था। झंडा नियमो के साथ तो मुग़ल फहराना चाहिये था। मगर किले पर झंडा रानी कर्णावती का फहराया।
हुमायु ने रानी कर्णावती के दोनों पुत्रो का अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता करवाया जिनको रानी कर्णावती ने अपनी भरोसेमंद दासी के हाथो सुरक्षित जगह ले जाने को कहा था। दोनों युवराजो को राजमहल लाया जाता है। अपने अनजान मामा हुमायु के हाथो कर्णावती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य का राज्याभिषेक होता है। उनको सिंहासन देकर हुमायु वापस दिल्ली लौट जाता है। धोखेबाज़ सामंत अपने अंजाम को पहुच चुके थे। एक लम्बे समय तक चित्तौड़ में राजा विक्रमादित्य राज रहता है।
मगर आज इतिहास को वो बदल रहे है जिनको इतिहास का ई भी नही मालूम है। इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। हालात ऐसे होते जा रहे है कि अपने बहन रानी कर्णावती के लिए हुमायु को खुद अपनी कब्र से उठकर इस बात को कहना पड़ेगा कि रानी कर्णावती हुमायु की बहन थी। वही स्वर्ग में आराम कर रही कर्णावती की आत्मा को भी आकर बताना पड़ेगा कि उसका भाई हुमायु उसके लिये खड़ा रहा। मगर ये घर में बैठा कर हाथो में महंगा मोबाइल लेकर सिर्फ बकैती करते है उनको इसके ऊपर भी विश्वास नही होगा और वो दोनों से ही सवाल दाग सकते है कि रानी कर्णावती आखिर हुमायु की बहन कैसे हो सकती है।
अजीब माहोल है। इतिहास के तथ्यों को तोड़ो मरोड़ो और व्हाट्सअप पर ज्ञान बघार दो। अभी हकीकत से रूबरू होकर बात को न समझो। आखिर 500 सालो के बाद आज कर्णावती के लिए हुमायु का बतौर भाई स्नेह शक दे दायरे में खड़े करने वाले ये अतिज्ञानी अथवा अल्प ज्ञानी कौन है ? ये वो है जो खुद नक़ल करके पास होते है और सारे जीवन सिर्फ और सिर्फ ज्ञान देते है खुद कुछ नही कर पाते है। आखिर दुनिया में कितने हुमायु चाहिये। एक मैं भी आधुनिक हुमायु हु जिसको आधुनिक कर्णावती के बहन होने का सबूत पेश करने के लिए कटघरे में खड़ा किया जाता है। लफ्जों के ये कटघरे बहुत तकलीफ देते है। मगर फिर सोच कर खुद को तसल्ली दिलती है कि ये नादान लोग है।
क्या शुरू से माहोल ऐसा ही था। शायद नही। कभी भी माहोल ऐसा नही था। मुझको नहीं मालूम मैं एक भारतीय से मुसलमान कब बन गया हु। मेरे सबसे अज़ीज़ दोस्तों में कोई ब्राहमण है, कोई क्षत्रिय है तो कोई वैश्य और शुद्र है। मगर सभी दोस्त है। न दक्षिणपंथ न वामपंथ। मगर आज अहसास सा हो जाता है कि चंद निगाहें मुझसे सवाल कर रही है कि हुमायु आखिर कर्णावती का भाई कैसे हो सकता है।
एक घटना जिसने मुझे अन्दर तक झकझोर दिया था बताता चलता हु। लॉकडाउन 1 में सडको पर चाय बाटने वाले काफी थे। खबरों की तलाश में भटक रहा था तभी बुलानाला पिकेट पर कुछ परिचित पुलिस कर्मी मिल जाते है। उनसे बात कर रहा था तभी एक मित्र पत्रकार और भी आ गए। सभी लोग एक हलके फुल्के माहोल में बातचीत कर रहे थे। तभी एक चाय बाटने वाली टीम में चार पांच बाइक आकर रूकती है। लॉक डाउन में चाय वाकई भूखे को रोटी समान लगती थी। चाय का पुरवा लेकर अभी होठो तक ही लाया था कि चाय तकसीम करने वाले एक सभ्य और शालीन दिखने वाले अंकल ने एक शब्द कह दिया। तस्किरा कोरोना महामारी का था तो अंकल जो वाकई पढ़े लिखे लग रहे थे ने एक शब्द कहा जो लगा मुझे कि किसी ने एक बाल्टी ठंडा पानी डाला दिया हो। उनके शब्द थे “भारत में कोरोना मियवन भो*** वाले फैला रहे है”
ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे मुह पर एक बाल्टी पानी फेक दिया हो। मैंने चाय को वापस रखा और अंकल को एक सौ की नोट देकर कहा अंकल ये मेरे तरफ से चाय बाटने के लिए एक छोटा सा सहयोग है। वैसे आपकी जानकारी को बता दू अंकल कि “मैं भी मिया हु। मगर भो**** वाला नही हु। आप कह सकते है माय नेम इज खान, बट आई एम नाट अ टेररिस्ट।” मेरे लफ्जों ने वहा खड़े पुलिस कर्मियों को भी सकते में कर दिया था। लगभग सभी ने अपने हाथो में ली हुई चाय फेक दिया था।
अंकल के साथ जो युवक थे वह भी भौचक्के रह गए थे। सभी को उनके शब्द बुरे लगे थे। मगर मुझको अफ़सोस सिर्फ अंकल के संस्कार पर आ रहे थे कि उन्होंने अपने बच्चो को क्या तरबियत दिया होगा। मुझको पता है आज अंकल मेरे इस लेख को पढ़ रहे होंगे। उन्होंने मेरा नंबर भी लिया था और वो मेरे लेख को जो ब्राडकास्ट से उनके खुद के व्हाट्सअप पर पहुचता है पढ़ते हुवे भी देखा है। अंकल आज मैं आपको उस गलत लफ्ज़ के लिए कोई सबक नही दे रहा हु। बस आपको एक बात कहना है अंकल, आप मेरे बड़े है। मेरे पिता समान है, मगर मैं आज भी आपके शब्द भूल नही पाया हु। आपकी सोच इस बात को ज़ाहिर करती है कि नफरतो का ज़हर हमारे दिलो दिमाग में कहा तक बैठा हुआ है।
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