तारिक़ आज़मी
आपको हमारे सवाल पर हंसी आ रही होगी। सवाल दुबारा दोहराता हु कि क्या लगता है आपको, पहले केस कौन हल कर पायेगा सुशांत सिंह का, सीबीआई या फिर मीडिया ? आप तीन बार जोर जोर से हंस सकते है। साथ में वो जो भक्ति की पराकाष्ठ को पार कर चुके है और जिनको सिर्फ वही दिखाई देता है जो आज न्यूज़ रूम में बैठ कर बेमतलब की बहस करते एंकर दिखाते है वो हमारी इस बात पर मन में तीन गाली भी दे सकते है। वैसे उन जैसे जाहिद-ए-तंज़ नज़र के लिये कहना चाहूँगा कि वो मुझे भले मन में गालियाँ देते रहे। मगर मैं ज़मीनी मुद्दे उठाता रहूँगा और उनकी समस्याओं को भी उठाता रहूँगा।
खैर साहब, टीआरपी की जद्दोजहद में इंसान क्या कुछ नही कर रहा है इसको सोच कर मैंने कदम आगे बढाया। मतलब चैनल आगे बढ़ा दिया। अगले पर नीचे पट्टी देख कर मैं समझ गया कि अब जल्द ही मीडिया सुशांत सिह राजपूत सुसाइड केस को हल कर लेगी। शायद सीबीआई भी आकर उनसे ही इनपुट लेकर जायेगी। क्योकि नीचे पट्टी बड़ी बड़ी चल रही थी कि सुशांत सिंह केस में दाऊद का हाथ होने की संभावना। मुझको जरा भी अचम्भा नही हुआ साहब। जानते है क्यों ? बस थोडा देर से नाम पढ़ा इस लिए थोडा संकुचा गया था। दो महीने से ऊपर का समय लग गया इस नाम को सामने आने में। भाई समझे आप। बिहार में चुनाव है, सुशांत सिंह राजपूत बिहार से सम्बन्धित शक्सियत। अब पाकिस्तान कनेक्शन होने के बाद मामले में तेज़ी तो आएगी।
भाई सीधी सी बात है। देश का हर एक नागरिक भले वह हिन्दू हो या मुस्लमान, दाऊद से नफरत ही करता है। भले टीवी शो पर बहस के दौरान सीमाओं को पार करके एक धर्म विशेष के लोगो को पाकिस्तान कनेक्शन जोड़ दिया जाये। मगर हकीकत ये है कि इन दो नाम से सभी को नफरत है। अब जब ये दोनों नाम यानी पाकिस्तान और दाऊद जुड़ा तो खून में जोश तो आयेगा ही। क्या फर्क पड़ता है कि अदालतों से फटकार मिल जाए। हमको बिकाऊ और क्या क्या कहा जाता है। कोई फर्क नही पड़ता इसका। टीआरपी तो मिल रही है न। तो न्यूज़ रूम में खूब उछलो खूब कूदो। बेमतलब की बहस करो।
अब तो मैं भी सोच रहा हु कि एक बहस रखु। बड़े नामी गिरामी शख्सियत को बुलवा लेता हु। मगर बोलने किसी को नहीं दूंगा। बहस का मुद्दा भी सोच लिया है। मेरी बहस का मुद्दा होगा “दिशा कितनी होनी चाहिए?” बचपन में किताबो और परिवार तथा शिक्षको से मिली जानकारी के अनुसार चार दिशाये थी। पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण। मगर थोडा बड़े होने के बाद लोगो ने बताया था कि दिशाये दस होती है। बकिया की 6 दिशाये मुझको नही मालूम मगर मैं मानता हु कि दिशा दस होती है। मगर मेरी बहस में जो मांग होगी वो ये होगी कि दिशाये 12 होनी चाहिये। चार वो दिशा जो पढ़ा गया। बकिया जो कहते है दस तो बची हुई 6 वो भी मिला कर दो नई दिशाओं का निर्माण करते है। दोनों दिशाओं का नाम और मार्ग भी मैंने सोच लिया है।
ग्यारहवी दिशा का नाम होगा सही दिशा, और बारहवी दिशा का नाम होगा गलत दिशा। इसके मार्ग भी सबसे स्पष्ट रहेगे। ग्यारहवी दिशा यानी सही दिशा वो मानी जाएगी जिस दिशा में मीडिया और सरकार चले। वो सही दिशा मानी जाएगी। और बारहवी दिशा रहेगी गलत दिशा। इस दिशा का मार्ग होगा जिस दिशा में विपक्ष और निष्पक्ष मीडिया चले। वो गलत दिशा मानी जायेगी। ऐसे कुल 12 दिशाये हो जायेगी। दिशाओं का मार्ग भी प्रशस्त हो जायेगा और गलत दिशा के लोगो को हम लोग नहीं सुना जायेगा। हाँ याद आया 12वी गलत दिशा उनको भी माना जायेगा जो सवाल करे। सवाल करना प्रतिबंधित होगा।
क्या लगता है आपको। आज आप सोच रहे होंगे कि संजीदा अथवा सटायर में लिखने वाला तारिक़ आज़मी आज सनक गया है। क्या उल जुलूल बाते कर रहा है। तो फिर आप खुद बताये। आप जब मुद्दों के बगैर बेमतलब की बहस को टीवी पर देखते है वो क्या है ? सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई जाँच की मांग बिहार सरकार की मान लिया गया। सीबीआई जाँच अधिकारी जो जाँच कर रहे है वो कम से कम क्राइम के मुद्दे पर उन न्यूज़ एंकरों से तो ज्यादा काबिल है जो टीवी पर बैठ कर खुद की अदालत में फैसला सुनाने को बेताब नज़र आ रहे है। क्या आप जिस शो को देखने के लिए पैसे खर्च कर रहे है उससे कभी आपने कहा कि मुद्दों पर बहस हो ? नही कहा, और कहेगे भी नही।
एक पूरी की पूरी पत्रकारों की फ़ौज सुशांत सिंह राजपूत मामले में एक पक्ष को सामने रखकर टीवी पर डिबेट कर रही है। खुद ही न्यायपालिका समझ कर फैसले तक कर रहे है। मीडिया ट्रायल की हदे पार हो रही है। वही एक पत्रकार पत्रकारिता के नियमो के तहत दुसरे पक्ष की प्रतिक्रिया लेता है तो सोशल मीडिया पर ट्रोल्लर्स आर्मी का शिकार हो जाता है। आप ख़ामोशी से देखते है। आपको वो सब कुछ जायज़ दिखाई भले न दे, मगर खुद की इज्ज़त बचाने के लिए आप खामोश रहते है क्योकि ये बदतमीज़ी की हदे पार करते हुवे गालियों से बात करने लगते है। सही करते है आप, क्योकि अपनी इज्ज़त अपने हाथो होती है। रिया चक्रवर्ती के इंटरव्यूव पर कोहराम मचाने वाले लोग इस पर मुह क्यों नही खोलते कि जो टीवी पर रोज़ बैठ कर डिबेट इस मुद्दे पर हो रही है, वो कहा तक सही है।
बिना जाँच आप किसी को कातिल साबित कर रहे है। आप बता भी सकते है। जब युपीएससी परिक्षा में एक सम्प्रदाय विशेष के युवको का सलेक्शन होने पर टीवी शो पर ज़हर की खेती करने के लिए प्रोग्राम का एलान हो जाता है कि “यूपीएससी जेहाद” तो आप इससे अधिक मीडिया से क्या उम्मीद पाल कर बैठे है ? ऐसा नफरत फैलाने वाला शो कि अदालत को इसमें अपना आदेश जारी करना पड़ा। जब अदालत टीवी शो की सुनवाई करेगी तो फिर आखिर ये जो नियंत्रण की बाते करने के लिए एक विशेष बोर्ड का गठन हुआ था वो क्या कर रहा है? अपना अपने परिवार का सपना पूरा करने के लिए जो छात्र पढ़ रहे है, मेहनत कर रहे है, सफलता प्राप्त कर रहे है उनको जब मीडिया का एक तबका जेहाद का नाम दे डाले तो फिर पत्रकारिता के गिरते स्तर पर सोचना होगा क्या ?
आप खुद सोचे और देखे, आपका पसंदीदा अख़बार, टीवी चैनल कितनी न्यूज़ बेरोज़गारी, गिरती अर्थव्यवस्था, बिहार और आसाम की बाढ़ पर प्रकाशित कर रहा है। आखिर उसके ऊपर बात क्यों नही हो रही है ? बहस इस बात पर क्यों नही हो रही है कि इतने बड़ा लॉक डाउन लगाने के बाद भी देश में कोरोना संक्रमण की रफ़्तार इतनी तेज़ क्यों है ? बात इस पर क्यों नही हो रही है कि छोटी छोटी दुकाने इतनी अधिक गली चौबारों में क्यों खुल गई ? बात इस पर क्यों नही हो रही है कि कोरोना के रोकथाम के लिए जो प्रयास किये गए उनकी सफलता क्यों नही मिली ? आखिर हमारी गलती कहा थी इसके ऊपर विचार क्यों नही हो रहा है ?
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