संजय ठाकुर
मऊ। मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार एवं प्रदेश की योगी सरकार ने गांव की सकरी गलियों, पगडंडियों एवं खेत -खलिहानों से सचिन, पीवी सिंधु, साइना नेहवाल पैदा कर देश का नाम रोशन करने के सुनहरा ख्वाब देखा है। शायद रद्दी क्वालिटी के खेल किट और भ्रष्टाचार की भेट चढ़ी पूरी संदिग्ध प्रक्रिया के तहत मंत्रालय गाव के खेतो से सचिन तेंदुलकर को विश्व पटल पर लाने का सपना पाल कर बैठा है। जबकि खेल सामग्री खरीद की पूरी प्रक्रिया ही संदेह के घेरे में आकर रह गई है। एक शिक्षा मित्र के नाम पर पूरी प्रक्रिया होना और संदिग्धता भी इतनी की बिल पर नंबर तक शिक्षा मित्र का लिखा हो बड़ा सवाल पैदा करता है कि आखिर एक शिक्षा मित्र कैसे इतना बड़ा खेल के नाम पर गेम कर सकता है। उसके शह देने वाले और उसको संरक्षण देने वाले आखिर कौन कौन है ?
जिन अध्यापकों ने बीएसए के आदेश को शिरोधार्य कर उक्त कंपनी से खेल सामग्री नगद भुगतान के द्वारा लिया अब उनकी सांसें अटकी हुई हैं कि अब वह कहां जाएं अपना सामान किसके पास वापस करें और कहां से सरकारी धन के किए गए भुगतान को वापस लाएं। कुछ अध्यापकों का तो यहां तक कहना है कि अधिकारी ने उन्हें बुरी तरह फंसा दिया। इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग यहां के शिक्षक नेता कर रहे हैं। इसकी जानकारी होने पर शिक्षक नेताओं के ऊपर एफआईआर दर्ज कराने की तहरीर भी दी गई है। वही पुलिस इस मामले में शिक्षको से उलझना नही चाह रही होगी तभी अभी तक कार्यवाही नही हुई है। वही दूसरी तरफ शिक्षक नेताओं के द्वारा अधिकारियों और कार्यदायी संस्था के साथ साथ शिक्षा मित्र अर्जुन सिंह पर मुकदमा दर्ज करने की तहरीर दिया गया है। पुलिस इस मामले में भी खुद को फंसा देख रही है क्योकि अधिकारियो पर आखिर नामज़द मुकदमा दर्ज कैसे करे।
शिक्षक संघ के तरफ से अब मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर पूरी घटना से अवगत करवाया गया है। सबसे ज़बरदस्त तो एक मामला सामने आया है कि खेल सामग्री बेचने आई फर्म ने खेल सामग्री हेतु सभी टैक्स तो लिया है। मगर बिल पर उसका जीएसटी नम्बर इत्यादि नही अंकित है। बिल पर अंकित एक टेलीफोन नम्बर एक शिक्षा मित्र अर्जुन सिंह का है। बताते चले कि ये वही अर्जुन सिंह है जिन्होंने रतनपुरा में इस खेल मेले हेतु अपनी खुद की दूकान सजा रखी थी। अब सवाल ये उठता है कि यदि देखा जाए तो पूरा खेल का गेम अर्जुन सिंह के कंधे पर है। मगर साथ ही सवाल ये भी है कि एक शिक्षा मित्र कैसे इतना बड़ा गेम खेल सकता है ? उसको आखिर संरक्षण किसका मिला हुआ है? क्या बीएसए अथवा एबीएसए इस मामले में जवाबदेह नही है ? क्या सिर्फ फर्म को डिबार कर देने से सब समस्याओं का समाधान हो जायेगा ? क्या मामले की उच्च स्तरीय जाँच नही होनी चाहिए ? क्या पुलिस प्रकरण में निष्पक्ष जाँच करेगी ? सवाल तो काफी अधूरे है। शायद इन सवालो के जवाब केवल उच्च स्तरीय जाँच ही पुरे कर सकती है। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या मामले में उच्च स्तरीय जाँच होती है, अथवा हंगामे के बाद तूफ़ान गुजरने का इंतज़ार किया जायेगा और मामला ठन्डे बस्ते में चला जायेगा। वैसे शिक्षक संघ ने भी इस प्रकरण में आर पार का मूड बना लिया है। एक शिक्षक नेता ने तो यहाँ तक दावा किया है कि उनके पास पुरे सबूत है कि एक बड़ा घोटाला हुआ है। उन्होंने तो यहाँ तक कहा है कि अगर मामले में जाँच नही होती है तो न्यायालय का रास्ता भी खुला हुआ है।
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