तारिक आज़मी
वाराणसी। जब कोई रास्ता नही दिखाई दिया तो आखिर वही एक रास्ता काम आया। बिल्डर ने हर दाव खेला। हर एक पेच घुमाई। पुलिस को पहले बताया कि मेरा कोई कॉन्ट्रैक्ट नही है। फिर आज सुबह जब वीडीए की टीम आई तो उसको चाय नाश्ते का इंतज़ाम करवाया। फिर खुद आगे आगे रहकर पूरा मुआयना करवाया। मगर इससे भी दाल नही गल पाई और वीडीए ने मकान के निर्माण पर रोक लगाने का आदेश दे दिया। अतिरिक्त दिमाग के मालिक बिल्डर साहब ने तो मकान को जर्जर होने का बहाना भी दे डाला। मगर वो भी काम नही आया और नगर निगम से जांच का आदेश हो गया। चारो तरफ से खुद को घिरा देख आखिर बिल्डर ने मास्टर स्टोक प्लान खेला और इमोशन का फंडा अपना डाला।
भवन जर्जर है या फिर किया गया ?
जर्जर भवन की बात दो दिनों से उठ रही है। हम भी सप्पू के हिस्से में आये इस भूभाग पर गए थे। यही छत पर बने कमरे में उस्ताद अपनी हयात में सुबह फज्र की नमाज़ पढ़कर रियाज़ किया करते थे। रियाज़ भी ऐसा कठोर की तपस्या जैसा। आस पास के लोगो ने बताया कि उस्ताद बिना नाश्ता किया बिना कुछ खाए पिए ही फज्र की नमाज़ के बाद इस कमरे में सुबह के दस बजे तक रियाज़ किया करते थे। अक्सर उनके रियाज़ के वक्त उनके साहबजादे नाजिम मिया हुआ करते थे। शायद नाजिम मिया को तालीम ही शुरू से मेहनत की मिली है जो आज भी उन्होंने उस्ताद के नाम को रोशन कर रखा है।
बहरहाल, छत के कमरे की अब क्या बात करना क्योकि मीडिया को वो कमरा दिखाया जा रहा है जो पहले तल्ले पर है। आस पास रहने वाले हमारे सूत्रों ने बताया कि मामले में तुल पकड़ता देख कर बिल्डर ने बांस बल्ली लगा कर चाड लगवा कर मकान को जर्जर दिखाने की कोशिश किया। उनकी इसी कोशिश में मकान का एक बड़ा हिस्सा जर्जर हो चूका है। बांस बल्ली के ज़बरदस्ती चाड लगाये गए है। वही ज़मीन में मिटटी तक थोड़ी इस तरीके से खोदी गई है कि लगे ज़मीन धंस रही है। बिल्डर का ये गेम कामयाब होता भी दिखाई दे रहा है और लोगो में उस्ताद की निशानी के लिए ललक कम होकर परिजनों के लिए दया भाव आने लगा है। मगर ज़मीनी हकीकत हमारे सूत्रों ने हमको बताई वह कुछ अलग ही है।
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मास्टर स्टोक गेम, इमोशनल बयान से खुद के लिए समर्थन बटोरने की तैयारी
मौके पर आज कुछ पत्रकारों को विशेष रूप से बुलवाया गया था। हमारी जानकारी होने पर जब हम पहुचे तो हमको कोई भी बयान देने को तैयार नहीं था क्योकि बिल्डर साहब को पता था कि हमारे तपते सवालों का जवाब न बिल्डर साहब के पास है और न ही उनके अपराधी गुर्गो के पास। खैर हमने दुसरे मीडिया हाउस को दिए बयान से काम चला लिया है। मगर बिल्डर साहब का ये वाकई मास्टर स्ट्रोक प्लान था।
मामले में नजमी फिरोज़न सामने आई और अपना बयान दिया है। नजमी फिरोज़ंन उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के बड़े बेटे महताब हुसैन की बहु है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के बड़े बेटे महताब हुसैन के पुत्र सिबतैन हुसैन की पत्नी है नजमी फिरोज़ंन। यानी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब के पोते की पत्नी। उन्होंने कहा कि “हम और हमारे बच्चे भूखे है। ईंट-पत्थर हमें खाने को नहीं देंगे, क्या खां साहब की धरोहर खाने को देगी हमें। मेरे बच्चे भूखे मर रहे हैं कहाँ से हम लाएंगे खाने के लिए, किससे भीख मांगे। हम अब अपने हिसाब से जियेंगे, कोई हमें डिस्टर्ब न करे।’ यही नहीं उन्होंने उस्ताद की दत्तक पुत्री, अपने चचिया ससुर, अपनी फुफिया सास से लेकर जिला प्रशासन तक पर बड़े आरोप लगा डाले। कहा कि गैस एजेंसी देने का वायदा हुआ था मगर नही मिली। फुफिया सास यानी उस्ताद की साहबजादी ज़रीना बी पर आरोप लगाते हुवे कहा कि उनका बड़ा सा मकान बनकर तैयार हो गया किसी ने आपत्ति नही किया। वही उस्ताद की दत्तक पुत्री पर भी आरोप गढ़ डाले कि इतनी बड़ी गायिका है मगर उन्होंने पता नही किया कि उनके भाई भतीजे किस हाल में है।
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बहरहाल, वैसे तो नजमी बी ने बहुत कुछ कहा और आरोप लगाये। पूरा इमोशनल माहोल कर डाला। साहब हम भी भूलने के कगार पर पहुच गए कि उस्ताद की निशानी वो हुजरा कहा है। मगर तब तक कुछ सवालात हमारे दिमाग में भी आने शुरू हो गये। अब बिल्डर साहब ने शायद सख्त तौर पर मना किया होगा कि मुझे बयान न दे तो अपने कलम से ही सवाल पूछ लेता हु। नजमी बी, उस्ताद के लिए आपके दिल में इज्ज़त और मुहब्बत की हम क़द्र करते है। हम ये भी मानते है कि बिलकुल आपको अपने हिसाब से जीने की पूरी आज़ादी है। आप कमर्शियल बिल्डिंग बनवाये। अथवा ताजमहल बनवा ले। किसी को भला क्या आपत्ति हो सकती है। मगर एक बात बताये जिस संग्रहालय की बात आप कर रही है उसमे उस्ताद की यादो में सिर्फ क्या उनकी तस्वीरे रखेगी।
नजमी बी वैसे मेरी याददाश्त तो बड़ी मजबूत है मगर फिर भी इस बार थोडा सा कमज़ोर होने की बात मेरी याददाश्त कर गई है। मैडम, वो जो उस्ताद की शहनाई चांदी की बेशकीमती चोरी हुई थी, उसमे जो पकड़ा गया था युवक वो कौन था ? हर बाप अपने परिवार के लिए सोचता है। उस्ताद हमारे आपसे बेहतर थे बेशक। उन्होंने सोचा भी और किया भी। अपने बेटे बेटी के लिए किया। अब बेटे बेटी खुद के पैरो पर खड़े होकर भी तो कुछ करेगे या फिर नही करेगे। नाजिम मिया ने उस्ताद का नाम रोशन किया। कारोबार भी उनके बच्चे करते है। काजिम मिया भी बेहतर हालात में है। उनके बेटे रजी का भी अपना काम है। वो भी बेहतर हाल में है। सप्पू मिया क्या करते है मैडम ?
हकीकत से तो आप भी रूबरू है और हम भी है। ये हिस्सा सप्पू मिया के हिस्से में आया था। शर्त परिवार की ये थी कि अब्बा हुजुर यानी उस्ताद का हुजरा तोडा नही जायेगा। जब तक हुजरे को तोडा नही गया था तो किसी को कोई आपत्ति नही थी। सबको मालूम था कि एक करोड़ में बेसमेंट का सौदा हो गया है। बिल्डर के मार्फ़त सौदा हुआ था। जिसने लिया है उसका नाम मैं भी जानता हु और आप भी। ग्राउंड फ्लोर पर चार दुकाने बुक हो चुकी थी। पुरे परिवार को मालूम था मगर किसी ने आपत्ति नही जताई। आखिर क्यों जतायेगे नाजिम मिया के गोद में आपके पतिदेव खेल कर बड़े हुवे है। ज़रीना बी ने उनको खिलाया होगा। पाल पोस कर बड़ा किया होगा। उनकी तरक्की से काजिम मिया भी खुश होंगे। रजी भी अपने भाई की तरक्की देख कर खुश ही होंगे। आपत्ति तो तब हुई जब तय मुहायदा तोडा गया। उस्ताद के हुजरे पर बिल्डर का नापाक कदम पड़ा तब तो आपत्ति हुई।
उस्ताद सिर्फ आपके अथवा आपके परिवार के नहीं थे। उस्ताद पुरे मुल्क के थे। सभी उनके अपने है इस मुल्क में और सब उनको चाहते है। सभी उनकी इज्ज़त करते है। उस्ताद की वरासत बची रहे इसके लिए सभी फिक्रमंद है। सभी यही सोच रहे है। किसी भी मीडिया कर्मी को आपसे अथवा आपके परिवार से अथवा आपके उस बिल्डर से दुश्मनी नही है। उस्ताद की वरासत सभी संभालना चाहते है। उनके आल औलाद से लेकर शहर और देश का हर एक नागरिक। मकान का निर्माण और आपकी कमर्शियल बिल्डिंग तो उस्ताद का हुजरा तोड़ने के बगैर भी बन सकती थी। मगर बिल्डर को ज्यादा खर्चा करना पड़ता और मेहनत ज्यादा लगती। नीचे आप दूकान निकाले अथवा मकान बनाये या फिर फ़्लैट किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। हाँ बेसमेंट एक करोड़ का न बन पाता और बन भी नही पायेगा,
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पिक्चर अभी बाकी है
उस्ताद के हुजरे से लेकर उस्ताद के आशियाने पर मुनाफे की तलब लिए बिल्डर और बिना नक़्शे तथा बिना अनुमति के सिर्फ जबानी पार पर बेसमेंट तक एक करोड़ का बुक करने की कहानी अभी बाकी है। जुड़े रहे हमारे साथ। बिल्डर साहब के बाहुबली से लेकर उनके अपराधी मित्र तक ये जान ले कि जब तक हमारी साँस और कलम में स्याही है तब तक अपनी आखिरी सांस तक उस्ताद की निशानी को मिटने से बचाता रहूगा।
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