तारिक़ खान
प्रयागराज। जिले के पूर्व सांसद व माफिया अतीक अहमद का पुश्तैनी आलीशान मकान ढहाया गया तो प्रशासन की कार्रवाई सुर्खियों में छा गई। सोशल मीडिया से लेकर मुहल्ले तक के लोग माफिया से जुड़ी हर बात को बता और जान रहे हैं। अपराध से लेकर सियासी कदम के बारे में चर्चा हो रही है तो तमाम लोग शौक व दूसरी किस्से पर दिलचस्पी रख रहे हैं। कहते हैं कि देसी तमंचा पकड़कर जरायम की दुनिया में कदम रखने के बाद अतीक को बाद में विदेशी असलहों का शौक हो गया। अपराध से पैसा कमाया तो लग्जरी गाड़ियाँ भी उसकी शौक का हिस्सा बन गई हैं। अतीक जब चलता था तो काफिले में एक से बढ़कर एक मंहगी कारें होती थी।
जानकारों का कहना है कि खुल्दाबाद थाना क्षेत्र के चकिया मुहल्ले में रहने वाले अतीक के वालिद स्व. हाजी फिरोज अहमद प्रयागराज (उस वक्त इलाहाबाद) रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाते थे। पढ़ाई में मन ठीक से न लगने के कारण अतीक हाईस्कूल की परीक्षा में फेल हो गए। उन्हें भी नए लड़कों की तरह पैसा कमाने का चस्का लग गया। इसी बीच करीब 1979 में खुल्दाबाद थाने में अतीक के खिलाफ हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ।
उस वक्त अतीक की उम्र महज़ 17 बरस ही थी। ऐसे में वह नौजवानों के बीच गुंडा बन गए और रंगदारी वसूलने से लेकर दूसरी वारदात को अंजाम देने लगा। जरायम की दुनिया में कदम रखने के बाद अतीक पर हत्या, हत्या के प्रयास, रंगदारी, अपहरण, लूटपाट, गैंगस्टर, गुंडा एक्ट और धमकी समेत लगभग 210 मुकदमे लिखे गए। इसमें 113 मुकदमे सेल्स टैक्स विभाग के भी हैं। इसमें से कई मुकदमों में अतीक बरी हो चुके हैं। उनके इंटर स्टेट गैंग यानी आइएस 227 में 150 से अधिक सदस्य हैं, जिसमें से कुछ अभी भी सक्रिय हैं और पुलिस के रडार पर हैं।
हथियारों और लग्जरी गाड़यिों के शौकीन अतीक ने कभी सियासी कवच पहनकर तो कभी अपराधिक छवि के कारण लगातार अपना वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश की, मगर अब लोगों का कहना है कि पहली दफा उसको सबसे बड़ी चोट लगी है।
अतीक के सामने नहीं उतरते थे चुनाव में
शहर पश्चिमी विधानसभा सीट में दमखम रखने वाले अतीक के खिलाफ जल्द कोई चुनाव मैदान में नहीं उतरता था। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अतीक के ही करीबी कहे जाने वाले राजू पाल को टिकट दे दिया। राजू पाल ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को चुनाव में पटखनी दी तो बाहुबल को झटका लगा। इसके बाद 25 जनवरी 2005 को धूमनगंज के सुलेम सराय इलाके में बसपा विधायक राजू पाल को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया था। अतीक, उनके भाई अशरफ पर मुकदमा होने के साथ उसका खराब दौर भी शुरू हुआ। मायावती ने अतीक के साम्राज्य पर बुलडोजर चलवाते हुए गैंग को कमजोर कर दिया था। सपा सरकार में सब कुछ सामान्य रहा, लेकिन भाजपा सरकार में पुरानी और मजबूत जड़ें फिर से उखाड़ी जा रही हैं। राजूपाल हत्याकांड में सीबीआइ चार्जशीट दाखिल कर चुकी है।
माफिया का सहारा लेती थी पुलिस
अतीक अहमद ने पहली बार वर्ष 1989 में शहर पश्चिमी से निर्दलीय पर्चा भरा और जीत हासिल की। इसके बाद दो बार और विधायक हुआ। फिर सपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीत राजनैतिक पारी को मजबूत किया। अपना दल के टिकट पर भी विधानसभा चुनाव जीता। फूलपुर से सांसद हुआ लेकिन दूसरी बार लोकसभा चुनाव में मात खानी पड़ी। अपने छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को भी एक बार विधायक का चुनाव जितवाया। पुराने जानकारों का कहना है कि अपने जमाने के बाहुबली चांद बाबा की हत्या के बाद ही अतीक का नाम उभरा था। तब तमाम नेताओं के साथ ही पुलिस ने भी दूसरे गैंग को कमजोर करने के लिए अतीक का सहारा लिया था, जिसके बाद अतीक माफिया बन गए।
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