तारिक़ आज़मी
वाराणसी। कोरोना वैश्विक महामारी के दरमियान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपदा में अवसर तलाशने की बात देश के नागरिको से कहा। लगता है इस बात का सबसे अधिक असर धरती के भगवान कहे जाने वाले कुछ चिकित्सको पर थोडा ज्यादा ही हो गया। किसी प्रकार खुद को कोविड-19 के इलाज हेतु इम्पैनल करवा लेने के बाद लगता है इस महामारी की कमाई से एक ताजमहल खुद के लिए बनवाने को ये धरती के कुछ भगवान लोग आमादा है। समझ नही आता आखिर इतने पैसो का करेगे क्या ?
मामला वाराणसी के कोतवाली थाना क्षेत्र के मैदागिन स्थित एक प्राइवेट अस्पताल का है। निजी चिकित्सालय को कोविड-19 के इलाज हेतु निर्धारित किया गया है। वही सरकार ने इस सम्बन्ध में दर भी इलाज की निर्धारित कर रखा है। मगर चिकित्सक महोदय खुद की अपनी सरकार अस्पताल के अन्दर चलाते है। पिछले दिनों एक पीड़ित का वीडियो वायरल हुआ था जिसको आप देख सकते है कि वह किस तरह रो रो कर अपने पिता की मौत के बाद अस्पताल का रुख बयान कर रहा है। इस वीडियो में वह अस्पताल द्वारा भारी रकम वसूली का भी आरोप लगा रहा है।
वैसे इन आरोपों की जाँच तो होना चाहिए। अगर आप किसी को ख़ुशी नहीं दे सकते है तो उम्र भर का गम देने का अधिकार किसी को नही है। वीडियो में दिखाई दे रहा नवजवान अभी दुनिया को देख रहा है। मैं नहीं कहता कि हर चिकित्सक ऐसे ही होते है। मगर उसका इस पेशे पर अब कभी विश्वास रह पायेगा। जिस सभ्य पुरुष के चैट का आप स्क्रीन शॉट देख रहे है उनके दर्द को आप उनके शब्दों के भारीपन से समझ सकते है। लॉक डाउन के बाद हर इंसान की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी है। कहा से उन्होंने इतने रकम का इंतज़ाम किया होगा ये केवल वो और उनके परिवार के सदस्य ही जानते होंगे। अगर चैट के शब्द आपके दिल में इंसानियत का दर्द नही पैदा कर पा रहे है, आप उन लफ्जों में भीगे दर्द को नहीं देख पा रहे है तो शायद आपके लिए शब्द नही है।
एक इंसान खुद की ज़िन्दगी और मौत की जंग जीत कर जब घर पंहुचा होगा तो उसको अपने लुटे होने का अहसास हो रहा होगा। कितना कष्टदाई होगा ये लम्हा उनके लिए इसका अहसास किया जा सकता है। हम उनके दर्द को बाट तो नहीं सकते, हम उस वीडियो वाले नवजवान के दर्द का अहसास करके उसको तकसीम तो नहीं कर सकते है। मगर कम से कम उसके आरोपों की निष्पक्ष जाँच की तो मांग कर सकते है। जाँच भी जो बिना किसी दबाव के हकीकत के पैमाने पर हो, ज़िन्दगी है साहब, दर्द देती है मैं भी जानता हु, मगर दर्द ऐसा तो नही होना चाहिए। शायद डाक्टर साहब को इसका अहसास नही होगा। डाक्टर साहब के लिए एक शेर दुष्यंत का अर्ज़ किया है कि “वो मुत्मईन है कि पत्थर पिघल नही सकता, मैं बेक़रार हु आवाज़ में असर के लिये।”
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